इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भगोड़े आईपीएस अधिकारी की ओर से अनधिकृत याचिका दायर करने और कोर्ट को गुमराह करने लिए वकील पर 5 लाख का जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

26 Aug 2021 3:44 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भगोड़े आईपीएस अधिकारी की ओर से अनधिकृत याचिका दायर करने और कोर्ट को गुमराह करने लिए वकील पर 5 लाख का जुर्माना लगाया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एडवोकेट मुकुटनाथ वर्मा पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया क्योंकि यह पाया गया था कि उन्होंने निलंबित और फरार आईपीएस अधिकारी मणिलाल पाटीदार की ओर से अनधिकृत रूप से एक रिट याचिका दायर की और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए, और इस तरह अदालत को गुमराह किया।

    जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की बेंच ने बार काउंसिल ऑफ दिल्ली से इस वकील के खिलाफ कानून के मुताबिक उचित कार्रवाई करने को भी कहा है।

    कोर्ट के समक्ष याचिका

    अधिवक्ता वर्मा ने मौजूदा याचिका दायर कर लखनऊ के हजरतगंज और प्रयागराज के कर्नलगंज निरीक्षक को प्राथमिकी दर्ज करके प्राथमिकी की प्रति उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग की थी। इसके साथ ही उन्होंने फरार अधिकारी मणिलाल पाटीदार से मिलने के लिए पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने के लिए सीबीआई को दोनों प्राथमिकी की जांच करने का निर्देश देने की भी मांग की थी।

    कोर्ट ने इसे न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग मानते हुए याचिकाकर्ता वकील पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

    संक्षेप में तथ्य

    अधिवक्ता डॉ. मुकुट नाथ वर्मा द्वारा पहले ही एक याचिका दायर कर प्रार्थना की गई थी कि उनके कथित मुवक्किल श्री मणिलाल पाटीदार, आईपीएस, पूर्व पुलिस अधीक्षक, महोबा, यूपी को पेश करने के लिए निर्देश जारी किया जाए।

    उन्होंने अदालत से इस मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराने का आदेश देने का भी अनुरोध किया था।

    यह दलील दी गयी थी कि 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी मणिलाल पाटीदार खनन माफिया के खिलाफ अभियान चला रहे थे और इस कारण प्रशासन के कुछ वर्गों के साथ उनके संबंधों में खटास आ गई और परिणामस्वरूप, उन्हें कुछ मामलों में झूठा फंसाया गया।

    यह भी कहा गया कि 15 नवंबर, 2020 को, पाटीदार ने याचिकाकर्ता (वकील) को एक व्हाट्सएप कॉल करके सूचित किया था कि वह लंबित कानूनी मामलों के संबंध में 27 नवंबर, 2020 को उनसे मिलने आएंगे, हालांकि, वह नहीं आये।

    इस प्रकार, याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष आरोप लगाया था कि सरकारी प्रशासन में उच्च पदस्थ अधिकारियों ने कुछ गलत किया होगा जिसके परिणामस्वरूप मणिलाल पाटीदार लापता हो गये और उनका पता नहीं चल रहा है।

    कोर्ट का निष्कर्ष

    शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि अपनी रिट याचिका में, एडवोकेट वर्मा ने यह खुलासा नहीं किया था कि उन्हें याचिका में लगाए गए आरोपों के बारे में व्यक्तिगत जानकारी कैसे है, जो आरोपी मणिलाल पाटीदार से व्यक्तिगत रूप से संबंधित है और सबसे अच्छा शायद उन्हें (मणिलाल पाटीदार को) ही पता होगा।

    इस प्रकार, न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर रिट याचिका के पैराग्राफ की शपथ लेना निराधार था और साथ ही इस अदालत को गुमराह करने का एक सोचा समझा प्रयास भी।

    अदालत ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि आरोपी मणिलाल पाटीदार (भगोड़ा आईपीएस अधिकारी) फरार है और उनके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 82 के तहत कार्यवाही शुरू की गयी है और जिनकी आपराधिक मेसलेनियस रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है और अग्रिम जमानत अर्जियां भी निरस्त कर दी गयी है।

    इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय ने इस प्रकार टिप्पणी की:

    "वर्तमान रिट याचिका के अवलोकन से, ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता विभिन्न मंचों पर लगातार विभिन्न आवेदन दाखिल कर रहा है और वर्तमान रिट याचिका भी दायर की है। लेकिन उसने अपने कथित मुवक्किल यानी आरोपी मणिलाल पाटीदार के लिए मुकदमेबाजी के वित्त के स्रोत का खुलासा नहीं किया है । इस तथ्य का खुलासा न होना ही वर्तमान रिट याचिका दायर करने में किसी छिपे मकसद को दर्शाता है।"

    यह रेखांकित करते हुए कि अधिवक्ता वर्मा ने अनधिकृत रूप से मौजूदा रिट याचिका दायर की थी, कोर्ट ने कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है कि आरोपी कर्मचारी मणिलाल पाटीदार या उनके परिवार के किसी सदस्य ने याचिकाकर्ता को राहत की मांग के लिए वर्तमान रिट याचिका दायर करने के लिए अधिकृत किया है।

    अपनी याचिका में राज्य/पुलिस अधिकारियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों के बारे में, कोर्ट ने कहा कि आरोप बिना किसी सहायक दस्तावेज के लगाए गए हैं और उनकी दलील पर विश्वास करने के लिए कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है।

    अंत में, उस पर 5 लाख का जुर्माना लगाते हुए, कोर्ट ने इस प्रकार निष्कर्ष निकाला:

    "प्रतिवादियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जो राज्य-प्रतिवादियों की छवि खराब करने के लिए दुर्भावनापूर्ण प्रतीत होते हैं। याचिकाकर्ता से प्रतिवादियों के खिलाफ कोई भी आरोप लगाने से पहले सही तथ्यों का खुलासा करने की उम्मीद की जाती है। याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से, एक प्रैक्टिसिंग वकील हैं, और उनसे तथ्यों को खुद भी सत्यापित करके, फिर प्रतिवादियों के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने की उम्मीद की जाती है। यह भी उम्मीद की जाती है कि ऐसी जानकारी के स्रोत के साथ-साथ सामग्री, यदि कोई हो, को रिकॉर्ड में लाया जाना चाहिए और उसके अभाव में रिट याचिका में लगाए गए आरोपों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।"

    केस का शीर्षक - डॉ. मुकुट नाथ वर्मा बनाम भारत सरकार (गृह सचिव के जरिये)

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