इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट को पक्षकार को क्या करने या क्या नहीं करने की सलाह देने के लिए फटकार लगाई

LiveLaw News Network

8 Nov 2020 8:54 AM GMT

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक "अजीब आदेश" पारित करने के लिए एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को फटकार लगाई , जिसने "मुवक्किल (अदालत के समक्ष मौजूद वकील) को क्या करने और क्या नहीं करने की सलाह दी थी ।

    जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की बेंच ने अपने आदेश में यह टिप्पणी की,

    "यह अदालत विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा दिखाए गए इस प्रकार के आदेशों के लिए अपने सबसे मजबूत अपवाद और अभेद्यता को रिकॉर्ड करती है और विश्वास करती है कि वह भविष्य में इस प्रकार के आदेश पारित नहीं करेंंगे।।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    न्यायिक मजिस्ट्रेट, देवरिया द्वारा पारित 02.01.2020 के आदेश के खिलाफ 482 सीआरपीसी के तहत उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर किया गया था। यह आदेश 2014 के एनसीआर नंबर 217 प्रकरण संख्या 962 2014 के अंतर्गत धारा 323, 504, 506 आईपीसी के तहत दर्ज अपराध पर सुनवाई के दौरान दिया गया।

    मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही

    आवेदक/आरोपी (मुकेश) के वकील द्वारा 2014 के एनसीआर नंबर 217 प्रकरण संख्या 2018 के केस नंंबर 962 में न्यायिक मजिस्ट्रेट देवरिया के समक्ष आवेदन दायर किया गया था।

    इस आवेदन में न्यायालय को बताया गया कि 2014 के एनसीआर नंबर 217 (जिला देवरिया/पीएस फतेपुर) से शुरू 2018 के प्रकरण संख्या 962 में कोई प्रगति नहीं हुई थी और न ही उक्त मामले में कोई जांच हुई थी।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि उक्त मामले में आवेदक/अभियुक्त को आरोपी बना दिया गया था।

    अंत में कोर्ट के समक्ष प्रार्थना की गई कि यदि कोर्ट इसे उचित ढंग से सोचता है तो 2014 के एनसीआर नंबर 217 से उत्पन्न 2018 के केस नंबर 962 से आरोपियों का नाम हटाने का निर्देश देते हुए आदेश पारित किया जाए।

    इसके बाद पार्टी के काउंसलर्स की सुनवाई करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में 02-01-2020 को नोट किया कि,

    "जहां तक आरोपी/याचिकाकर्ता मुकेश का नाम एनसीआर से हटाने का आदेश देने का सवाल है, इस अदालत के पास ऐसा करने की कोई शक्ति नहीं है । यह क्षेत्राधिकार/शक्ति एस 482 सीआरपीसी के तहत उच्च न्यायालय में निहित है।

    इसके बाद आवेदक ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर प्रार्थना की कि 02.01.2020 के आदेश को रद्द कर दिया जाए।

    हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा,

    "यह संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित अजीब आदेश है, जिसके तहत पीठासीन न्यायाधीश ने अपने मुवक्किल को ऐसा करने या क्या नहीं करने की सलाह दी है ।

    अंत में न्यायिक दंडाधिकारी देवरिया को आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तिथि से एक पखवाड़े के अंदर कानून के अनुरूप उपयुक्त आदेश पारित करने का निर्देश दिया गया।

    उपरोक्त अवलोकन के साथ, 482 सीआर.पी.सी. के तहत आवेदन का निस्तारण किया गया।

    आरोपी/आवेदक मुकेश की ओर से अधिवक्ता राम मोहन यादव और खुर्शीद आलम पेश हुए।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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