इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी की हत्या के आरोपी को NSA के तहत निरोध के रखने का आदेश बरकरार रखा

LiveLaw News Network

17 Oct 2021 6:32 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी की हत्या के आरोपी को NSA के तहत निरोध के रखने का आदेश बरकरार रखा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की निर्मम हत्या की साजिश रचने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत पारित निरोध (Detention) का आदेश बरकरार रखा।

    न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने कहा कि भले ही डिटेंशन की अवधि पहले ही खत्म हो चुकी हो फिर भी हिरासत में लिए गए व्यक्ति/याचिकाकर्ता मोहसीन सलीम शेख के खिलाफ पारित निरोध आदेश में औचित्य पाया गया।

    आदेश बरकरार रखते हुए खंडपीठ ने कहा:

    "इस मामले के तथ्यों पर यह नहीं कहा जा सकता कि निरोध आदेश पारित नहीं किया जा सकता था या पारित आदेश वैध नहीं था या कानून के अनुसार नहीं था।"

    महत्वपूर्ण रूप से याचिकाकर्ता/बंदी ने एक जुलाई, 2021 को अपने डिटेंशन की अवधि पहले ही पूरी कर ली है। हालांकि, उसके खिलाफ एक आपराधिक मामले के कारण उसे जेल में बंद कर दिया गया।

    संक्षेप में तथ्य

    आरोपों के अनुसार, 18 अक्टूबर, 2019 को दो आरोपी अशफाक और मोइनुद्दीन ने योजनाबद्ध तरीके से कमलेश तिवारी के घर गए और दिनदहाड़े उसका गला काटकर और गोली मारकर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी।

    इस घटना में 21 दिसंबर, 2019 को याचिकाकर्ता/बंदी सहित 13 व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 और 120-बी सहित विभिन्न धाराओं के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।

    तिवारी की हत्या की कथित साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किए गए याचिकाकर्ता/बंदी शेख ने निचली अदालत के समक्ष 23 जून, 2020 को जमानत याचिका दायर की थी। हालांकि, 21 जुलाई, 2020 के आदेश के तहत इसे खारिज कर दिया गया था।

    इसके बाद उसने जमानत के लिए अपने आवेदन के साथ हाईकोर्ट का रुख किया, जो कि अभी लंबित है।

    इस बीच 24 जून, 2020 को थाना प्रभारी द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ आयुक्त, लखनऊ को एक डोजियर प्रस्तुत किया गया था। इसमें इस आधार पर निवारक हिरासत की सिफारिश की गई थी कि वह इस मामले में जमानत पाने की कोशिश कर रहा था। इसे आगे जिला मजिस्ट्रेट, लखनऊ को अग्रेषित करने का अनुरोध किया गया ताकि एन.एस.ए. उसके खिलाफ पारित किया जा सके।

    इसके अनुसरण में डीएम, लखनऊ ने दो जुलाई, 2020 को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत उनके खिलाफ एक निरोध आदेश पारित किया। उसी को चुनौती देते हुए बंदी याचिकाकर्ता मोहसीन सलीम शेख ने अपने नेक्स्ट फ्रेंड के माध्यम से हाईकोर्ट का रुख किया।

    उसने अपनी याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार के 24 सितंबर, 2020 के आदेश को भी चुनौती दी थी। इसमें हिरासत के आदेश को मंजूरी दी गई थी और 12 दिसंबर, 2020 के आदेश को चुनौती दी गई थी। साथ ही उसकी नजरबंदी आदेश की तारीख से नौ महीने की और अवधि के लिए बढ़ा दी गई थी।

    नजरबंदी के आधार पर यह कहा गया था कि शेख खुद को जमानत पर रिहा करने के लिए प्रयास कर रहा था (हत्या के आरोप में पकड़े जाने के बाद) और एक आसन्न संभावना थी कि अगर उसे जमानत पर रिहा किया गया, तो वह ऐसा ही अपराध करता रहेगा।

    निरोध आदेश में यह भी कहा गया कि एक आवश्यकता यह है कि यदि उसे रिहा किया जाता है तो इस बात की पूरी आशंका है कि लोगों में भय पैदा होगा और सार्वजनिक व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी।

    कोर्ट का आदेश

    शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि हिरासत के आधार पर लगाए गए आरोपों की श्रृंखला यह स्पष्ट करती है कि याचिकाकर्ता कमलेश तिवारी की हत्या की साजिश रचने वाला मुख्य व्यक्ति है।

    इसके अलावा, नजरबंदी के आधारों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने नोट किया:

    "प्रतिवादी/याचिकाकर्ता के खिलाफ विशिष्ट आरोप लगाया गया कि हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की हत्या की साजिश रचने वाला यह बंदी/याचिकाकर्ता ही है। आरोप है किउसने कमलेश तिवारी की हत्या के लिए सह-आरोपियों के लिए पिस्तौल और कारतूस की व्यवस्था की। साथ ही सह-अभियुक्तों को मिठाई का डिब्बा भी दिया ताकि जब सह-अभियुक्त कमलेश तिवारी की हत्या करने के लिए उसके घर गया तो किसी को भी उसकी मंशा पर संदेह न हो और आगे बंदी/याचिकाकर्ता ने कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले सह अभियुक्तों के लिए रेलवे टिकट की व्यवस्था भी की है।"

    कोर्ट का यह भी विचार था कि डिटेनिंग अथॉरिटी ने प्राधिकारी की रिपोर्टों को देखने के बाद इस मामले पर बारीकी से विचार किया और हिरासत के आदेश को सही ढंग से पारित किया। साथ ही व्यक्तिपरक संतुष्टि दर्ज की कि अगर उसे जमानत पर रिहा किया जाता है तो क्षेत्र में सांप्रदायिक सद्भाव के साथ-साथ सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने की पूरी आशंका है, इसलिए, उसे हिरासत में रखने की आवश्यकता है।

    इसे देखते हुए अदालत ने शेख के खिलाफ नजरबंदी आदेश पारित करने के आदेश में औचित्य पाते हुए कहा:

    "इन परिस्थितियों में यह नहीं कहा जा सकता कि हिरासत का आदेश इस आधार पर अवैध था कि यह तब पारित किया गया था जब बंदी पहले से ही हिरासत में था... हिरासत के आधार पर एक विशिष्ट आरोप है कि बंदी को हिरासत में लिया गया था। जिसने हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की हत्या की साजिश रची थी।

    यह रेखांकित करते हुए कि हिरासत आदेश पारित करने के लिए एनएसए के तहत शक्ति को आधार बनाया गया, अदालत ने शेख द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया।

    केस का शीर्षक - मोहसीन सलीम शेख बनाम यू.ओ.आई. सचिव के माध्यम से गृह मंत्रालय, नई दिल्ली एवं अन्य।

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