जासूसी मामले के आरोपी के साथ अखिलेश यादव की फ़र्ज़ी तस्वीर दिखाने वाले व्यक्ति की गिरफ़्तारी पर लगी रोक
Shahadat
2 Oct 2025 5:03 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की फ़र्ज़ी तस्वीर एक महिला के साथ साझा करने के आरोपी व्यक्ति की गिरफ़्तारी पर रोक लगाई, जिसके पाकिस्तान से संबंध होने का आरोप है और जो वर्तमान में जासूसी के एक मामले का सामना कर रहा है।
जस्टिस रजनीश कुमार और जस्टिस राजीव सिंह की खंडपीठ ने आरोपी अरुण कुमार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें FIR रद्द करने और गिरफ़्तारी से सुरक्षा की मांग की गई।
यह FIR इस साल अगस्त में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147, 196, 197, 353, आईटी अधिनियम (IT Act) की धारा 67 और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 के तहत दर्ज की गई।
यह FIR IPC की धारा 173(4) के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश के अनुसरण में दर्ज की गई। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि FIR "गलत और मनगढ़ंत तथ्यों के आधार पर" दर्ज की गई।
उनके वकील ने दलील दी कि संबंधित तस्वीर मूल रूप से 20 मई, 2025 को डॉ. अजय आलोक नाम के व्यक्ति के ट्विटर हैंडल से अपलोड की गई थी, जिसमें अखिलेश यादव ज्योति मल्होत्रा नाम की महिला के साथ दिखाई दे रहे हैं, जिसके बारे में भारतीय मीडिया और खुफिया एजेंसियों का आरोप है कि वह पाकिस्तानी अधिकारियों से जुड़ी हुई है।
यह दलील दी गई कि इस पोस्ट को सच मानकर याचिकाकर्ता ने 'स्तब्ध' और 'दुखी' होकर इसे अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया और समाजवादी पार्टी के नेता पर 'राष्ट्र-विरोधी' लोगों के साथ संलिप्त होने का आरोप लगाया।
हालांकि, यह भी दलील दी गई कि इसकी सत्यता का पता चलने के बाद याचिकाकर्ता ने तुरंत अपने अकाउंट से पोस्ट हटा दिया।
उन्होंने यह भी दलील दी कि उनके खिलाफ IPC की धारा 147, 196, 197, 353 और IT Act की धारा 67 के तहत कोई मामला नहीं बनता।
यह भी दलील दी गई कि उनके सार्वजनिक ट्विटर हैंडल पर प्रकाशित सामग्री को भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने या युद्ध छेड़ने का प्रयास करने, युद्ध छेड़ने के लिए उकसाने या विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने वाला नहीं कहा जा सकता और न ही इसे किसी भी तरह से राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक कहा जा सकता है।
इसके अलावा, अदालत को बताया गया कि प्रकाशन के परिणामस्वरूप कोई घटना सामने नहीं आई, जिसे पहले ही हटा दिया गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि FIR राजनीति से प्रेरित थी और उन्होंने जाँच में सहयोग करने की इच्छा व्यक्त की।
याचिका का विरोध करते हुए एडिशनल गवर्नमेंट वकील ने दलील दी कि मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसार FIR दर्ज करना उचित ही था और साक्ष्य एकत्र करने के लिए जांच जारी है।
पक्षकारों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि मामले पर विचार करने की आवश्यकता है। उसने प्रतिवादी नंबर 4 को नोटिस जारी किया और प्रति-शपथपत्र दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया, उसके बाद प्रत्युत्तर के लिए दो सप्ताह का समय दिया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने निर्देश दिया कि सूचीबद्ध होने की अगली तारीख तक याचिकाकर्ता को आरोपित FIR के संबंध में तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक कि याचिकाकर्ता द्वारा सहयोग किए जाने की शर्त पर जांच के दौरान याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिलती। ऐसा न करने पर वह इस आदेश के किसी भी लाभ के लिए पात्र नहीं होगा।

