'न्याय व्यवस्‍था का शत्रु है स्थगन': मद्रास हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट को आठ साल पुराने हत्या मामले में जल्द से जल्द सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

15 Dec 2021 11:42 AM IST

  • मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने मुकदमों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने के खतरों पर खेद व्यक्त किया है। ज‌स्टिस एसएम सुब्रमण्यम की पीठ सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता राजा मोहन चंद्र की विधवा की एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनकी 2012 में हत्या कर दी गई थी।

    कोर्ट ने कहा कि स्थगन केवल सच्चे कारणों को दर्ज करके दिया जाना चाहिए, अन्यथा नहीं।

    कोर्ट ने कहा,

    "स्थगन न्याय वितरण प्रणाली के शत्रु हैं। इन्हें विवेकपूर्ण तरीके से और कारणों को दर्ज करके प्रदान किया जाए। यह सच है कि स्थगन की मांग ज्यादातर कमजोर कारणों से की जाती है। अदालतें भी स्थगन पर सुविधा या आलस्य के कारण विचार करती हैं। ...कभी-कभी कोर्ट भी विद्वान वकीलों से स्थगन की मांग की उम्मीद कर रहे होते हैं।"

    अदालत ने कहा कि ऐसा दृष्टिकोण उचित नहीं है, खासकर न्याय की प्रतीक्षा कर रहे लोगों की पीड़ा को देखते हुए। अदालत ने कहा कि अदालतों के दिमाग में हमेशा बजती हुई घंटी होनी चाहिए।

    अदालत ने तिरुवन्नामलाई जिला और सत्र न्यायालय को आपराधिक मुकदमे को छह महीने में समाप्त करने का निर्देश दिया है।

    अदालत ने टालमटोल की रणनीति पर कहा,

    "यहां तक ​​​​कि सच्चे कारणों पर भी लंबे समय तक स्थगन की अनुमति नहीं दी जाएगी, सिवाय यह देखते हुए कि इस तरह के स्थगन आसन्न हैं। मामले को लंबा खींचना और टालमटोल करना कुछ कानूनी दिमागों की रणनीति है। अदालतें ऐसी रणनीतियों के लिए रास्ता नहीं देगी।"

    तथ्यों के मुताबिक, सामाजिक कार्यकर्ता की हत्या के मामले में आठ साल से अधिक समय से मुकदमा लंबित है। सत्र न्यायालय ने आरोप तय नहीं किए हैं और बार-बार स्थगन दिए गए हैं। फिलहाल, इस मामले के 10 फरवरी, 2022 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। सात दिसंबर को मामले को स्‍थगित कर दिया गया था।

    अभियोजन के मामले के अनुसार, दो जुलाई, 2012 को सामाजिक कार्यकर्ता की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। याचिकाकर्ता पत्नी वारदात की साक्षी है। उसकी शिकायत पर तिरुवन्नामलाई टाउन पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी।

    मामले में 2012 में रिट याचिका दायर की गई, जिसमें उनके पति की हत्या की न्यायिक आयोग से जांच की मांग की गई थी। प्रतिवादी पुलिस ने तेजी से जांच की और अगस्त 2012 में अंतिम रिपोर्ट सौंप दी।

    दस आरोपियों में से दो की पहले ही मौत हो चुकी है और मामला 2012 से जिला एवं सत्र न्यायालय तिरुवन्नामलाई के समक्ष लंबित है। अभियोजन पक्ष ने कहा कि आरोप पत्र की प्रति अभी तक सभी आरोपियों को नहीं दी गई है, हालांकि उस प्रक्रिया को जल्द पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है।

    हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका में उन लोगों की गतिविधियों की जांच के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई है, जिनका खुलासा कार्यकर्ता ने किया है। साथ ही एक करोड़ रुपये मुआवजे की राशि की मांग की गई है। राजा मोहन चंद्र पर उनके सामाजिक कार्यों के लिए कथित तौर पर हमला किया गया था और उनकी हत्या कर दी गई थी।

    याचिकाकर्ता पत्नी और अभियोजन पक्ष के अनुसार, उसने कई पुलिस और राजस्व अधिकारियों के साथ-साथ बार के सदस्यों और एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के अवैध कृत्यों को उजागर किया था। भले ही वह इंजीनियरिंग स्नातक थे, उन्होंने कानून में रुचि ली और इसका इस्तेमाल कमजोरों की भलाई के लिए किया, जिसका नतीजा यह रहा कि कई शक्तिशाली लोग उनके दुश्मन हो गए।

    अपने आदेश में, अदालत ने कहा कि जब मारा गया व्यक्ति एक निर्दोष सामाजिक कार्यकर्ता है तो पुलिस के साथ-साथ अदालतों को जल्द से जल्द मुकदमे को पूरा करने में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "यदि ऐसे कार्यकर्ता की हत्या के क्रूर कृत्य के मामलों में मुकदमा चलाने में देरी होती है तो यह ऐसे बदमाशों को इस प्रकार के और अपराध करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।"

    अदालत ने कहा कि त्वरित सुनवाई पीड़ित का अधिकार है और स्थगन करते समय विवेक का प्रयोग किया जाना चा‌हिए।

    कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,

    "जिला और सत्र न्यायालय, तिरुवन्नामलाई को सुनवाई की तारीख को और पहले करके जनवरी 2022 के पहले सप्ताह में किसी तारीख को करने का निर्देश दिया जाता है और उस तारीख को चार्जशीट की सेवा की प्रक्रिया पूरी की जाएगी और उसके बाद बिना किसी और देरी के परीक्षण शुरू किया जाना चाहिए।"

    इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत ने सत्र न्यायाधीश को आदेश मिलने की तारीख से छह महीने के भीतर मामले का निपटारा करने को कहा है। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अनावश्यक स्थगन से बचा जाना चाहिए और वास्तविक कारणों से स्थगन को स्पष्ट रूप से दर्ज किया जाना चाहिए।

    केस शीर्षक: एलेअम्मा जोसेफ @ मिनी बनाम पुलिस इंस्पेक्टर और अन्य

    केस नंबर: WPNo.27578 of 2012


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