इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2 मामलों में आजीवन कारावास की सजा पाए दोषी को छूट देने के सरकार के आदेश को रद्द किया
Avanish Pathak
19 April 2023 8:48 PM IST

Allahabad High Court
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार के एक आदेश, जिसके जरिए दो आपराधिक मामलों में आजीवन कारावास की सजा पाए एक दोषी को छूट प्रदान की गई थी, को रद्द कर दिया। राज्य सरकार ने यह आदेश 2019 में दिया था।
कोर्ट ने माना कि दोषी मान सिंह का मामला राज्य सरकार की छूट नीति के अनुसार निषेध संख्या (x) के अंतर्गत आता है, इसलिए वह छूट का हकदार नहीं है। जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस सुरेंद्र सिंह- I की खंडपीठ ने दोषी को 30 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने और सजा के शेष हिस्से को भुगतने का निर्देश दिया।
उल्लेखनीय है सरकार की 2018 की छूट नीति के तहत निषेध वर्ग के खंड (x) में कहा गया है कि एक दोषी, जिसकी सजा को कम किया जा सकता है, वह एक से अधिक आपराधिक मामलों में आजीवन कारावास की सजा का दोषी नहीं होना चाहिए था।
मौजूदा मामले में अदालत ने कहा कि दोषी की सजा को कम नहीं किया जा सकता है। उसका मामला खंड (x) के तहत आता है, क्योंकि उसे दो मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, जिनमें से एक वर्ष 1995 में दी गई थी।
कोर्ट ने देखा कि मान सिंह का 26 अन्य मामलों का आपराधिक इतिहास भी है, जिसे राज्यपाल के ध्यान में नहीं लाया गया था। उल्लेखनीय है कि राज्यपाल के पास संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दोषी को क्षमा करने, सजा को कम करने और रिहा करने की शक्ति है।
कोर्ट ने कहा,
"इस प्रकार, प्रतिवादी संख्या 5, मान सिंह संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत पारित एक अगस्त, 2018 के शासनादेश के तहत जारी आक्षेपित आदेश के प्रावधानों के तहत सजा में छूट के हकदार नहीं है।
इसके अलावा आक्षेपित आदेश, जिसके जरिए उसे सजा में छूट दी गई है, इस तथ्य का कोई नोटिस नहीं है कि उसके खिलाफ 26 अन्य आपराधिक मामलों का आपराधिक इतिहास है।”
इस संबंध में कोर्ट ने स्वर्ण सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी, (1998) 4 एससीसी 75 केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी विचार किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा गया था कि, अगर राज्यपाल ने एक दोषी को इस तथ्य की अनदेखी करते हुए सजा में छूट दी है कि उसके खिलाफ कई अन्य आपराधिक मामले लंबित हैं, तो बाई-प्रोडक्ट ऑर्डर को कानून की स्वीकृति नहीं मिल सकती है।
मामला
अदालत संजय वर्मा नामक एक व्यक्ति की आपराधिक रिट याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें दोषी मान सिंह को छूट देने के सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी। 2007 के संबंधित सत्र परीक्षण में वर्मा गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जिसमें दोषी की सजा माफ कर दी गई थी।
अदालत के समक्ष, वर्मा की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि दोषी का 27 मामलों का आपराधिक इतिहास था, जिसे छूट देते समय ध्यान नहीं दिया गया था। यह भी प्रस्तुत किया गया कि सरकार की 2018 की छूट नीति के अनुसार अपराधी को पहले उम्रकैद की सजा दी गई है, जिससे वह छूट के लिए अयोग्य हो जाता है।
दूसरी ओर, राज्य सरकार ने अपने आदेश को सही ठहराते हुए एक हलफनामा दायर किया, जिसमें यह तर्क दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दोषी व्यक्तियों की समय से पहले रिहाई के लिए राज्यपाल के पास छूट देने की शक्ति है और आक्षेपित आदेश वैध रूप से पारित किया गया था।
यह तर्क दिया गया था कि राज्य की छूट नीति के अनुसार, उसने 12 साल 2 महीने बिना किसी छूट के और 14 साल 6 महीने और 10 दिन 6 की सजा के साथ सजा काट ली है और मेडिकल बोर्ड की राय थी कि दोषी को "कंजेस्टिव हर्ट फैल्योर" की शिकायत है, जो उसे छूट के लिए पात्र बनाती है।
राज्य ने अपने हलफनामे में माना था कि दोषी का आपराधिक इतिहास है। इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने शुरुआत में ही कहा कि राष्ट्रपति या राज्यपाल की ओर से क्षमादान की शक्ति का प्रयोग या गैर-प्रयोग, जैसा भी मामला हो, न्यायिक पुनर्विचार से मुक्त नहीं है।
केस टाइटलः संजय वर्मा बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. - 10924 of 2019]
केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 129

