नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण पर आधारित रिपोर्ट मामले में अरुण पुरी और प्रभु चावला को राहत
Shahadat
30 Oct 2025 1:17 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में इंडिया टुडे के पूर्व संपादक प्रभु चावला और पत्रिका समूह के प्रधान संपादक अरुण पुरी के खिलाफ बाल तस्करी और वेश्यावृत्ति पर 2003 की खोजी रिपोर्ट से संबंधित आपराधिक कार्यवाही रद्द की।
जस्टिस बृज राज सिंह की पीठ ने कहा कि 'लड़कियों की मंडी' शीर्षक वाला लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 153 या 153ए के तहत कोई अपराध नहीं बनता, क्योंकि आवेदकों का दोनों समुदायों के बीच किसी भी प्रकार की नफरत को बढ़ावा देने का कोई इरादा नहीं था।
संक्षेप में मामला
2004 में लखनऊ के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट (CBI) के समक्ष एहतिशाम मिर्ज़ा नामक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई, जिसमें चावला और पुरी पर IPC की धारा 500 [मानहानि], 153 [दंगा भड़काने के इरादे से जानबूझकर उकसावे की कार्रवाई करना] और 153ए [धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य बढ़ाना और सद्भावना बनाए रखने के लिए हानिकारक कार्य करना] के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया कि एक समुदाय के कुछ सदस्य नाबालिग लड़कियों को हज यात्रियों को 'यौन दासी' के रूप में बेच रहे थे। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि इससे बेदिया समुदाय में अशांति फैल गई।
शिकायत पर कार्रवाई करते हुए मजिस्ट्रेट ने मई 2007 में आवेदकों को समन जारी किया।
इसके बाद चावला और पुरी ने CrPC की धारा 482 के तहत वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और समन आदेश और आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की।
उन्होंने तर्क दिया कि लेख में देश के विभिन्न हिस्सों में बाल श्रम और बाल वेश्यावृत्ति के ज्वलंत मुद्दे को उजागर किया गया। इश लेख का उद्देश्य आम जनता और अधिकारियों के ध्यान में लाना था।
उनके वकील ने दृढ़ता से तर्क दिया कि लेख में ऐसे किसी भी मौखिक या लिखित शब्द का स्पष्ट रूप से प्रतिनिधित्व नहीं है, जो दोनों समूहों या समुदायों के बीच वैमनस्य, शत्रुता या घृणा की भावना को बढ़ावा देता हो या पैदा करने का प्रयास करता हो।
बता दें, 13 अक्टूबर, 2003 को इंडिया टुडे के अंग्रेजी और हिंदी संस्करणों में प्रकाशित इस रिपोर्ट ने कथित तौर पर भारत भर में [पंजाब, बंगाल और हैदराबाद से] सक्रिय तस्करों के गठजोड़ का पर्दाफाश किया, जो युवा लड़कियों को जबरन विवाह, वेश्यावृत्ति और घरेलू गुलामी के लिए बेचते हैं।
रिपोर्ट में हैदराबाद स्थित कार्यकर्ता डॉ. सुनीता कृष्णन का हवाला दिया गया। बताया गया कि कैसे गरीब माता-पिता को "हज यात्रियों की यौन इच्छाओं को पूरा करने" के लिए बेटियों को विदेश भेजने के लिए धोखा दिया गया।
रिपोर्ट में पीड़ितों के दर्दनाक व्यक्तिगत अनुभव भी वर्णित हैं, जिन्होंने अपने शोषण और कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा उनकी सुरक्षा में विफलता के बारे में बताया।
अपने 20-पृष्ठ के आदेश में न्यायालय ने कहा कि किसी समुदाय के भीतर अशांति या शोषण का मात्र उल्लेख IPC की धारा 153 या 153ए के तहत तब तक लागू नहीं हो सकता जब तक कि घृणा या हिंसा भड़काने का स्पष्ट इरादा न हो।
खंडपीठ ने कहा,
"इस न्यायालय का मानना है कि ऐसी कोई स्थिति नहीं है, जहां न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंच सके कि आवेदक मौखिक या लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य चित्रणों या अन्यथा द्वारा विभिन्न धार्मिक, नस्लीय या क्षेत्रीय समूहों, जातियों या समुदायों के बीच वैमनस्य या शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावनाओं को बढ़ावा देता है या बढ़ावा देने का प्रयास करता है या सद्भाव बनाए रखने के लिए हानिकारक कार्य करता है या सार्वजनिक शांति भंग करने की संभावना रखता है।"
मंजर सईद खान बनाम महाराष्ट्र राज्य (2007), जावेद अहमद हजाम बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य 2024 लाइवलॉ (SC) 208 और पेट्रीसिया मुखिम बनाम मेघालय राज्य LL 2021 SC 182 मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने दोहराया कि शत्रुता को बढ़ावा देने या सार्वजनिक अव्यवस्था भड़काने का इरादा IPC की धारा 153A के तहत अपराध के लिए अनिवार्य शर्त है।
पीठ ने कहा कि सूचना के आधार और स्रोत का उल्लेख किया गया "जिसमें यह स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला मानव तस्करी का केंद्र बन गया, जहां नाबालिग लड़कियों को यौन संतुष्टि के लिए बेचा जाता है"।
पीठ ने आगे कहा कि भले ही यह उल्लेख किया गया हो कि बेदिया समुदाय में अशांति है, इसका मतलब यह नहीं है कि यह दो समूहों या समुदाय के बीच वैमनस्य का मामला है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ए) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। वर्तमान मामले में नाबालिग लड़कियों की दुर्दशा और उनके यौन शोषण को प्रकाशित किया गया। इससे दो समूहों या समुदायों के बीच कोई वैमनस्य या अशांति पैदा नहीं होती है।
मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए समन आदेश के साथ-साथ पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी गई।
Case title - Prabhu Chawla vs. State of U.P. and another and a connected matter

