इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज की, महिला को 20 हजार रूपये भुगतान करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

3 Sep 2021 1:36 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपनी कथित प्रेमिका की संरक्षा (कस्टडी) की मांग करने वाले एक व्यक्ति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया।

    अदालत के सामने पेश की गई लड़की ने उन आरोपों से इनकार किया कि उसे उसके पिता द्वारा अवैध रूप से बंदी बनाकर रखा गया है।

    न्यायमूर्ति उमेश कुमार की खंडपीठ ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने वाले आदमी की कार्रवाई को "अवैध और उस समाज के मानदंडों के खिलाफ" कहा, जिसमें हम रह रहे हैं।

    इसके साथ ही अदालत ने उस पर पाँच हजार रूपये का जुर्माना लगाने के साथ उसकी याचिका को खारिज कर दिया।

    यह याचिका शिवानी गुप्ता की ओर से प्रीतोष यादव (याचिकाकर्ता का कथित प्रेमी) द्वारा दायर की गई थी।

    याचिका में उसे पेश करने, जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने और उसे तुरंत उसके पिता की संरक्षा से रिहा करने का निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी।

    इससे पहले, 25 अगस्त को मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि यह आवश्यक है कि कॉर्पस को कोर्ट के सामने पेश किया जा सकता है, बशर्ते कि प्रीतोश यादव 20,000/- रूपये की राशि डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से जमा करें।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि मामला सफल होता है तो डिमांड ड्राफ्ट को वापस डिटेन्यू (यादव) को भेज दिया जाएगा और अगर वह विफल रहता है, तो राशि का भुगतान कॉर्पस को किया जाएगा।

    अब 31 अगस्त को न्यायालय के आदेश के अनुसार, महिला को न्यायालय के समक्ष पेश किया गया।

    उसने कोर्ट के समक्ष कहा कि न तो उसने इस याचिका को दायर करने के लिए किसी को अधिकृत किया है और न ही उसके पिता द्वारा उसे अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है।

    इसके अलावा, उसने यह भी दावा किया कि वह बिना किसी मजबूरी और जबरदस्ती के अपनी मर्जी से अपने पिता के साथ रह रही है। साथ ही उसने भविष्य में भी अपने परिवार के साथ रहने की इच्छा व्यक्त की।

    उनके बयान पर ध्यान देते हुए पहले के आदेश के अनुपालन में अदालत ने निर्देश दिया कि शिवानी गुप्ता के पक्ष में 20,000/- रुपये का डिमांड ड्राफ्ट उन्हें सौंप दिया जाए।

    याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने यह भी कहा:

    "...इस न्यायालय ने पाया कि प्रीतोष यादव समाज में शिवानी गुप्ता की छवि को बदनाम करना चाहते हैं और केवल इसी इरादे से इस अदालत के समक्ष वर्तमान याचिका दायर की गई है ताकि वह किसी भी तरह से अपनी योजना में सफल हो सके। शिवानी गुप्ता की कस्टडी, जबकि लड़की ने इस कोर्ट के समक्ष एक प्रीतोष यादव के साथ किसी भी संबंध से इनकार कर दिया। प्रीतोष यादव की कार्रवाई अवैध है और उस समाज के मानदंडों के खिलाफ है जिसमें हम रह रहे हैं।"

    केस टाइटल - शिवानी गुप्ता वाया प्रीतोष यादव बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और पाँच अन्य

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