इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रयागराज और लखनऊ की पीठों के बीच प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के पुन: आवंटन की याचिका पर नोटिस जारी किया
LiveLaw News Network
20 March 2021 2:56 PM IST
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने प्रयागराज और लखनऊ की उच्च न्यायालय की दो पीठों के बीच क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार को दोबारा आवंटित करने संबंधी एक जनहित याचिका पर अवध बार एसोसिएशन को नोटिस जारी किया है।
जस्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस मनीष माथुर की डिवीजन बेंच ने कहा कि एसोसिएशन इस सबंध में अपने विचार से कोर्ट को अवगत कराए।
यह मामला ऐसे समय सामने आया है, जब राज्य में ट्रिब्यूनलों की स्थापना के मुद्दे पर दोनों पीठों के बार एसोसिएशन पहले से ही एक दूसरे खिलाफ हैं।
मौजूदा जनहित याचिका इस बात पर जोर देती है कि मौजूदा व्यवस्था के तहत, यूपी के 60 जिलों के मामलों की सुनवाई प्रयागराज स्थित प्रधान सीट के अधिकार क्षेत्र में होती है, जबकि 15 जिलों के मामले लखनऊ में दर्ज किए जाते हैं।
याचिका में कहा गया है, "याचिकाकर्ताओं की शिकायत यह है कि उत्तर प्रदेश राज्य के 75 जिलों में से, 60 जिलों का प्रादेशिक क्षेत्राधिकार प्रयागराज स्थित उच्च न्यायालय है, जबकि लखनऊ स्थित उच्च न्यायालय के समक्ष 15 जिलों का ही अधिकार क्षेत्र है।"
उन्होंने आगे कहा है कि प्रयागराज के अधिकार क्षेत्र में शामिल 60 जिलों में से कई ऐसे जिले हैं, जहां से इन जिलों में रहने वाला व्यक्तियों को प्रयागराज जाने के लिए लखनऊ से होकर गुजरना पड़ता है।
याचिका में आगे कहा गया है कि न केवल वादियों बल्कि इन जिलों में तैनात लोक सेवकों को भी बहुत परेशानी उठानी पड़ती है, जब उन्हें प्रयागराज आने के लिए कहा जाता है...
;याचिका में कहा गया है, "बरेली और मुरादाबाद मंडल में तैनात लोक सेवक अदालत के मामलों में भाग लेने के लिए लखनऊ पहुंच सकते हैं और उसी दिन अपनी तैनाती की जगह पर वापस आ सकते हैं और अपने कार्यालय पहुंचने के बाद कार्यालय से जुड़े कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं, जबकि यदि उन्हें प्रयागराज में पेश होना पड़ता है तो वे एक दिन पहले कार्यालय छोड़ने के लिए बाध्य होते हैं और अगले दिन या देर रात तक अपनी तैनानी के स्थान पर वापस आ पाते हैं। "
याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए अन्य आधार इस प्रकार हैं:
-लखनऊ शहर एक बखूबी कनेक्टेड शहर है, जहां प्रयागराज की तुलना में ट्रेन, बस और उड़ान सेवाएं बहुत बेहतर हैं।
-प्रयागराज उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है, जबकि लखनऊ राज्य के केंद्र में स्थित है।
-बेंच के निर्माण के पीछे इरादा अपने निवास स्थान के पास न्याय स्थल उपलब्ध कराना है, हालांकि यह सिद्धांत लखनऊ में बनाई गई बेंच पर लागू नहीं होता है।
याचिका में यूनाइटेड प्रोविंसेंस हाईकोर्ट एमलगेमेशन ऑर्डर, 1948 और इंडियन हाईकोर्ट एक्ट, 1861 की प्रयोज्यता को भी चुनौती दी गई है, जो घोषणा करती है कि उच्च न्यायालय की प्रमुख सीट इलाहाबाद में होगी।
यह दलील दी गई है कि 1861 का अधिनियम और 1948 का आदेश 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद संचालित होना बंद हो गया।
याचिका में आगे कहा गया है, "वर्तमान उच्च न्यायालय हमारे संविधान के अनुच्छेद 216 के माध्यम से निर्मित है,...आक्रमणकारियों (ब्रिटिश संसद) द्वारा पारित अधिनियम से नहीं। "
याचिका अधिवक्ता अशोक पांडे, शिवा कांत त्रिपाठी, डॉ शमशेर यादव जगराना, दिनेश कुमार त्रिपाठी, रमाकांत दीक्षित, जीएल यादव, अंकित मिश्रा और मोनिका सिंह ने दायर की है।
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2018 में, सुप्रीम कोर्ट की तीन-जजों की खंडपीठ ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थायी पीठ की स्थापना की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
उत्तर प्रदेश के भाजपा सांसद विजय तोमर ने संसद में इस मुद्दे को उठाया था। उन्होंने कहा था कि राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के उच्च न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तुलना में राज्य के पश्चिमी जिलों के अधिक निकट हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में कहा, "यह न्यायिक निर्धारण और निर्देशों का विषय नहीं हो सकता।" तोमर ने केंद्र से इस मुद्दे पर विचार करने का आग्रह किया, विशेष रूप से महामारी को देखते हुए, जहां यात्राएं प्रतिबंधित थी।
केस टाइटिल: अशोक पांडे और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।
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