अडानी पॉवर और गुजरात ऊर्जा विकास ने समझौता किया, सुप्रीम कोर्ट ने क्यूरेटिव पिटिशन का निपटारा किया

LiveLaw News Network

8 Feb 2022 1:45 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुजरात ऊर्जा विकास लिमिटेड (जीयूवीएल) और अडानी पॉवर लिमिटेड के बीच अदालत के बाहर समझौता स्वीकार कर लिया। 3 जजों की पीठ के फैसले के खिलाफ जीयूवीएल ने एक क्यूरेटिव पिटिशन दायर की थी। फैसले में जीयूवीएल के साथ बिजली खरीद के अडानी पॉवर के समझौते की समाप्‍त‌ि को बरकरार रखा गया था।

    चीफ जस्ट‌िस एनवी रमना, जस्टिस यूयू ललित, ज‌स्टिस डीवाई चंद्रचूड़, ज‌स्टिस बीआर गवई और ज‌स्टिस सूर्यकांत की 5 जजों की पीठ के समक्ष क्यूरेटिव प‌िट‌िशन को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था।

    अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मंगलवार को पीठ को बताया कि पक्षों ने विवादों को सुलझा लिया है।

    उन्होंने कहा, "10,000 करोड़ मुआवजे का दावा था और अब इसे वापस ले लिया गया है। इसलिए हम निस्तारण लिए प्रार्थना करते हैं।",

    अडानी के वकील ने पीठ को बताया कि वे जीयूवीएल को बिजली की आपूर्ति जारी रखने पर सहमत हो गए हैं। सीजेआई ने पूछा कि क्या फैसले में हस्तक्षेप किए बिना क्यूरेटिव प‌िटिशन में समझौता स्वीकार किया जा सकता है।

    अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता सीए सुंदरम ने प्रस्तुत किया कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों को समझौते को स्वीकार करने के लिए लागू किया जा सकता है।

    जस्टिस ललित ने कहा, "मेरे पास एक सुझाव है। हम केवल यह रिकॉर्ड करेंगे कि एक समझौता किया गया है और उस समझौते के संदर्भ में निपटारा किया गया है। हम केवल यह कहेंगे कि पार्टियों के रिश्ते समझौते से शासित होंगे।"

    पीठ ने तब निम्नलिखित आदेश दिया,

    "हमारी ओर से नोटिस जारी होने के बाद, ऐसा प्रतीत होता है कि पार्टियों ने विवाद सुलझा लिया है और संयुक्त आवेदन दायर किया है। सुनवाई के बाद, निस्तारण विलेख को रिकॉर्ड में लिया जाता है। निस्तारण के मद्देनजर, हम यह कहते हुए क्यूरेटिव पिटिशन का निस्तारण करते हैं कि दोनों पार्टियां पार्टियों द्वारा किए गए समझौते द्वारा शासित होती हैं। तदनुसार, याचिका का निपटारा किया जाता है।"

    2019 में जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की 3 जजों की बेंच ने अडानी पॉवर की जीयूवीएल के साथ पीपीए की समाप्ति को बरकरार रखा था। इस मामले में, अडानी ने इस आधार पर जीयूवीएल के साथ पीपीए को समाप्त कर दिया था कि गुजरात खनिज विकास निगम (जीएमडीसी) उसे कोयले की आपूर्ति करने में विफल रहा है। अडानी के अनुसार, पार्टियों के बीच यह समझ थी कि जीयूवीएल को बिजली की आपूर्ति जीएमडीसी द्वारा कोयले की आपूर्ति पर सशर्त थी। अडानी ने भी परिसमापन नुकसान के रूप में 25 करोड़ रुपये जमा किए।

    टर्मिनेशन के खिलाफ जीयूवीएल ने गुजरात स्टेट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन से संपर्क किया। आयोग ने टर्मिनेशन को अवैध करार दिया। आयोग ने पाया कि पीपीए की शर्तों ने केवल तभी समाप्ति की अनुमति दी जब दोनों पक्ष समझौते में थे कि डिफ़ॉल्ट हुआ था। इस निष्कर्ष को अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा बरकरार रखा गया था

    जीयूवीएल ने पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे सितंबर 2019 में उन्हीं तीन जजों की पीठ ने खारिज कर दिया। उसके बाद जीयूवीएल ने क्यूरेटिव पिटिशन दायर की।

    16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अदानी पॉवर के पक्ष में 2019 के फैसले के खिलाफ जीयूवीएल की क्यूरेटिव पिटिशन में नोटिस जारी किया।

    यह मामला 2019 में तब विवाद का विषय बन गया, जब सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने तत्कालीन सीजेआई को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि अडानी समूह से संबंधित कई मामलों को आउट-ऑफ -टर्न लिस्टिंग दी गई है। दवे ने यह भी आरोप लगाया कि मामलों को जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जो तत्कालीन प्रचलित रोस्टर प्रणाली का उल्लंघन था। वर्तमान मामला दवे के पत्र में उल्लिखित मामलों में से एक था।

    केस शीर्षक: गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड बनाम मेसर्स अडानी पॉवर (मुंद्रा) लिमिटेड और अन्य।

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