इलाहाबाद हाईकोर्ट ने COVID वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल रूल्स का उल्लंघन करने के आरोपी इंटर्न छात्र को जमानत दी

LiveLaw News Network

23 Jun 2021 12:00 PM GMT

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक छात्र को जमानत दे दी, जिस पर COVID वैक्सीन नैदानिक परीक्षण नियमों का उल्लंघन करने और आवश्यक दस्तावेजों/ कागजात/ अनुमति के बिना कथित तौर पर वैक्सीन लगाने में शामिल होने का आरोप लगाया गया है।

    न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की पीठ ने एमएससी के चौथे सेमेस्टर के छात्र सुधाकर यादव को जमानत दे दी है। जो हिमगिरी जी विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड के संस्थान में नैदानिक अनुसंधान का अध्ययन कर रहा है।

    आवेदक ने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम की धारा 15 (2), 15 (3) और आईपीसी की धारा 420 के तहत एक मामले में अपनी जमानत याचिका दायर की थी।

    संक्षेप में तथ्य (अभियोजन के आरोपों के अनुसार)

    फरवरी 2021 में चिकित्सा अधीक्षक, सीएचसी, दादरी को पता चला कि गोपाल पैथोलॉजी लैब में आम जनता को कोरोना वायरस का निःशुल्क टीका लगाया जा रहा है और इसके बाद मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारी को दी गई। जिसके बाद इस मामले की जांच डॉ. संजीव कुमार और ड्रग इंस्पेक्टर बागपत ने की।

    जांच के दौरान पाया गया कि एक एनजीओ के सहयोग से निःशुल्क कोरोना टीकाकरण शिविर का आयोजन किया गया था और जब जांच अधिकारी लैब में पहुंचे तो एक व्यक्ति वैक्सीन का इंजेक्शन लगा रहा था।

    एक विशिष्ट प्रश्न पर, इस व्यक्ति ने बताया कि वह और प्राथमिकी में नामित अन्य आरोपी फ्लोर्स अस्पताल के कर्मचारी हैं और जिन्हें अस्पताल द्वारा टीकाकरण के लिए अधिकृत किया गया है, लेकिन जब निरीक्षण दल ने इस संबंध में कागज की मांग की, तो उनके पास इस संबंध में कोई कागजात नहीं मिले।

    प्रस्तुतियाँ

    आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि वह निर्दोष है और उसे वर्तमान मामले में झूठा फंसाया गया है और वह इंस्टीट्यूट ऑफ क्लिनिकल रिसर्च इंडिया (आईसीआरआई) की देखरेख में देहरादून स्थित एक विश्वविद्यालय द्वारा चलाए जा रहे एमएससी, क्लिनिकल रिसर्च का कोर्स कर रहा है।

    आगे प्रस्तुत किया गया था कि आवेदक को आईसीआरआई की सहमति से फ्लोर्स अस्पताल, गाजियाबाद में इंटर्नशिप के लिए भेजा गया था।

    विशेष रूप से यह निवेदन किया गया था कि आवेदक ने क्लिनिकल परीक्षण में टीकाकरण के लिए स्वयंसेवकों को आश्वस्त करके न तो नैदानिक परीक्षण नियमों का उल्लंघन किया है और न ही कोई अपराध किया है।

    यह भी कहा गया कि गोपाल पैथोलॉजी लैब में स्वयंसेवकों के नैदानिक ​​परीक्षण टीकाकरण के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर प्राप्त किए गए हैं और टीकाकरण के लिए स्वयंसेवकों की सहमति को प्राप्त करते समय कुछ भी छुपाया नहीं गया है और इस तरह आईपीसी की धारा 420 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

    कहा गया कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों से आवेदक के खिलाफ भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम की धारा 15(2) और 15(3) के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। आवेदक 16.02.2021 से जेल में है।

    कोर्ट का आदेश

    पक्षकारों के वकीलों को सुनने और अभियुक्त की संलिप्तता, सजा की गंभीरता के साथ-साथ तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करते हुए, अदालत ने पाया कि इस स्तर पर मामले की योग्यता पर टिप्पणी किए बिना यह जमानत प्रदान करने के लिए एक उपयुक्त केस है।

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