'राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- चुनावी याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला होना चाहिए
Shahadat
12 Sept 2023 3:52 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 के लोकसभा चुनावों में तत्कालीन बिजनौर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद कुंवर भारतेंद्र सिंह के चुनाव को चुनौती देने वाली भाजपा नेता राजेंद्र कुमार की चुनाव याचिका खारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक जीवन में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है।
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने कहा कि न केवल लोकसभा 2014-2019 का कार्यकाल समाप्त हो गया है, बल्कि आगामी लोकसभा 2019-2024 का कार्यकाल भी कुछ महीनों के भीतर समाप्त होने की संभावना है। इसके साथ ही उन्होंने चुनाव याचिका पर यथाशीघ्र निर्णय लेने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे समय की बर्बादी के कारण यह निष्फल न हो जाए।
न्यायालय ने वर्ष 2014 में कुमार द्वारा दायर चुनावी याचिका में ये टिप्पणियां कीं, जिसमें कहा गया था कि भाजपा उम्मीदवार के रूप में उनका नामांकन तत्कालीन रिटर्निंग अधिकारी ने इस आधार पर गलत तरीके से खारिज कर दिया था कि भाजपा ने बाद में सिंह को टिकट दिया था।
मामला संक्षेप में
याचिकाकर्ता (राजेंद्र कुमार) को वर्ष 2014 के संसदीय चुनाव के लिए 04-बिजनौर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र (यूपी) से उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया गया था। तदनुसार, उन्होंने फॉर्म ए और फॉर्म बी के तहत चुनाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 के प्रावधानों के अनुसार, पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ अपना नामांकन फॉर्म जमा किया।
हालांकि, बाद में प्रतिवादी (कुंवर भारतेंद्र सिंह/उम्मीदवार) को उक्त संसदीय क्षेत्र के लिए उम्मीदवार के रूप में बनाया गया। उन्होंने सभी आवश्यक दस्तावेज भी जमा किए। उनके नामांकन फॉर्म के खिलाफ याचिकाकर्ता ने आपत्तियां दर्ज कीं। हालांकि, प्रतिवादी के नामांकन फॉर्म को स्वीकार करते समय रिटर्निंग ऑफिसर ने इसे खारिज कर दिया। इसलिए याचिकाकर्ता ने वर्तमान चुनाव याचिका दायर की।
यहां यह उल्लेखनीय है कि 2014 के चुनावों में सिंह ने सीट जीती थी। हालांकि 2019 में वह चुनाव हार गए।
हालांकि, मामले की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने चुनाव याचिकाकर्ता और रिटर्न्ड कैंडिडेट से बातचीत की और पाया कि उनके बीच कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी। बल्कि उन्होंने अपने राजनीतिक करियर के दौरान एक-दूसरे का समर्थन किया है।
हालांकि, याचिकाकर्ता इस तथ्य से व्यथित रहा कि उक्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल द्वारा विधिवत उम्मीदवार होने के नाते प्रस्तुत किया गया उसका नामांकन फॉर्म रिटर्निंग अधिकारी द्वारा गलती से खारिज कर दिया गया।
उनका यह भी तर्क था कि भाजपा के पास प्रतिवादी/निर्वाचित उम्मीदवार को अपने उम्मीदवार के रूप में खड़ा करने का कोई कारण नहीं था, जबकि याचिकाकर्ता पहले से ही उम्मीदवार के रूप में खड़ा था। इस कृत्य ने याचिकाकर्ता की सार्वजनिक छवि को ही नहीं, बल्कि निर्वाचन क्षेत्र और अन्यथा में भी उनकी राजनीतिक छवि को भी नुकसान पहुंचाया है।
यह भी तर्क दिया गया कि भले ही चुनाव काफी समय पहले बीत चुका है, लेकिन इस मामले का निर्णय अकादमिक हित में किया जाना चाहिए।
कोर्ट की टिप्पणियां
अदालत ने कहा कि रिटर्निंग ऑफिसर ने प्रतिवादी के नामांकन पर याचिकाकर्ता की आपत्ति को सही ढंग से खारिज कर दिया, क्योंकि प्रश्न में अधिकारी ने रिटर्न किए गए उम्मीदवार द्वारा प्रस्तुत बाद के फॉर्म बी को ध्यान में रखा। उसने इसे और अधिक साक्ष्यात्मक मूल्य दिया था।
न्यायालय ने यह भी कहा कि समय की बर्बादी के कारण खासकर जब लोकसभा का चुनाव भी हुआ तो इस स्तर पर चुनाव याचिका पर फैसला देना निरर्थक अभ्यास होगा। यह केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए होगा।
हालांकि, न्यायालय ने चुनाव-याचिकाकर्ता पर ध्यान दिया। साथ ही न्यायालय को अधिक सावधान रहना होगा और जल्द से जल्द चुनाव याचिका पर निर्णय लेने का प्रयास करना होगा, जिससे समय की बर्बादी के कारण यह निरर्थक न हो जाए।
इसके अलावा, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी एक-दूसरे के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध में हैं, न्यायालय ने इस प्रकार कहा:
"अदालत ने पाया कि चुनाव-याचिकाकर्ता अपनी सार्वजनिक छवि के प्रति अधिक सचेत है, जो कि गलत दृष्टिकोण नहीं है। क्योंकि सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय व्यक्ति जो अपने क्षेत्र के लोगों के साथ जुड़ा हुआ है, हमेशा अच्छी सार्वजनिक छवि और प्रशंसक चाहता है। राजनीतिक व्यक्ति आम तौर पर अपनी छवि के प्रति सचेत रहता है, क्योंकि यह हमेशा उसके साथ रहती है। ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव-याचिकाकर्ता को यह आभास हो रहा है कि चूंकि उसका नामांकन फॉर्म रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा खारिज कर दिया गया था, इसलिए यह उसकी सार्वजनिक छवि पर धब्बा है कि उसने कुछ गैरकानूनी काम किया है, या उनके नामांकन फॉर्म में कुछ गड़बड़ थी। हालांकि, जैसा कि ऊपर बताया गया, रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा पारित आदेश को देखने से यह धारणा सच नहीं लगती है।''
इस पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता की धारणा को निराधार पाते हुए, जो कि बाद की घटनाओं से भी समर्थित और स्पष्ट है, न्यायालय ने याचिकाकर्ता को खारिज करने का फैसला किया।
हालांकि, आख़िर में न्यायालय ने निम्नलिखित संस्कृत उद्धरण का उल्लेख किया:
"चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः। चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ।। [संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है । अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है ।]
केस टाइटल- राजेंद्र कुमार बनाम कुंवर भारतेंद्र सिंह [चुनाव याचिका नंबर- 6/2014 की]
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