सांसद चंद्रशेखर आज़ाद को व्हाट्सएप पर धमकी देने वाले व्यक्ति को हाईकोर्ट से मिली अंतरिम राहत

Shahadat

5 Oct 2025 8:55 PM IST

  • सांसद चंद्रशेखर आज़ाद को व्हाट्सएप पर धमकी देने वाले व्यक्ति को हाईकोर्ट से मिली अंतरिम राहत

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में आज़ाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर आज़ाद 'रावण' को व्हाट्सएप ग्रुप मैसेज में कथित तौर पर धमकी देने के आरोपी व्यक्ति को बलपूर्वक कार्यवाही से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया।

    जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने नीतीश अग्रवाल उर्फ ​​सोना पांडे नामक व्यक्ति को राहत प्रदान की। सोना पांडे भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 351(2) (आपराधिक धमकी) के तहत दर्ज FIR के संबंध में संज्ञान और समन आदेश का सामना कर रहा है।

    लाइव लॉ को प्राप्त हुई FIR की कॉपी में आरोप लगाया गया कि आरोपी 'गौ रक्षा सहारनपुर' नामक व्हाट्सएप ग्रुप में सांसद चंद्रशेखर आज़ाद की हत्या की साजिश रच रहा है।

    FIR में आगे आरोप लगाया गया कि अभियुक्त समूह के अन्य सदस्यों को यह कहकर उकसा रहा है कि 'उसका (आज़ाद) इलाज करना होगा' ("उसका इलाज करना पड़ेगा"), जिससे समाज में नफ़रत और दुश्मनी फैल रही है और राज्य व देश भर में दंगे भड़काने की कोशिश की जा रही है।

    बता दें, अभियुक्त द्वारा यह कथित संदेश सांसद आज़ाद द्वारा कुंभ मेले में पवित्र स्नान के लिए आने वाले लोगों के बारे में की गई कथित टिप्पणी के जवाब में भेजा गया था।

    दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा की मांग करते हुए अभियुक्त ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां उसके वकील ने तर्क दिया कि उसे झूठा फंसाया गया। साथ ही यह कहना गलत है कि उसने व्हाट्सएप ग्रुप मेंबर्स को नफ़रत फैलाने के लिए उकसाया।

    उसके वकील एडवोकेट सुमित गोयल ने आगे तर्क दिया कि FIR की धारा 351(2), IPC की धारा 503 के समान है, इसलिए कथित अपराध ज़मानतीय, असंज्ञेय है और अधिकतम दो साल के कारावास से दंडनीय है।

    ऐसे मामले में यह तर्क दिया गया कि पुलिस इसे एक सामान्य संज्ञेय मामला मानकर आरोपपत्र दाखिल नहीं कर सकती, क्योंकि असंज्ञेय अपराध में आरोपपत्र को शिकायत माना जाता है और मुकदमा पुलिस रिपोर्ट के आधार पर शुरू किए गए मामले की तरह आगे नहीं बढ़ सकता।

    बी. एन. जॉन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, 2025 लाइव लॉ (एससी) 4 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब अपराध गैर-गंभीर अपराधों से संबंधित हो, जिन्हें आमतौर पर असंज्ञेय अपराधों की श्रेणी में रखा जाता है तो पुलिस मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना जांच शुरू नहीं कर सकती।

    उनके वकील ने अदालत को यह भी बताया कि वह पहले से ही जमानत पर हैं और सुप्रीम कोर्ट के अर्नेश कुमार मामले में दिए गए फैसले के मद्देनजर हाईकोर्ट में दर्ज FIR के खिलाफ उनकी याचिका का निपटारा कर दिया गया।

    दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि मामले पर विचार की आवश्यकता है। इसलिए प्रतिवादी नंबर 2 को नोटिस जारी करते हुए अदालत ने उन्हें प्रति-शपथपत्र दाखिल करने का समय दिया।

    मामला 30 अक्टूबर, 2025 को सूचीबद्ध किया गया, क्योंकि अदालत ने आदेश दिया कि अगली सुनवाई की तारीख तक ट्रायल कोर्ट आवेदक के विरुद्ध कोई भी बलपूर्वक प्रक्रिया नहीं अपनाएगी।

    Case title - Nitish Agrawal Alias Sona Pandey vs. State of U.P. and Another

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