'एडवोकेट और उनके क्लर्क को पहचान पत्र दिखाकर कार्यालयों और न्यायालयों में आने-जाने की अनुमति दी जाएगी': राज्य पुलिस प्रमुख ने केरल हाईकोर्ट को आश्वासन

LiveLaw News Network

5 May 2021 9:29 AM GMT

  • एडवोकेट और उनके क्लर्क को पहचान पत्र दिखाकर कार्यालयों और न्यायालयों में आने-जाने की अनुमति दी जाएगी: राज्य पुलिस प्रमुख ने केरल हाईकोर्ट को आश्वासन

    केरल हाईकोर्ट को राज्य पुलिस प्रमुख ने आश्वासन दिया कि केरल राज्य में तेजी से बढ़ते COVID-19 मामलों के मद्देनजर राज्य में लगाए गए गतिविधियों पर प्रतिबंधों को ध्यान में रखते हुए अधिवक्ताओं और उनके क्लर्कों को कार्यालयों और अदालतों में आने-जाने की अनुमति दी जाएगी।

    ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ जुरिस्ट्स एंड एडवोकेट्स द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में राज्य पुलिस प्रमुख ने यह सबमिशन किया। याचिका में यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि केरल में COVID-19 के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों के बीच अधिवक्ताओं और उनके क्लर्क आवश्यक सेवाएं प्रदान करते हैं।

    जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस डॉ. कौसर एडापागथ की बेंच ने राज्य पुलिस प्रमुख के अंडरटेकिंग को दर्ज किया और कहा कि मामले को आगे की सुनवाई के लिए शुक्रवार को सूचीबद्ध किया जाता है।

    पुलिस प्रमुख ने कहा कि अधिवक्ताओं को जांच से छूट नहीं दी जाएगी, लेकिन सरकारी याचिकाकर्ता के माध्यम से अदालत में प्रवेश करते समय आईडी यानी पहचान पत्र दिखाना होगा।

    ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ जुरिस्ट्स एंड एडवोकेट्स, एडवोकेट जॉन मणि वी, एडवोकेट श्रीराम परक्कत, एडवोकेट जयंत एस, एडवोकेट जैक्सन जॉनी, एडवोकेट सेथुलक्ष्मी के के, एडवोकेट गेथॉन मेनन और एडवोकेट जेवियर थॉमस वीटी की ओर से दायर की गई याचिका में अधिवक्ताओं के कार्य को आवश्यक सेवाओं के रूप में मान्यता देने के लिए आग्रह किया गया था।

    याचिका में कहा गया कि वकील न्याय के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और न्याय पाने के लिए सुविधा प्रदान करते हैं जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।

    याचिका में कहा गया है कि,

    "न्यायपालिका के निरंतर कामकाज को रोका नहीं जा सकता है और कोर्ट हर समय अधिवक्ताओं की भागीदारी के साथ काम करता है और इसलिए अधिवक्ताओं और उनके क्लर्कों को कार्यालयों और अदालतों में आने-जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 (1) के तहत एक अधिवक्ता के रूप नागरिकों को न्याय दिलाने के मौलिक अधिकार का काम करता है।"

    याचिका में कहा गया है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में शामिल किया गया है।

    याचिका में यह भी कहा गया है कि,

    "याचिकाकर्ताओं को आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में शामिल नहीं करके कानूनी पेशे के साथ प्रतिवादी 1 और 2 द्वारा स्पष्ट रूप से मनमाने तरीके से भेदभाव किया गया है जबकि प्रतिवादी ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को आवश्यक सेवाओं की श्रेणी करके कोविड महामारी के दौरान भी काम करने की अनुमति दी गई है।"

    कोर्ट से याचिका में राज्य को निम्नलिखित निर्देश देने की मांग की गई है;

    1. अधिवक्ताओं और अधिवक्ता क्लर्कों को आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में शामिल करके कार्यालयों और अदालतों में आने-जाने की अनुमति दी जाए।

    2. अधिवक्ताओं को उनके कार्यालयों, विभिन्न न्यायालयों, न्यायाधिकरणों और अन्य न्यायिक और अर्ध-न्यायिक फोरम में मामलों के संबंध में आने जाने पर प्रतिंबध न लगाया जाए।

    3. अधिवक्ताओं को कार्यालयों में कार्य करने की अनुमति दी जाए क्योंकि अधिवक्ता लोगों को न्याय दिलाने के मौलिक अधिकार का कार्य करता है।

    4. न्यायालयों, न्यायाधिकरणों और अन्य न्यायिक और अर्ध-न्यायिक मंचों के सुचारू और निरंतर कामकाज के लिए उपयुक्त व्यवस्था करना और न्याय की मांग करने वाले लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध न लगाया जाए।

    5. यह निर्देश दिया जाए कि संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 (1) के तहत एक वकील के माध्यम से लोगों का न्याय तक पहुंच को मौलिक अधिकार घोषित किया जाए।

    अब इस याचिका पर अगले शुक्रवार 7 मई, 2021 को सुनवाई होगी।

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