इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 174 और धारा 157 के तहत की गई जांच और अन्वेषण के बीच अंतर स्पष्ट किया

LiveLaw News Network

21 Aug 2022 8:52 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में सीआरपीसी की धारा 174 [आत्महत्या आदि पर पुलिस का जांच करना और रिपोर्ट देना] और धारा 157 [प्रारंभिक अन्वेषण की प्रक्रिया] के बीच अंतर समझाया है।

    कोर्ट ने जोर देकर कहा कि सीआरपीसी की धारा 174 के तहत कानूनी जांच (Inquiry) की तैयारी वास्तव में जांच की प्रकृति में है और इसकी तुलना सीआरपीसी की धारा 157 के तहत अन्वेषण (Investigation) के साथ नहीं की जा सकती, जो सीआरपीसी की धारा 154 के तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद शुरू होती है।

    कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 174 का एक अलग और विशिष्ट उद्देश्य है क्योंकि यह इस बात की जांच से संबंधित है कि क्या किसी व्यक्ति ने आत्महत्या की है या वह किसी दुर्घटना में मारा गया है या यह संदेह पैदा करने वाली परिस्थितियों में मरा है जिसमें किसी अन्य व्यक्ति के अपराध करने की बू आती हो।

    दूसरी ओर, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 157 के तहत एक पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी के लिए उस अपराध को लेकर संदेह करने का कारण बनता है, जिसके लिए उसे जांच करने का अधिकार है और वह इन्वेस्टिगेशन के उद्देश्य से मौके पर कार्यवाही करता है।

    कोर्ट ने कहा कि धारा 174 के तहत की गई जांच स्वाभाविक या अस्वाभाविक मौत की सीमा तक सीमित है, जबकि एफआईआर दर्ज करने की शर्त यह है कि इसके लिए एक सूचना अवश्य होनी चाहिए और उस सूचना में संज्ञेय अपराध का खुलासा अवश्य होना चाहिए।

    कोर्ट ने जोर देकर कहा कि सीआरपीसी की धारा 174 के तहत जांच की कार्यवाही की प्रकृति सीआरपीसी की धारा 157 के तहत अन्वेषण से पूरी तरह अलग है।

    संक्षेप में मामला

    यह मामला एक लड़के की मौत से जुड़ा है। छब्बीस अक्टूबर, 2021 को पुलिस को सूचना मिली थी कि हाथरस जंक्शन स्थित जीआरपी चौकी से अप लाइन प्लेटफॉर्म नंबर 2 के पास एक अज्ञात शव पड़ा है। पुलिस वहां पहुंची और उसी दिन मृतक के शव की जांच की गई और पंचनामा तैयार किया गया और उसके बाद 26.10.2021 को ही पोस्टमॉर्टम भी किया गया, जिससे संकेत मिलता है कि युवक की मौत मृत्यु-पूर्व चोट के परिणामस्वरूप सदमे और रक्तस्राव के कारण हुई थी।

    रिपोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 174(1) के तहत दर्ज की गई। पंचनामा कराने के बाद 26.10.2021 को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और विस्तृत दुर्घटना रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।

    इसके बाद 28 अक्टूबर 2021 को मृतक के भाई द्वारा मामले में एफआईआर दर्ज करायी गयी, जिसमें कहा गया था कि वह 28.10.2021 को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट लेने अलीगढ़ आया था और जब वह अलीगढ़ रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठा था तो उसे पता चला कि मृतक ऊंचाहार एक्सप्रेस की जनरल बोगी में बैठा था, जहां उसकी मुलाकात आरोपी (गौरव उर्फ गोविंद) से हुई। कुछ देर बाद हाथरस रेलवे स्टेशन पर एक लड़के (मृतक) और गौरव के बीच झगड़ा हो गया और आरोपी ने लड़के को ट्रेन से फेंक दिया।

    मामले में जांच की गई और सीआरपीसी की धारा 161 के तहत शिकायतकर्ता के साथ-साथ अन्य गवाहों के बयान दर्ज किए गए तथा आवेदक/अभियुक्त के विरुद्ध अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ के समक्ष भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।

    मामले का संज्ञान लिया गया और आरोप तय किए गए। आरोप पत्र के साथ-साथ अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, अलीगढ़ द्वारा उसके खिलाफ आरोप तय करने के आदेश को चुनौती देते हुए आरोपी ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    दलीलें

    आरोपी ने दलील दी कि पुलिस ने इस मामले में जांच की दो कार्रवाई की गयी- पहली सीआरपीसी की धारा-174 के तहत और दूसरी सीआरपीसी धारा- 157 के तहत। यह दलील दी गई कि [28 अक्टूबर, 2021 को मृतक के भाई के कहने पर दर्ज] दूसरी एफआईआर के अनुसरण में आरोप तय किए गए हैं, जो कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं हैं।

    अंत में यह प्रस्तुत किया गया कि एक ही घटना के लिए यह यह दूसरी एफआईआर है, इसलिए, कोर्ट द्वारा आरोप तय करने के लिए शुरू की गई कार्यवाही कानून की नजर में उचित नहीं है और पहली रिपोर्ट (सीआरपीसी की धारा 174 के तहत तैयार) को विचार के लिए लिया जाना चाहिए।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    कोर्ट ने कहा कि रेलवे लाइन के पास मिले एक शव के बारे में पुलिस को दी गई जानकारी किसी भी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा नहीं करती है और इसलिए, जीडी में दर्ज की गई उक्त सूचना को एफआईआर की संज्ञा नहीं दी जा सकती।

    कोर्ट ने आगे कहा कि जांच सीआरपीसी की धारा 174 के तहत की गई थी और इस प्रकार, पुलिस ने ऐसी किसी सूचना के आधार पर कोई एफआईआर दर्ज करने का निर्णय सही लिया था क्योंकि पुलिस केवल यह पता लगाने के लिए जांच कर रही थी कि मौत प्राकृतिक है या अप्राकृतिक।

    नतीजतन, कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में संज्ञेय अपराध की जानकारी शिकायतकर्ता द्वारा 28 अक्टूबर, 2021 को दी गई और उसके बाद, पुलिस ने जांच शुरू की क्योंकि हत्या के कृत्य का खुलासा एफआईआर में किया गया था।

    कोर्ट ने टिप्पणी की,

    "... 28.10.2021 को अपराध के लिए दर्ज एफआईआर संज्ञेय है, इसलिए, सीआरपीसी की धारा 157 के तहत जांच की गई। 26.10.2021 की पहली रिपोर्ट रेलवे प्राधिकरण के पोर्टल/पॉइंट्समैन मुकेश कुमार द्वारा एक अज्ञात शव के संबंध में दी गई जानकारी पर आधारित थी, जो रेलवे लाइन के पास पड़ा था और उसे एफआईआर नहीं कहा जा सकता। मृतक की मृत्यु, पोस्टमॉर्टम जांच और विस्तृत दुर्घटना रिपोर्ट के संबंध में सीआरपीसी की धारा 174 के तहत जांच रिपोर्ट तैयार करना, वास्तव में जांच की प्रकृति में था और इसकी तुलना सीआरपीसी की धारा 157 के तहत विचाराधीन जांच से नहीं की जा सकती।"

    कोर्ट ने यह देखते हुए कि रिकॉर्ड पर सामग्री उपलब्ध होने के बाद आरोप तय किए गए हैं और ट्रायल कोर्ट के पास आरोप तय करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल - गौरव @ गोविंद बनाम यू.पी. सरकार एवं अन्य

    साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (इलाहाबाद 379

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