इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी विधान परिषद में नेता विपक्ष के रूप में मान्यता न देने के खिलाफ सपा सदस्य की ओर से दायर याचिका खारिज की

Avanish Pathak

21 Oct 2022 3:22 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाजवादी पार्टी के नेता लाल बिहारी यादव की रिट याचिका आज खारिज कर दी। उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान परिषद में विपक्ष के नेता के रूप में उन्हें अमान्य कर देने की उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना को चुनौती दी थी।

    जस्टिस अता उर रहमान मसूदी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने 9 सितंबर को उत्तर प्रदेश विधान परिषद के अध्यक्ष और मुख्य सचिव की ओर से जवाब दाखिल करने के बाद याचिका में आदेश सुरक्षित रख लिया था।

    मामला

    याचिकाकर्ता/समाजवादी पार्टी के नेता लाल बिहारी यादव को यूपी में 27 मई, 2022 की एक अधिसूचना द्वारा विधान परिषद में विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता दी गई थी, जहां सदस्यों की कुल संख्या 100 है।

    अब जुलाई 2022 में जब यूपी विधान परिषद समाजवादी पार्टी की सदस्यता 11 से घटाकर 9 रह गई तब यूपी सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर विपक्ष के नेता के रूप में उनकी मान्यता खत्म कर दी। अधिसूचना में कहा गया है कि परिषद में पार्टी की ताकत 10 से कम होने के कारण निर्णय लिया गया था, जो सबसे बड़े विपक्षी दल का पद पाने के लिए न्यूनतम ताकत है।

    उसी को चुनौती देते हुए, यादव ने एडवोकेट कृष्ण कन्हैया पाल और पूजा पाल के माध्यम से हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसमें तर्क दिया गया था कि प्रमुख सचिव, यूपी विधान परिषद की कार्रवाई उत्तर प्रदेश विधान परिषद की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम 1956 के नियम 234 के विपरीत थी। विधान परिषद में विपक्ष के नेता की मान्यता रद्द करने का प्रावधान नहीं है।

    सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यूपी विधान परिषद के अध्यक्ष और मुख्य सचिव से इस सवाल पर जवाब मांगा था कि जब विधान परिषद में सबसे बड़े विपक्षी दल की ताकत प्रक्रिया और अभ्यास नियम, 1956 के नियम 234 के अनुसार 10 के कोरम से कम, तब क्या क्या विपक्ष के नेता की मान्यता कानून के तहत अनिवार्य है?

    Next Story