इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय रेलवे में नौकरी प्राप्त करने वाले कोर्ट क्लर्क का इस्तीफा अस्वीकार करने वाले ज़िला जज पर 21 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

12 Nov 2021 2:42 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय रेलवे में नौकरी प्राप्त करने वाले कोर्ट क्लर्क का इस्तीफा अस्वीकार करने वाले ज़िला जज पर 21 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक जिला न्यायाधीश पर 21,000/- रुपये का जुर्माना लगाया, जिन्होंने अदालत के एक क्लर्क का इस्तीफा मंज़ूर करने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि क्लर्क ने इस्तीफा देने के बाद तीन महीने का नोटिस नहीं पीयरेड पूरा नहीं किया।

    साथ ही क्लर्क पर सरकारी सेवा नियम, 2000 के नियम 4 के तहत तीन महीने का नोटिस देने में विफल रहने के कारण अनुशासनात्मक जांच करने के आदेश भी दिए गए।

    न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने यह देखते हुए कि क्लर्क के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच करना मानसिक उत्पीड़न के समान होगा। न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने जालौन के जिला न्यायाधीश पर जुर्माना लगाया और उन्हें कर्मचारी के इस्तीफे को स्वीकार करने का भी निर्देश दिया।

    संक्षेप में मामला

    याचिकाकर्ता, ख़ूब सिंह वर्ष 2015 में उरई में जालौन के जजशिप में क्लर्क के रूप में कार्यरत थे। इसके बाद, स्टेनोग्राफर (रेलवे भर्ती बोर्ड) के पद के लिए चुने जाने पर उन्होंने 17 जुलाई 2020 को अपना इस्तीफा दे दिया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि चूंकि उनका रेलवे में स्टेनोग्राफर (हिंदी) के पद पर चयन हो गया है, उन्हें उक्त पद पर कार्यभार ग्रहण करने के लिए कोर्ट क्लर्क के पद से मुक्त किया जाए।

    त्याग पत्र देने के बाद याचिकाकर्ता ने इस धारणा पर कि उनका इस्तीफा 01.04.2020 से स्वीकार कर लिया गया होगा, उन्होंने 14 अगस्त 2020 को रेलवे की नौकरी ज्वॉइन कर ली।

    हालांकि, जिला न्यायाधीश ने 20 अगस्त, 2020 को आक्षेपित आदेश पारित किया, यह देखते हुए कि उत्तर प्रदेश सरकार सेवा नियम, 2000 के नियम (4) के तहत, चूंकि याचिकाकर्ता ने तीन महीने के नोटिस पर सेवा से अपना इस्तीफा नहीं दिया था, परिणामस्वरूप, उनका इस्तीफा खारिज कर दिया गया।

    याचिकाकर्ता द्वारा यह तर्क दिया गया था कि उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध जजशिप पर सेवाएं देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और उसने परीक्षा से पहले अधिकारियों को विधिवत सूचित किया था और एनओसी प्रस्तुत किए जाने पर याचिकाकर्ता परीक्षा में उपस्थित हुआ था।

    इसके बाद, यह तर्क दिया गया कि नियम (4) के प्रावधान में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि नियुक्ति प्राधिकारी सरकारी कर्मचारी को बिना किसी नोटिस या कम समय के नोटिस के इस्तीफा देने की अनुमति दे सकता है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    दूसरे प्रतिवादी (जिला न्यायाधीश, जालौन) के आचरण को न केवल मनमाना बल्कि अत्यधिक अनुचित बताते हुए, न्यायालय ने कहा:

    "एक कर्मचारी किसी भी सरकारी संगठन में आवेदन करके अपने करियर की बेहतरी की तलाश करने का हकदार है। यह प्रतिवादियों का मामला नहीं है कि याचिकाकर्ता ने परीक्षा में शामिल होने से पहले सक्षम प्राधिकारी (द्वितीय प्रतिवादी) से सूचित नहीं किया था या पूर्व अनुमति नहीं ली थी। याचिकाकर्ता को परीक्षा में बैठने के लिए एनओसी विधिवत जारी की गई थी।"

    अदालत ने कहा कि जिला न्यायाधीश के खिलाफ एक जांच शुरू की जानी चाहिए कि याचिकाकर्ता को नियम 4 के प्रावधान 2 के तहत शक्ति के प्रयोग में तुरंत इस्तीफा देने की अनुमति नहीं देने में बाधा क्यों पैदा की गई।

    इसके अलावा, यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता को मानसिक उत्पीड़न का शिकार बनाया गया है और दूसरे प्रतिवादी के आचरण के लिए पीड़ित किया गया है, न्यायालय ने इस प्रकार नोट किया:

    "याचिकाकर्ता की गलती नहीं है, लेकिन केवल इस कारण अनुशासनात्मक जांच के अधीन किया गया है कि इस्तीफा देने के बाद तीन महीने का नोटिस नहीं दिया गया था। यह याचिकाकर्ता के आचरण को कदाचार के दायरे में लाने के योग्य नहीं है।"

    इसके साथ ही दिनांक 20 अगस्त 2020 को जारी आक्षेपित आदेश और याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई परिणामी जांच को रद्द कर दिया गया और जिला न्यायाधीश को 13 अगस्त 2020 को दिए गए इस्तीफे को स्वीकार करने और एक सप्ताह के भीतर उसे कार्य से मुक्त करने का पत्र ( relieving letter) जारी करने का निर्देश दिया गया।

    अंतिम रूप से यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता को न्यायिक अधिकारी के हाथों उत्पीड़न और असुविधा का सामना करना पड़ा है, इसलिए याचिकाकर्ता दूसरे प्रतिवादी द्वारा 21,000/- रुपये का हर्जाना प्राप्त करने का हकदार है।

    केस का शीर्षक - ख़ूब सिंह बनाम इलाहाबाद में न्यायिक उच्च न्यायालय और 2 अन्य

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