शरीर के निचले अंग की दिव्यांगता से प्रभावित वकील के अदालतों के बीच आवाजाही करने से उसकी आय पर असर पड़ता है: कर्नाटक हाईकोर्ट ने मोटर एक्सीडेंट मुआवजा बढ़ाया

Shahadat

15 Sep 2023 9:17 AM GMT

  • शरीर के निचले अंग की दिव्यांगता से प्रभावित वकील के अदालतों के बीच आवाजाही करने से उसकी आय पर असर पड़ता है: कर्नाटक हाईकोर्ट ने मोटर एक्सीडेंट मुआवजा बढ़ाया

    कर्नाटक हााईकोर्ट ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल द्वारा वकील को दिया जाने वाला मुआवजा बढ़ा दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि शरीर के निचले अंग की दिव्यांगता निश्चित रूप से क्लाइंट की कुशलतापूर्वक मदद करने और अदालतों के बीच तेजी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की उनकी क्षमता में बाधा डालती है, जिससे उनकी आय और पेशेवर जिम्मेदारियों पर असर पड़ सकता है।

    जस्टिस के सोमशेखर और जस्टिस उमेश एम अडिगा की खंडपीठ ने 66 वर्षीय वकील द्वारा दायर अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर ली और मुआवजे की राशि बढ़ाकर 21,78,350 रुपये कर दी। हालांकि, ट्रिब्यूनल ने उन्हें मुआवजे के रूप में 15,78,350 रुपये दिए थे।

    खंडपीठ ने कहा,

    “दावेदार वकील है। उनके साक्ष्य के अनुसार वह हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट में प्रैक्टिस कर रही है। अपने क्लाइंट के मामलों की सुनवाई के लिए उसे अलग-अलग अदालतों में जाना पड़ता है। चलने में कठिनाई के कारण वह विभिन्न न्यायालयों में उपस्थित होने के लिए तेजी से नहीं चल सकती। उनकी चलने-फिरने में कठिनाई को देखते हुए क्लाइंट उनकी सेवा बंद करने के बारे में सोच सकते हैं, जिससे उसकी कमाई प्रभावित होगी। वह अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से और कुशलता से निर्वहन करेगी। दावेदार के शरीर के निचले अंग की दिव्यांगता निश्चित रूप से विभिन्न कोर्ट रूप में उपस्थित होने में उसकी गतिविधियों को प्रभावित करती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ट्रिब्यूनल द्वारा 'सुविधाओं के नुकसान' मद के तहत दिए जाने वाले मुआवजे की राशि को बढ़ाने की जरूरत है।

    दावेदार ने प्रस्तुत किया कि 01.01.2019 को लगभग 2.00 बजे वह अपने ड्राइवर द्वारा लापरवाही से कार चलाने के कारण दुर्घटना का शिकार हो गई। दुर्घटना के प्रभाव के कारण उनके निचले अंग में बाएं पैर की पिंडली की मांसपेशियों और घुटने के जोड़ में गंभीर चोटें आईं। उन्होंने कई अस्पतालों में आंतरिक रोगी के रूप में इलाज कराया और मेडिकल खर्च पर 5,00,000 रुपये से अधिक खर्च किए। उनकी सर्जरी की गई और इम्प्लांट डाले गए।

    यह तर्क दिया गया कि दुर्घटना में लगी चोटों के कारण वह अपना पेशा जारी रखने में असमर्थ है, जैसा कि वह पहले कर रही थी। इन्हीं कारणों से उन्होंने 1 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा।

    कर्नाटक सरकार के बीमा विभाग ने याचिका का विरोध किया और यह तर्क देते हुए दी गई मुआवजा राशि में कमी की मांग की कि ट्रिब्यूनल ने दावेदार की आय को अधिक मान लिया है। यह तर्क दिया गया कि घुटने के जोड़ के फ्रैक्चर की कथित दिव्यांगता दावेदार की कमाई क्षमता को प्रभावित नहीं कर सकती है। वह बिना किसी कठिनाई के वकील के रूप में प्रैक्टिस कर सकती हैं।

    रिकॉर्ड देखने के बाद कोर्ट ने बीमा कंपनी की दलील खारिज कर दी।

    खंडपीठ ने कहा,

    “दावेदार ने वर्ष 2016-2017, 2017-2018, 2018-2019 के लिए इनकम टैक्स आकलन प्रस्तुत किया। उक्त आय को ध्यान में रखते हुए ट्रिब्यूनल ने दावेदार की कमाई की गणना 30,000 रुपये प्रति माह की। उक्त निष्कर्ष रिकॉर्ड पर आधारित है। ट्रिब्यूनल के समक्ष उत्तरदाताओं ने ट्रिब्यूनल के निष्कर्षों से असहमत होने का कोई मामला नहीं बनाया है।''

    अदालत ने दिव्यांगता का आकलन करते समय पीडब्लू1 (दावेदार) और पीडब्लू5 (डॉक्टर) के साक्ष्य पर विचार किया। पीडब्लू-5 ने अपने साक्ष्य में बाएं निचले अंग की कुल विकलांगता 56% और उसके पूरे शरीर की 28% बताई। इस प्रकार खंडपीठ ने माना कि ट्रिब्यूनल ने 'स्थायी विकलांगता के कारण भविष्य की कमाई क्षमता' मद के तहत 7,05,600/- रुपये का मुआवजा दिया और उक्त राशि उचित है।

    इसी तरह इसने ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत दस्तावेजों यानी मेडिकल रिकॉर्ड, रसीदें आदि के आधार पर 'मेडिकल खर्च' मद के तहत दिए गए मुआवजे की राशि में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

    हालांकि, 'निर्धारित अवधि के दौरान आय की हानि' के मद में दिए गए 5,000 रुपये के मुआवजे की राशि को संशोधित किया गया।

    कोर्ट ने कहा,

    “चोटों की प्रकृति देखते हुए कम से कम छह महीने की अवधि के लिए दावेदार कोई भी काम करने की स्थिति में नहीं हो सकता है। इस तरह छह महीने की अवधि के लिए उनकी आय खो जाएगी, जिसे मुआवजा दिया जाना चाहिए। पीडब्लू-5 द्वारा बताई गई विकलांगता और पीडब्लू-1 - दावेदार द्वारा अपने साक्ष्य में बताई गई कठिनाइयों को देखते हुए 'सुविधाओं की हानि' मद के तहत मुआवजे को बढ़ाना आवश्यक है।

    तदनुसार, कोर्ट ने अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर ली।

    कोर्ट ने कहा,

    “दावेदार ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए 15,78,350/- रुपये के मुकाबले 21,78,350/- रुपये के मुआवजे का हकदार है और दावेदार याचिका की तारीख से उसके भुगतान तक बढ़े हुए मुआवजे पर वार्षिक 6% प्रति ब्याज के साथ 6,00,000/- रुपये के बढ़े हुए मुआवजे का हकदार भी है।

    तदनुसार, कर्नाटक सरकार के बीमा विभाग को आठ सप्ताह के भीतर उक्त राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।

    उपस्थिति: अपीलकर्ता के लिए एडवोकेट एस ए सुधींद्र की ओर से सीनियर एडवोकेट एस.एन.अश्वत्नारायण, आर2 के लिए एचसीजीपी अरुणा जी एस।

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