''अचानक उकसावे में कृत्य किया'': उड़ीसा हाईकोर्ट ने अपनी मां की हत्या के आरोपी की सजा को आईपीसी धारा 302 से धारा 304 भाग-II में परिवर्तित किया

LiveLaw News Network

11 March 2022 4:45 AM GMT

  • अचानक उकसावे में कृत्य किया: उड़ीसा हाईकोर्ट ने अपनी मां की हत्या के आरोपी की सजा को आईपीसी धारा 302 से धारा 304 भाग-II में परिवर्तित किया

    Orissa High Court

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में अपनी मां की हत्या करने के मामले में भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 302 के तहत आरोपित व्यक्ति की सजा को आईपीसी की धारा 304 भाग-II(हत्या की श्रेणी में न आने वाली गैर इरादतन हत्या) में परिवर्तित कर दिया है।

    अभियुक्त को राहत प्रदान करते हुए मुख्य न्यायाधीश डॉ. एस. मुरलीधर और जस्टिस आर.के. पटनायक की पीठ ने कहा कि,

    ''मामले में एक तथ्य यह भी है कि आरोपी ने किसी भी खतरनाक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया। उसने पहले मृतक की छड़ी का इस्तेमाल किया और बाद में स्थानीय रूप से उपलब्ध पत्थर का इस्तेमाल किया। स्पष्ट रूप से, उसने अचानक उकसावे में इस घटना को उस समय अंजाम दिया,जब उसकी मां ने उसे गांव जाने से रोकने की कोशिश की। उसने अपनी मां पर हमला करने के बाद भागने की कोशिश नहीं की। यह भी नहीं बताया गया है कि उसका आपराधिक व्यवहार का कोई इतिहास रहा है।''

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमिः

    घटना की तारीख को सुबह करीब नौ बजे आरोपी ने मृतका (आरोपी की मां) को सूचना दी कि वह गांव गिधमाल जाएगा। लेकिन मृतका ने इसका विरोध किया और आरोपी को अपने परिवार का पेट पालने के लिए कुछ काम करने की सलाह दी। आरोपी इससे नाराज हो गया और कहा कि बूढ़ी औरत हमेशा उसके इरादों पर आपत्ति जताती है। उसने अपनी मां की ही छड़ी से उस पर हमला किया जो बाद में टूट गई। उसकी मां रोती हुई नीचे गिर गई, जिसे सुनकर पीडब्ल्यू-2 (आरोपी के पिता) ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की।

    हालांकि, आरोपी ने पीडब्ल्यू-2 पर भी पथराव किया और अपनी मां के कान के दाहिने हिस्से पर भी पत्थर से हमला किया। फिर वह वहां से चला गया और एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसकी मां को घायल अवस्था में एक खाट पर लिटा दिया गया और इस घटना की सूचना पीडब्ल्यू-1 (आरोपी के भाई और शिकायतकर्ता) को दी गई, जिसने आकर अपनी मां को थोड़ा पानी पिलाया और इसके बाद उसकी मां की मौत हो गई। इस तथ्य की पीडब्ल्यू-2 द्वारा पुष्टि की गई है।

    सीआरपीसी की धारा 313, के तहत अपने बयान में, आरोपी ने अपनी मां के साथ मारपीट करने और उसे चोट पहुंचाने की बात स्वीकार की। अभियुक्त की ओर से निचली अदालत के समक्ष यह आग्रह करने का गंभीर प्रयास किया गया था कि आईपीसी की धारा 84, को इस मामले में आकर्षित किया जाए क्योंकि आरोपी घटना के समय बेसुध था और अपने कृत्यों की प्रकृति को जानने में सक्षम नहीं था।

    पीडब्ल्यू-2 के सबूतों पर भी भरोसा किया गया, जिसने अपनी जिरह में कहा था कि बचपन में, आरोपी को दौरे पड़ते थे और जब वह चिड़चिड़ा होता था तो अपने ही बच्चे को उठाकर फेंक देता था। यह भी कहा गया कि आरोपी कई बार खुद पर नियंत्रण खो देता है। पीडब्ल्यू-2 ने यह भी स्वीकार किया कि आरोपी गरीबी के कारण अपना इलाज जारी रखने में असमर्थ था। इसकी पुष्टि पीडब्ल्यू-3 (आरोपी की पत्नी) ने भी की,उसने बताया कि उनकी शादी होने के बाद से ही आरोपी पागल आदमी की तरह व्यवहार कर रहा है।

    निचली अदालत के अनुसार, पागलपन को स्थापित करने का महत्वपूर्ण समय वह था जब अपराध वास्तव में किया गया था। चूंकि अपराध करने के तुरंत बाद में अभियुक्त की मानसिक स्थिति का कोई सबूत नहीं दिया गया था, इसलिए निचली अदालत पागलपन की दलील को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। तदनुसार, उसे आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास और पांच हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई और जुर्माना न भरने पर छह माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।

    न्यायालय का अवलोकनः

    हाईकोर्ट ने माना कि अभियुक्त की यह मांग कि आईपीसी की धारा 84 इस मामले में लागू होती है, निचली अदालत के समक्ष अधिक गंभीरता से विचार करने योग्य तथ्य था। ट्रायल कोर्ट को ट्रायल के चरण में भी अभियुक्त का मूल्यांकन करने से कोई रोक नहीं रहा था। इस प्रकार, यह शायद खोए हुए अवसर का मामला है।

    कोर्ट ने पाया कि डॉक्टर (पीडब्ल्यू-6) ने मृतक को लगी ''दोनों चोटों'' को ''साधारण प्रकृति'' की बताया है। यह तथ्य भी निर्विवाद रहा है कि आरोपी ने किसी खतरनाक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया। उसने पहले मृतक की छड़ी का इस्तेमाल किया और फिर स्थानीय रूप से उपलब्ध पत्थर से उसके साथ मारपीट की। इस प्रकार, यह माना गया कि जब उसकी मां ने उसे गांव जाने से रोकने की कोशिश की, तो उसने अचानक उकसावे में आकर इस घटना को अंजाम दिया था। यह तथ्य भी स्वीकार किया गया है कि उसने अपराध स्थल से भागने की कोशिश नहीं की।

    पूरे साक्ष्य की समग्र समीक्षा करने के बाद न्यायालय ने माना कि आरोपी का मामला आईपीसी की धारा 304 भाग-II के तहत कवर होगा। चूंकि आरोपी ने 15 साल से अधिक समय कस्टडी में बिता लिया है, इसलिए उसके द्वारा जेल में बिताए गए दिनों को ही पर्याप्त सजा मान लिया गया। उस पर लगाए गए जुर्माने की राशि व डिफ़ॉल्ट सजा को माफ कर दिया गया है।

    केस का शीर्षक- गोवर्धन प्रधान बनाम उड़ीसा राज्य

    केस नंबर- जेसीआरएलए नंबर 87/2006

    निर्णय की तिथि- 09 मार्च 2022

    कोरम- मुख्य न्यायाधीश डॉ. एस. मुरलीधर और जस्टिस आर.के. पटनायक

    अपीलकर्ता के लिए वकील- सुश्री रुचि राजघरिया, एमिकस क्यूरी

    प्रतिवादी के लिए वकील- श्री जे कटिकिया, अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता

    निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story