बार संघों के बिना शर्त माफीनामे के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने हड़ताल के आह्वान पर शुरू अवमानना कार्यवाही रद्द की

LiveLaw News Network

2 Aug 2021 4:39 AM GMT

  • बार संघों के बिना शर्त माफीनामे के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने हड़ताल के आह्वान पर शुरू अवमानना कार्यवाही रद्द की

    मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की खंडपीठ ने पदाधिकारियों की बिना शर्त माफी को स्वीकार कर लिया।

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में पांच अलग-अलग जिला बार संघों के पदाधिकारियों के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक अवमानना कार्यवाही को स्वत: समाप्त कर दिया। स्वत: संज्ञान की कार्यवाही कोर्ट के काम से दूर रहने के लिए एसोसिएशन के सदस्यों के खुले आह्वान पर आधारित थी।

    मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की खंडपीठ ने मद्दुर, मांड्या, पांडवपुरा, मालवल्ली और कृष्णराजपेटे में बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के खिलाफ अदालती कार्यवाही का निपटारा किया।

    बेंच ने पदाधिकारियों द्वारा प्रस्तुत बिना शर्त माफीनामा और हलफनामा स्वीकार कर लिया।

    उसके बाद, डिवीजन बेंच ने देखा कि,

    "उक्त हलफनामे से ऐसा प्रतीत होता है कि अभियुक्तों को अपनी गलती का अहसास हो गया है और उन्होंने अदालत के काम से दूर रहने के मामले में बिना शर्त माफी मांग ली है। सभी आरोपियों द्वारा दिये गये उक्त हलफनामे में, खासकर पैरा 10 में दिए गए वचन के मद्देनजर माफीनामा स्वीकार करने योग्य है।"

    पदाधिकारियों द्वारा शपथ के तौर पर दिया गया बयान इस प्रकार है:

    "मैं निवेदन करता हूं कि मैं 'पूर्व कप्तान हरीश उप्पल बनाम भारत सरकार और अन्य (2003) 2 एससीसी 45' और 'कृष्णकांत ताम्रकर बनाम मध्य प्रदेश सरकार (2018) 17 एससीसी 27' के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पालन करूंगा और आश्वस्त करता हूं कि अब से अदालतों का कोई बहिष्कार नहीं होगा।"

    अदालत ने कहा कि माफी और अंडरटेकिंग के मद्देनजर अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत आगे कोई कार्रवाई जरूरी नहीं है। तद्नुसार, अभियुक्त को जारी अवमानना का नोटिस निरस्त होता है और आपराधिक अवमानना याचिका का निपटारा किया जाता है।

    कोर्ट ने फरवरी में जारी अपने आदेश में कहा था कि,

    "यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोविड-19 के मद्देनजर, सभी अदालतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जिससे वादियों के साथ-साथ बार के सदस्यों को भी परेशानी हुई है। अब जब सामान्य स्थिति काफी हद तक बहाल हो गई है, बार एसोसिएशन हड़ताल/बहिष्कार का मार्ग नहीं अपना सकते हैं।"

    पीठ ने निर्देश जारी करते हुए रजिस्ट्री द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को ध्यान में रखा, जिसमें विभिन्न जिलों में बार एसोसिएशनों का विवरण दिया गया था, जिन्होंने अपने सदस्यों को अदालत के काम से दूर रहने का आह्वान किया था।

    रिपोर्ट के अनुसार, जिला मांड्या बार एसोसिएशन चार जनवरी, 2021 को अदालती काम से दूर रहा। मद्दुर बार एसोसिएशन ने चार जनवरी और छह फरवरी को अदालती काम से दूर रहने का आह्वान किया था। श्रीरंगपटना, मालवल्ली, कृष्णराजपेटे में बार एसोसिएशनों ने चार जनवरी को अदालत के काम से खुद को अलग रखा। पांडवपुरा बार एसोसिएशन ने चार, 15 और 30 जनवरी को अदालती काम से परहेज किया। दावणगेरे बार एसोसिएशन ने 29 जनवरी और आठ फरवरी को काम से परहेज किया।

    इससे पहले, इन घटनाओं के कारण, मुख्य न्यायाधीश अभय ओका ने राज्य में बार एसोसिएशनों के सदस्यों से अपील की थी कि वे अदालती कार्यवाही और अदालती कार्यों के बहिष्कार में शामिल न हों, चाहे कारण की वास्तविकता कुछ भी हो। मुख्य न्यायाधीश ने संबंधित हितधारकों को भी इस तरह के अवैध कार्यों में शामिल न होने की चेतावनी दी थी।

    अपील में कहा गया था,

    "मैं बार के सदस्यों से अपील करता हूं कि वे अधिक से अधिक मामलों के निपटारे के लिए अदालत का सहयोग करें।"

    अपनी अपील में, मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'पूर्व-कप्तान हरीश उप्पल बनाम भारत सरकार और अन्य (2003) 2 एससीसी 45' और 'कृष्णकांत ताम्रकर बनाम मध्य प्रदेश सरकार, (2018) 17 एससीसी 27' के मामलों में पारित निर्णयों का भी उल्लेख किया था। ऐसा सभी बार एसोसिएशनों के सदस्यों को इस तरह के बहिष्कार से अलग रहने के लिए राजी करने को लेकर किया गया था।

    दावणगेरे और श्रीरंगपटना में बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही अब भी लंबित है।

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