आदिपुरुष‌ विवाद| 'धार्मिक प्रतीकों के शर्मनाक चित्रण से लोगों की भावनाएं आहत हुईं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिल्म निर्देशक, संवाद लेखक की व्यक्तिगत उपस्थिति का निर्देश दिया

Avanish Pathak

1 July 2023 8:23 AM GMT

  • आदिपुरुष‌ विवाद| धार्मिक प्रतीकों के शर्मनाक चित्रण से लोगों की भावनाएं आहत हुईं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिल्म निर्देशक, संवाद लेखक की व्यक्तिगत उपस्थिति का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओम राऊत निर्देशित फिल्‍म आदिपुरुष के मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि भगवान राम, देवी सीता और भगवान हनुमान सहित धार्मिक प्रतीकों के शर्मनाक और घृणित चित्रण ने बड़े पैमाने पर लोगों की भावनाओं को आहत किया है।

    हाईकोर्ट ने फिल्म निर्देशक ओम राउत और ‌फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से उपस्थिति होकर अपनी प्रामाणिकता को समझाने के लिए कहा है।

    जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने केंद्र सरकार को प्रभास, सैफ अली खान और कृति सैनन अभिनीत फिल्म को जारी प्रमाण पत्र की 'फिर से समीक्षा' करने के लिए एक समिति गठित करने का भी निर्देश दिया है।

    28 जून को पारित अपने आदेश में, न्यायालय ने कहा है कि फिल्म के संवाद लेखक सहित फिल्म निर्माताओं ने धार्मिक पात्रों की पवित्रता का ध्यान रखे बिना उन्हें दिखाया है।

    इस संबंध में कोर्ट ने आगे कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी शालीनता या नैतिकता या सार्वजनिक व्यवस्था आदि के खिलाफ कुछ भी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    कोर्ट ने कहा,

    “हमारे लिए यह फिल्म प्रथम दृष्टया भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत निर्धारित परीक्षण में उत्तीर्ण नहीं होती है… न केवल फिल्म के संवाद घटिया हैं, बल्कि देवी सीता को चित्रित करने वाले फिल्म के कई दृश्य भी घटिया हैं। उनके चरित्र के लिए अपमानजनक हैं और विभीषण की पत्नी का चित्रण करने वाले कुछ दृश्य प्रथम दृष्टया अश्लील भी हैं जो बिल्कुल अनुचित और अनावश्यक हैं। यहां तक कि रावण, उसकी लंका आदि का चित्रण भी कितना हास्यास्पद और घटिया है।''

    “…ऐसी फिल्म बनाते समय, फिल्म निर्माताओं और संवाद लेखक ने बड़े पैमाने पर पात्रों और संवादों को शर्मनाक और अश्लील तरीके से चित्रित करते हुए जनता की भावनाओं का ख्याल नहीं रखा है, यह जानते हुए भी कि भगवान राम, देवी सीता और भगवान हनुमान की पूजा समाज के बड़ी संख्या में लोग करते हैं।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि उसने इस बात पर जोर दिया कि सेंसर बोर्ड सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5-बी के तहत जारी दिशानिर्देशों का पालन किए बिना फिल्म रिलीज करने के लिए प्रमाण पत्र जारी करते समय अपने कानूनी कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल रहा।

    न्यायालय ने ये टिप्पणियां दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें विपरीत पक्षों को फिल्म 'आदिपुरुष' से आपत्तिजनक संवादों और दृश्यों को हटाने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

    अदालत के समक्ष जनहित याचिका में कहा गया है कि फिल्म में देवताओं और अन्य प्रतीकों और पात्रों को घृणित और अश्लील तरीके से चित्रित किया गया है, जिससे बड़े पैमाने पर जनता की भावनाएं आहत हो रही हैं जो उन देवताओं / प्रतीकों की पूजा करते हैं।

    न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि इस प्रकार यह की अकेली फिल्म नहीं है और हिंदू देवताओं को दिखाने वाली कई अन्य फिल्में पहले भी बनाई जा चुकी हैं।

    मामले में न्यायालय ने फिल्म की रिलीज के तुरंत बाद उचित कार्रवाई करने के लिए उचित तंत्र होने के बावजूद बड़े पैमाने पर जनता की भारी अशांति को देखने के बाद प्रमाणपत्र को निलंबित करने या रद्द करने या फिल्म के प्रदर्शन को रोकने के लिए कदम उठाने या कोई उचित कार्रवाई नहीं करने के लिए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार को भी आड़े हाथ लिया।

    हालांकि, न्यायालय ने फिल्म या संवाद लेखक सहित विरोधी पक्षों के खिलाफ कोई अंतरिम आदेश या कोई कठोर आदेश जारी करने के बजाय, सक्षम प्राधिकारी को अधिनियम, 1952 की धारा 6 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए जनता के मुद्दे/शिकायत पर फिर से विचार करने का एक अवसर देना उचित समझा।

    संदर्भ के लिए, 1952 अधिनियम की धारा 6 जो केंद्र सरकार को पुनरीक्षण शक्ति प्रदान करती है जो शिकायत से संबंधित रिकॉर्ड आदि मांग सकती है, यदि कोई हो और उक्त शिकायत केसंबंध में संतुष्ट होने के बाद उचित आदेश पारित कर सकती है।

    कोर्ट ने कहा,

    “…अगर यह पाया जाता है कि जनहित याचिकाओं में बताई गई बड़े पैमाने पर जनता की शिकायत वास्तविक है और सेंसर बोर्ड ने विशिष्ट दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया है..अधिनियम, 1952 की धारा 5-ई के तहत उचित आदेश पारित किया जा सकता है।"

    1952 अधिनियम की धारा 5-ई केंद्र सरकार को किसी विशेष अवधि के लिए फिल्म को दिए गए प्रमाणपत्र को निलंबित करने के लिए अधिकृत करती है, जैसा कि वह उचित समझती है या ऐसे प्रमाणपत्र को रद्द कर सकती है यदि फिल्म अधिनियम के प्रावधानों या उसके नियम के विरोधाभास में प्रदर्शित की जा रही है।

    गौरतलब है कि कोर्ट ने केंद्र सरकार को विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का भी निर्देश दिया है, जिनकी संख्या कम से कम 5 हो, जिनमें से दो ऐसे व्यक्ति होने चाहिए जो वाल्मिकी रामायण, तुलसीकृति रामचरित मानस और अन्य धार्मिक महाकाव्य आदि से अच्छी तरह वाकिफ हों

    कोर्ट ने लिस्टिंग की अगली तारीख (27 जुलाई) तक सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव के व्यक्तिगत हलफनामे के साथ समिति की रिपोर्ट मांगी है।

    न्यायालय ने फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष को अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर न्यायालय को यह बताने का भी निर्देश दिया है कि क्या फिल्म को प्रमाण पत्र जारी करते समय सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों के प्रमाणन के दिशानिर्देशों का अक्षरश: पालन किया गया है।

    केस टाइटल-कुलदीप तिवारी एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, सचिव सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से और 13 अन्य एक संबंधित जनहित याचिका के साथ


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