इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के कैबिनेट मंत्री डॉ. संजय निषाद के खिलाफ आपराधिक मामला खत्म करने की राज्य की याचिका को अनुमति दी

Shahadat

30 Nov 2023 7:40 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के कैबिनेट मंत्री डॉ. संजय निषाद के खिलाफ आपराधिक मामला खत्म करने की राज्य की याचिका को अनुमति दी

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री डॉ. संजय कुमार निषाद के खिलाफ 2015 में रेलवे एक्ट के तहत दर्ज आपराधिक मामले को वापस लेने की राज्य सरकार की अर्जी स्वीकार कर ली।

    जस्टिस राज बीर सिंह की पीठ ने यह आदेश राज्य सरकार द्वारा दायर आपराधिक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिसमें इस साल सितंबर में अतिरिक्त सीजेएम, गोरखपुर द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। उक्त आदेश में विशेष लोक अभियोजक द्वारा सीआरपीसी की धारा 321 के तहत डॉ. संजय कुमार निषाद के खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई वापसी के लिए दायर याचिका खारिज कर दी गई थी।

    इसके साथ अदालत ने एडिशनल सीजेएम के आदेश को चुनौती देने वाली सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर डॉ. निषाद की अलग याचिका को भी अनुमति दे दी।

    सीआरपीसी की धारा 321 में प्रावधान है कि लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक न्यायालय की सहमति से अभियोजन से वापसी के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं।

    डॉ. निषाद के खिलाफ रेलवे एक्ट की धारा 174 के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि डॉ. निषाद, तत्कालीन अध्यक्ष, निषाद एकता परिषद के साथ-साथ कई लोग शामिल थे। निषाद समुदाय ने रेलवे ट्रैक पर प्रदर्शन किया, जिससे रेलवे यातायात बाधित हुआ।

    उक्त मामले के लंबित रहने के दौरान, यूपी राज्य ने अभियोजन वापस लेने का फैसला किया और अभियोजन वापस लेने के लिए हाईकोर्ट की अनुमति इस साल अगस्त के आदेश के तहत दी गई।

    इसके बाद सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन को वापस लेने के लिए विशेष लोक अभियोजक द्वारा पी. सी. को आवेदन दिया गया, जिसे इस वर्ष सितंबर में ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि मामला अंतिम सुनवाई के चरण में लंबित है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, डॉ. निषाद के खिलाफ मामला वापस लेने के लिए हाईकोर्ट से कोई अनुमति नहीं ली गई।

    फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए सरकारी वकील ने कहा कि मामले के लंबित रहने के दौरान किसी भी स्तर पर अभियोजन वापस लिया जा सकता है।

    दी गई दलीलों और मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने केरल राज्य बनाम के अजित और अन्य एलएल 2021 एससी 328 मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि अभियोजन वापस लेने के लिए न्यायालय की सहमति आवश्यक है।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि इस तरह का आवेदन प्रस्तुत करते समय लोक अभियोजक को अपने विवेक का उपयोग करना होगा और ऐसी अनुमति दिए जाने की स्थिति में समाज पर उसके प्रभाव का भी ध्यान रखना होगा।

    अपने आदेश में न्यायालय ने यह भी दर्ज किया कि केवल यह तथ्य कि पहल सरकार की ओर से हुई, अभियोजन वापस लेने के लिए आवेदन रद्द नहीं किया जाएगा और अदालत को वापसी के कारणों को जानने का प्रयास करना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके। लोक अभियोजक इस बात से संतुष्ट है कि अभियोजन को वापस लेना अच्छे और प्रासंगिक कारणों से आवश्यक है।

    इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट ने पहले ही अश्विनी उपाध्याय के मामले के अनुसार सीआरपीसी की धारा 321 के तहत आवेदन करने की अनुमति दे दी और आरोपों की प्रकृति और मामले के तथ्यों के अनुसार, विवादित अभियोजन को वापस लेने का मामला बनाया गया।

    न्यायालय ने आगे कहा कि लोक अभियोजक ने स्वतंत्र रूप से अपना विवेक लगाया और कानून के अनुसार अपने विवेक का प्रयोग किया। इसलिए कानून की स्थापित स्थिति और वर्तमान मामले के तथ्यों के अनुसार, अतिरिक्त सीजेएम का आदेश पेटेंट अवैधता और विकृति से ग्रस्त है।

    नतीजतन, इसे एक तरफ रख दिया गया और अभियोजन वापस लेने के लिए सीआरपीसी की धारा 321 के तहत लोक अभियोजक द्वारा दायर आवेदन की अनुमति दी गई।

    केस टाइटल- उत्तर प्रदेश राज्य बनाम डॉ. संजय कुमार निषाद और एक जुड़ा हुआ मामला

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