इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग को जेजे एक्ट की धारा 12 के तहत जमानत दी, कहा- अपराध की प्रकृति जमानत याचिका की अस्वीकृति के लिए प्रासंगिक आधार नहीं

Shahadat

10 March 2023 8:17 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग को जेजे एक्ट की धारा 12 के तहत जमानत दी, कहा- अपराध की प्रकृति जमानत याचिका की अस्वीकृति के लिए प्रासंगिक आधार नहीं

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस संजय कुमार पचौरी की पीठ ने जेजे एक्ट (किशोर न्याय अधिनियम, 2015) की धारा 12 के तहत उस व्यक्ति को जमानत दी, जो घटना के समय किशोर था और जघन्य अपराध का आरोपी था। अदालत ने कहा कि अपीलीय अदालत और जेजे बोर्ड (किशोर न्याय बोर्ड) जेजे एक्ट की धारा 12 के अनिवार्य प्रावधान की ठीक से सराहना करने में विफल रहे हैं।

    भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302,201,34 के तहत आरोपी व्यक्ति की जमानत अर्जी जेजे बोर्ड ने अपराध की गंभीरता के आधार पर खारिज कर दी और कहा कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होता है कि अभिभावक किशोर का अभियुक्त व्यक्ति पर कोई प्रभावी नियंत्रण नहीं है और उसकी रिहाई के बाद इसी तरह का अपराध फिर से घटित होने की आशंका है।

    हाईकोर्ट में नाबालिग के पिता के माध्यम से आपराधिक पुनर्विचार दायर की गई।

    इसमें कहा गया की आरोपी एक्स को मामले में झूठा फंसाया गया है और मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। साथ ही संदेह और अफवाह के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई।

    राज्य की ओर से वकील ने तर्क दिया कि आरोपी ने जघन्य अपराध किया है और अपराध की गंभीरता को देखते हुए आपराधिक पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जानी चाहिए।

    दोनों पक्षों द्वारा की गई दलीलों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह कानून की स्थापित स्थिति है कि जेजे एक्ट, 2015 की धारा 12 की उप-धारा (1) में 'होगा' (shall) शब्द के प्रयोग का महत्व बहुत बड़ा है। आमतौर पर जेजेबी किशोर को जमानत पर रिहा करने के लिए बाध्य है।

    इसके अलावा अदालत ने स्पष्ट किया कि जेजे एक्ट की धारा 12 के प्रावधानों को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि विधायिका का इरादा अपराध की प्रकृति या गंभीरता के बावजूद किशोर को जमानत देना है। जमानत केवल ऐसे मामलों में अस्वीकार की जा सकती है जहां यह विश्वास करने के लिए उचित आधार हो कि रिहाई के बाद किशोर किसी ज्ञात अपराधी से जुड़ सकता है या उसकी रिहाई उसे नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डाल सकती है, या कि उसकी रिहाई न्याय के सिरों को पराजित कर देगी। अपराध की गंभीरता किशोर को जमानत अस्वीकार करने के लिए प्रासंगिक विचार नहीं है।

    केस टाइटल- X (माइनर) बनाम यूपी राज्य और अन्य

    आपराधिक पुनर्विचार याचिका नंबर- 3194/2022

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