'10 साल के अनुभव वाले वकील हाईकोर्ट के जज बनने के योग्य, लेकिन उपभोक्ता आयोग के सदस्य नहीं बन सकते': बॉम्बे हाईकोर्ट में उपभोक्ता संरक्षण नियमों को चुनौती

LiveLaw News Network

21 Jun 2021 5:46 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने शनिवार को केंद्र और राज्य को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 101 के तहत केंद्र सरकार द्वारा निर्मित उपभोक्ता संरक्षण नियम 2020 के खिलाफ दायर याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया, उक्त नियमों में राज्य और जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णयकारी सदस्यों के नियुक्ति की पात्रता मानदंडों के बारे में बताया गया था।

    जस्टिस सुनील शुक्रे और जस्टिस अनिल किलोर की खंडपीठ ने एडवोकेट डॉ महिंद्रा लिमये की एक रिट याचिका पर यह आदेश पारित किया। जवाब 23 जून, 2021 तक दाखिल किया जाना हैं। याचिका एडवोकेट तुषार मंडलेकर के माध्यम दायर की गई थी, जिसमें एडवोकेट रोहन मालवीय ने सहायता की थी।

    नियम 3(2)(बी) और 4(2)(सी) के अनुसार राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के निर्णयकारी सदस्य के रूप में नियुक्त होने के लिए एक स्नातक को उपभोक्ता मामलों, कानून, सार्वजनिक मामलों, प्रशासन, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, उद्योग, वित्त, प्रबंधन, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, सार्वजनिक स्वास्थ्य या चिकित्सा में विशेष ज्ञान और कम से कम बीस साल का पेशेवर अनुभव होना चाहिए, जबकि जिला फोरम के लिए उन्हीं विषयों में ज्ञान और पंद्रह वर्षों का अनुभव होना चाहिए।

    याचिका में कहा गया है कि यह मानदंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर रहा है।

    याचिका में कहा गया है, "यह बिल्कुल स्पष्ट है कि उच्च न्यायालयों में 10 साल से अधिक अभ्यास लेकिन 20 साल से कम अभ्यास करने वाले अधिवक्ताओं को राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में सदस्यों की नियुक्ति से स्पष्ट रूप से बाहर रखा गया है, जबकि वे भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 (2) के अनुसार उच्च न्यायालय के जज के रूप में नियुक्त होने के लिए योग्य हैं।"

    याचिका में कहा गया है, "उक्त खंड का उद्देश्य केवल सरकारी कर्मचारियों को में ट्रिब्यूनल में लाना है ताकि सरकार के स्पष्ट लाभ हो, और योग्य अधिवक्ताओं को बाहर रखना है।"

    लिखित परीक्षा नहीं

    हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यूपी राज्य और अन्य बनाम अखिल यूपी उपभोक्ता संरक्षण बार एसोसिएशन के मामले में 2017 में एक मॉडल नियम पर सहमति दी थी, जिसमें लिखित परीक्षा को शामिल किया गया था, जिसे अंतिम 2020 नियमों में हटा दिया गया था।

    "यह (एक लिखित परीक्षा) अध्यक्षों/गैर न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति और फोरम के कामकाज की प्रक्रिया में नौकरशाही और राजनीतिक हस्तक्षेप पर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को देखते हुए आवश्यक थी।"

    याचिकाकर्ताओं का दावा है कि 2020 के नियमों के तहत जरूरी नहीं कि किसी व्यक्ति को आयोग का निर्णायक सदस्य बनने के लिए कानून का बुनियादी ज्ञान होना चाहिए।

    "ट्रिब्यूनल के सदस्य को किसी भी आवश्यक कानूनी शैक्षणिक योग्यता और न्यायिक अनुभव के बिना नियुक्त किया जा सकता है, जिससे वह संबंधित ट्रिब्यूनल में कानूनी मुद्दों पर निर्णय लेने में अक्षम हो जाता है।"

    नियुक्ति के लिए चयन समिति के पास अत्यधिक शक्तियां

    2020 के नियम 6(9) के तहत चयन समिति को अपनी प्रक्रिया निर्धारित करने का अधिकार है। हालांकि, ऐसे प्रावधान चयन समिति को अत्यधिक शक्ति और विवेक भी देते हैं और ये मनमाने और अनुचित हैं।

    "जिला आयोग और राज्य आयोग के समक्ष आने वाले आवेदनों को ध्यान में रखते हुए, उम्मीदवारों के कौशल, क्षमता और योग्यता का आकलन करने से पहले उन्हें सूचीबद्ध करने और राज्य सरकार को सिफारिश करने की आवश्यकता है।"

    चयन समिति द्वारा सिफारिशों के लिए कोई प्रक्रिया नहीं

    2020 के नियमों के अनुसार, चयन समिति को राज्य सरकार के विचार के लिए योग्यता के क्रम में नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करनी चाहिए।

    याचिकाकर्ता ने खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण महाराष्ट्र द्वारा 2 फरवरी, 2021 को जारी रिक्ति नोटिस को चुनौती दी है, जिसमें महाराष्ट्र के आयोगों में सदस्यों के 33 रिक्त पदों को भरने के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए हैं, क्योंकि अब तक सिफारिश करने की प्रक्रिया है नियम 6 के तहत चयन समिति द्वारा अभी तक निर्धारित नहीं किया गया है।

    वकीलों को वरीयता

    य‌ाचिका में कहा गया है कि पूरे देश में 1400 से ज्यादा लॉ स्कूल और 22 लाख से ज्यादा वकील हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, जहां तक ​​सदस्य के पद का संबंध है, कानूनी पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को वरीयता दी जानी चाहिए थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि कम से कम नियमों में यह प्रावधान होना चाहिए कि वांछनीय योग्यता एलएलबी होनी चाहिए क्योंकि आयोग के सदस्य को एक करोड़ रुपये तक के आर्थिक क्षेत्राधिकार वाले उपभोक्ता विवादों को निपटाना है।

    याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि नियम मद्रास बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इं‌डिया रिट याचिका (सी) संख्या 804/202 में 27 नवंबर, 2020 को तय किए गए फैसले का भी उल्लंघन करते हैं।

    सुनवाई के दौरान केंद्र के सहायक सॉलिसिटर जनरल यूएम औरंगाबादकर और राज्य के सहायक सरकारी वकील एए मंडीवाले ने जवाब देने के लिए समय मांगा।

    याचिका में उपभोक्ता संरक्षण (नियुक्ति के लिए योग्यता, भर्ती की विधि, नियुक्ति की प्रक्रिया, पद की अवधि, इस्तीफा और अध्यक्ष और राज्य आयोग और जिला आयोग के सदस्यों को हटाने के) नियम, 2020 के अधिकार पर सवाल उठाया गया है। याचिका में विशेष रूप से नियम 3(2)(बी), नियम 4(2)(सी) और नियम 6 (8, 9 और 10) को चुनौती दी गई है।

    प्रार्थना

    याचिका में जुलाई, 2020 के नियमों को रद्द करने और अंतरिम रूप से इसके संचालन पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में 2 फरवरी, 2021 को खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण महाराष्ट्र राज्य मंत्रालय द्वारा जारी रिक्ति नोटिस को रद्द करने की मांग की गई है।

    [डॉ. महिंद्रा भास्कर लिमये बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य]

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