इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिद्धार्थ वरदराजन को अग्रिम जमानत दी, योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आपत्त‌िजनक टिप्‍पणी का है आरोप

LiveLaw News Network

15 May 2020 1:56 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिद्धार्थ वरदराजन को अग्रिम जमानत दी, योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आपत्त‌िजनक टिप्‍पणी का है आरोप

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने द वायर के संस्थापक-संपादक, सिद्धार्थ वरदराजन की अग्रिम जमानत अर्जी को अनुमति दे दी है। जस्टिस चंद्र धारी सिंह की खंडपीठ ने इस दलील को स्वीकार करने से मना कर दिया कि वरदराजन देश छोड़ कर भाग सकते हैं।

    उल्लेखनीय है कि सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 'आपत्तिजनक' टिप्पणी करने के आरोप में आईपीसी की धारा 188, 505 (2) और आईटी अधिनियम की धारा 66 डी के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    उन पर अयोध्या की सिटी कोतवाली और अयोध्या कोतवाली पुलिस स्टेशन में दो एफआईआर दर्ज की गईं ‌थी, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने ट्विटर पर 'झूठा दावा' किया कि योगी आदित्यनाथ ने राम नवमी के अवसर पर 25 मार्च को अयोध्या में एक धार्मिक कार्यक्रम में भाग लिया था, जबकि तब तक राष्ट्रीय स्तर लॉकडाउन अमल में आ चुका था। एफआईआर में द वायर में प्रकाशित एक आलेख का भी उल्लेख किया गया था, जिसमें ऐसा ही दावा किया गया था।

    जिसके बाद वरदराजन ने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। उनका मामला जस्टिस जसप्रीत सिंह की कोर्ट में 8 मई को सूचीबद्ध किया गया था। सरकार का अपना पक्ष दर्ज कराने के लिए मामले को 11 मई को पोस्ट किया गया था। तब सरकार ने कोर्ट को सूचित किया था कि मामले में चार्जशीट दायर हो चुकी है।

    11 मई को जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने अतिरिक्त महाधिवक्ता के मौजूद होने के कारण मामले को स्थगित कर दिया था।

    आवेदक के तर्क

    वरदराजन के वकील ने तर्क दिया था कि द वायर में प्रकाशित रिपोर्ट में मामूली सी त्रुटि हुई थी, जिसमें गलती से एक अन्य व्यक्ति के बयान को यूपी के मुख्यमंत्री का बयान बता दिया गया था। हालांकि, जैसे ही गलती का पता चला, उसे सुधार दिया गया। यह एफआईआर दर्ज किए जाने से पहले किया जा चुका था।

    आवेदक की ओर से दलील दी गई कि, "कोई तथ्यात्मक गलती को आपराधिक कार्रवाई का आधार नहीं होती है। व‌िशेषकर उन अपराधों का आधार नहीं हो सकती है, जिनमें आवेदक को आरोपी बनाया गया है।"

    आवेदक की ओर से आगे दलील दी गई कि, जिस रिपोर्ट को एफआईआर का आधार बनाया गया है, वह तथ्यों पर आधारित थी और एफआईआर अभिव्य‌क्ति की आजादी को कुचलने का प्रयास है। दलील दी गई कि वरदराजन को हिरासत में रखकर पूछताछ करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एफआईआर एक लेख और ट्वीट से संबंधित है, जो रिकॉर्ड पर मौजूद हैं और मामले चार्जशीट दायर की जा चुकी है। साथ ही कहा गया कि, एफआईआर में शामिल केवल एक अपराध ही गैर-जमानती है और उसमें भी अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है।

    आवेदक के वकील ने आगे कहा कि 10 अप्रैल को यूपी के कुछ पुलिसकर्मी आवेद आवास पर गए और उनकी पत्नी को सीआरपीसी की धारा 41(A) के तहत लिखित नोटिस दिया और उन्हें 14 अप्रैल को सुबह 10 बजे तक अयोध्या पुलिस स्टेशन में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया। पुलिसकर्मी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि लॉकडाउन के कारण उस समय ट्रेन या हवाई जहाज नहीं चल रहे हैं और लोगों को घरों से बाहर निकलने पर सजा दी जा रही है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा साधारण यातायात के लिए बंद है, इसलिए उनके लिए उक्त नोटिस का अनुपालन करना असंभव था।

    नतीजतन, उन्होंने ईमेल के जर‌िए अपना जवाब भेजा और आश्वासन दिया कि वह जांच में सहयोग करेंगे। हालांकि, उनके जवाब की अनदेखी करते हुए पुलिस ने 26 अप्रैल को सीआरपीसी की धारा 41 (ए) के तहत दूसरा नोटिस भेजा, इसलिए उन्हें गिरफ्तारी की आशंका है।

    राज्य के तर्क

    राज्य सरकार ने यह कहते हुए आवेदन का विरोध किया कि वरदराजन के ट्वीट और लेख के कारण, कई दुर्भाग्यपूर्ण सांप्रदायिक घटनाएं हुईं, जिससे सार्वजनिक शांति नष्ट हुई। राज्‍य सरकार ने तर्क दिया कि वरदराजन के पास यूएस पासपोर्ट है, इसलिए वह देश छोउ़ कर भाग सकते हैं।

    सरकार ने दलील दी कि चूंकि पुलिस ने मामले की जांच पूरी कर ली गई है, चार्जशीट दायर की जा चुकी है और संबंधित न्यायालय ने संज्ञान ले चुका है, इसलिए आवेदक-अभियुक्त की गिरफ्तारी की आशंका नहीं है।

    नतीजे

    कोर्ट ने राज्य की दलीलों को खारिज करते हुए कहा,"जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान द्वारा गारंटीकृत महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक है, इसलिए, किसी भी व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए जब तक कि उसे दोषी नहीं ठहराया गया हो।"

    पीठ ने स्पष्ट किया कि जांच/ परीक्षण की स्थिति जैसी भी हो, अग्रिम जमानत की अर्जी दायर की जा सकता है और 'गिरफ्तारी की आशंका' ऐसा करने के लिए एकमात्र आवश्यक शर्त है।

    "धारा 438 (1) और (3) में प्रयोग किए गए शब्दों और भाषा बिलकुल स्पष्ट हैं, जिसका यह निष्कर्ष है कि जब भी कोई व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि उसे गैर-जमानती अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दे सकता है, मामला चाहे जिस भी चरण में हो।"

    कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस के आचरण के कारण, आवेदक की गिरफ्तारी को गिरफ्तारी की आशंका हो रही है, जिन्हें पुलिस सीआरपीसी की धारा 41 (ए) के तहत दो नोटिस भेज चुकी है।

    कोर्ट ने वरदराजन की जमानत अर्जी को मंजूर करते हुए उन्हें अपना पासपोर्ट संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष संरेंडर करने को कहा। साथ ही निर्देश दिया कि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें जांच के उपलब्ध रहना होगा।

    8 मई का आर्डर डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

    11 मई का आर्डर डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

    15 मई का आर्डर डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

    Next Story