आरोपी के ट्रायल कोर्ट नहीं जाने के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीधे ज़मानत आवेदन पर सुनवाई की

LiveLaw News Network

3 Jun 2020 11:22 AM GMT

  • आरोपी के ट्रायल कोर्ट नहीं जाने के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीधे ज़मानत आवेदन पर सुनवाई की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को लॉकडाउन स्थिति के कारण, याचिकाकर्ता को पहले ट्रायल कोर्ट जाने की आवश्यकता के बिना सीआरपीसी की धारा 439 के तहत सीधे जमानत याचिका दायर करने की अनुमति दी।

    न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की पीठ ने देखा कि यह मामला उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले का है, जिसे ट्रायल कोर्ट द्वारा नहीं सुना जा सका क्योंकि राज्य सरकार द्वारा उक्त क्षेत्र को रेड जोन घोषित किया गया है और इसमें स्थित स्थानीय अदालतें कोरोना वायरस के फैलने की आशंका के मद्देनज़र बन्द हैं।

    इस प्रकार, मामले की "असाधारण परिस्थितियों" को पहचानते हुए, पीठ ने याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट जाने की आवश्यकता के बिना, जमानत याचिका को सुनने के लिए सहमति व्यक्त की।

    पीठ ने कहा,

    "असाधारण परिस्थितियों में असाधारण उपचार की आवश्यकता होती है और इसलिए यह अदालत धारा 439 Cr.P.C के तहत अपनी शक्ति के प्रयोग में वर्तमान जमानत आवेदन पर विचार करने के लिए इच्छुक है, लेकिन यह सामान्य समय के लिए मिसाल नहीं है।"

    हाईकोर्ट ने संदीप कुमार बाफना बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य 2014 (16) SCC 623 मामले पर विश्वास जताया जिसमें शीर्ष न्यायालय ने माना था कि उच्च न्यायालयों के पास आत्मसमर्पण की याचिका पर सुनवाई की शक्ति और अधिकार है और इसके बाद सीधे जमानत आवेदन पर भी सुनवाई का अधिकार है और इसके लिए अभियुक्त को पहले सत्र न्यायालय जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

    वर्तमान मामले में पीठ ने देखा,

    " आत्मसमर्पण का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि याचिकाकर्ता पहले से ही 19 अप्रैल, 2020 से कथित तौर पर प्रतिबंधित दवाओं के सिरप के बैच के परिवहन के आरोप में पुलिस हिरासत में है। उसके खिलाफ धारा 420/467, 468, 471 आईपीसी आर / डब्ल्यू सेक्शन 8/21 एनडीपीएस एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है।"

    याचिकाकर्ता के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता केवल कार्गो कंपनी का मैनेजर है जो सामान का परिवहन कर रहा था और उसे सिरप की रासायनिक संरचना या इसकी सामग्री का कानूनी आवश्यकताओं से कोई लेना-देना नहीं है, यह निर्माता और क्रेता की चिंता का विषय था।

    अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, अभियुक्तों की मिलीभगत के बारे में रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अधिकार और दाताराम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश और अन्य (2018) 3 एससीसी 22 के मामले में शीर्ष अदालत का फैसला - "जमानत नियम है जेल अपवाद है", और मामले के गुणों पर कोई राय व्यक्त किए बिना, अदालत ने एक व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने पर जमानत आवेदन की अनुमति दी और उतनी ही राशि के दो जमानतदार, जो अदालत की संतुष्टि के अनुरूप हो।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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