इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तथ्यों को छुपाते हुए बार बार याचिका दायर करने वाली दहेज हत्या की आरोपी पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

7 March 2022 10:30 AM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट


    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दहेज हत्या की एक आरोपी पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा है कि उसने महत्वपूर्ण तथ्यों और दस्तावेजों को छुपाते हुए अदालत के समक्ष लगातार आवेदन दायर करके कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और कोर्ट को गुमराह किया है।

    जस्टिस संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने आगे जोर देकर कहा कि अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए उच्चतम स्तर की ईमानदारी, निष्पक्षता, मन की पवित्रता होनी चाहिए और ऐसा न करने पर वादी को जल्द से जल्द कोर्ट से बाहर जाने का रास्ता दिखा देना चाहिए।

    संक्षेप में मामला

    इस मामले में एक श्रीमती रामेंद्री ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर कर उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए, 304-बी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 (अपनी बहू की कथित आत्महत्या से मौत के संबंध में) के तहत दर्ज एफआईआर और उस आधार पर शुरू हुई पूरी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी। यह मामला मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, बुलंदशहर के न्यायालय में विचाराधीन है।

    सुनवाई के दौरान, प्रतिवादी पक्ष के वकील ने इस याचिका पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि आवेदक ने सही तथ्यों के साथ अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया है, बल्कि उसने पहले भी महत्वपूर्ण तथ्यों और दस्तावेजों को छुपाकर लगातार आवेदन दायर किए थे।

    अदालत के समक्ष आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद, आवेदक ने अग्रिम जमानत याचिका के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस याचिका को दिसंबर 2020 में निपटाते हुए आवेदक को निर्देश दिया गया था कि वह निचली अदालत के समक्ष तीन महीने के अंदर आत्मसमर्पण कर दें। साथ ही इस समय अवधि के लिए आवेदक को अंतरिम संरक्षण भी प्रदान किया गया था।

    हालांकि, उपरोक्त आदेश के संचालन के दौरान ही आवेदक ने फरवरी 2021 में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत तत्काल आवेदन दायर कर दिया। इस याचिका में उसने अपनी अग्रिम जमानत याचिका में संबंध हाईकोर्ट द्वारा दिए गए उक्त आदेश को छुपाते हुए उपरोक्त मामले की पूरी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की।

    इसी बीच, आवेदक ने हाईकोर्ट के दिसंबर 2020 के आदेश को भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दे दी, हालांकि, जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी अपील को खारिज कर दिया और उसे निर्देश दिया कि वह हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए दो दिनों के भीतर निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण कर दे।

    हालांकि, उसने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया।

    इसके अलावा, वर्तमान आवेदन की पेंडेंसी के दौरान, अप्रैल 2021 में उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किए गए थे, उसकी वैधता को भी एक अन्य वकील के माध्यम से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक अन्य आवेदन दायर करके चुनौती दी गई थी।

    इस याचिका में भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया था। फरवरी 2022 में उस आवेदन का निस्तारण करते हुए भी आवेदक को दो सप्ताह के भीतर निचली अदालत में पेश होने और आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया था। वर्तमान याचिका पर सुनवाई के दौरान इस आदेश को भी न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया गया।

    कोर्ट का आदेश

    मामले की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने शुरूआत में कहा कि आवेदक के मन में हाईकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी कोई सम्मान नहीं है।

    इसके अलावा, वह इस कोर्ट में भी सही मंशा के साथ नहीं आई है और इस आवेदन में भी सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों की अवज्ञा के महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया गया है। इसलिए, वह इस अदालत से किसी भी तरह की रिआयत पाने के लायक नहीं है।

    कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि कैसे बेईमान वादियों द्वारा अपने नापाक मंसूबों को हासिल करने के लिए अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जाता है। कोर्ट ने आगे कहा कि,

    ''मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जिस व्यक्ति का मामला झूठ पर आधारित है, उसे अदालत आने का कोई अधिकार नहीं है। उसे मुकदमेबाजी के किसी भी चरण में सरसरी तौर पर बाहर निकाला जा सकता है। न्यायिक प्रक्रिया उत्पीड़न या दुरुपयोग या न्याय को नष्ट करने का एक साधन नहीं बन सकती है। इसका कारण यह है कि न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग केवल न्याय देने के लिए करता है।''

    इसे देखते हुए, आवेदन को 25,000/- (पच्चीस हजार रुपए मात्र) का जुर्माने के साथ खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि हर्जाने की राशि को एक माह के भीतर न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के पास जमा करना होगा। साथ ही कहा है कि ऐसा न करने पर इस राशि को आवेदक से भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल किया जाए।

    रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया गया है कि वह इस राशि को राजकीय बाल गृह शिशु, इलाहाबाद के खाते में भेज दें ताकि इसका उपयोग बच्चों के कल्याण के लिए किया जा सके।

    केस का शीर्षक - श्रीमती रामेंद्री बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य

    साइटेशन-2022 लाइव लॉ (एबी) 91

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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