बिना पेनिट्रेशन के आरोपी द्वारा अपनी और पीड़िता की पतलून उतारने का कृत्य POCSO के तहत यौन हमले के समान, 'बलात्कार का प्रयास' नहींः जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

13 July 2021 12:30 PM GMT

  • बिना पेनिट्रेशन के आरोपी द्वारा अपनी और पीड़िता की पतलून उतारने का कृत्य POCSO के तहत यौन हमले के समान, बलात्कार का प्रयास नहींः जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने माना है कि पेनिट्रेशन के अभाव में किसी आरोपी द्वारा अपनी और पीड़िता की पतलून को उतारने का कृत्य भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 376/511 के अर्थ में 'बलात्कार का प्रयास' नहीं है। हालाँकि, कोर्ट ने कहा है कि यह कृत्य POCSO एक्ट की धारा 7/8 के तहत यौन हमले की श्रेणी में आ सकता है।

    न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने इस मामले में उस आरोपी व्यक्ति को जमानत दे दी है,जिस पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा), 354 (महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल), 511 (आजीवन कारावास या अन्य कारावास के साथ दंडनीय अपराध करने का प्रयास करने के लिए दंड) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 8 (यौन हमले के लिए सजा) के तहत अपराध करने का आरोप है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर पीड़िता के कपड़े उतार दिए थे और अपनी पतलून भी उतार दी थी। इस प्रकार, यह अपराध करने का प्रयास करने के लिए तैयारी करने की एक कोशिश थी। याचिकाकर्ता द्वारा कोई और कृत्य किए बिना, इस निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल है कि याचिकाकर्ता का इरादा बलात्कार करने का था या याचिकाकर्ता द्वारा किया गया कृत्य बलात्कार करने के प्रयास के समान है।''

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहाः

    ''पीड़िता के बयान पर विश्वास करते हुए प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता का कृत्य बलात्कार करने की तैयारी करने के समान हो सकता है लेकिन इसे बलात्कार करने का प्रयास नहीं कहा जा सकता है। इसलिए, प्रथम दृष्टया, आईपीसी की धारा 511 आकर्षित नहीं होती है। यह आईपीसी की धारा 354 के तहत दंडनीय अभद्र बलक्रिया का मामला हो सकता है।''

    अदालत याचिकाकर्ता की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर शिकायतकर्ता की उस भतीजी के साथ बलात्कार करने का प्रयास करने का आरोप लगाया है,जो मोबाइल एक्सेसरीज खरीदने के लिए याचिकाकर्ता के घर गई थी।

    जांच के दौरान मेडिकल जांच में पता चला कि न तो संभोग हुआ था और न ही पीड़िता के शरीर पर हिंसा के कोई निशान थे।

    दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी )की धारा 164 के तहत नाबालिग पीड़िता द्वारा दिए गए बयान में उसने कहा था कि याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर एक टेप से उसका मुंह बंद कर दिया, उसकी पतलून उतार दी और अपनी पतलून भी उतार दी। हालांकि याचिकाकर्ता के भाई के मौके पर पहुंचने के कारण उसने उसकी टेप हटा दी और दूसरी तरफ चला गया।

    अदालत ने कहा, ''आईपीसी की धारा 375 में दी गई बलात्कार की परिभाषा के आलोक में पीड़िता के बयान का विश्लेषण करने के बाद, निर्विवाद रूप से, याचिकाकर्ता का कृत्य किसी भी तर्क से, बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है।''

    इस सवाल का जवाब देते हुए कि क्या याचिकाकर्ता द्वारा अपनी और पीड़ित की पतलून को उतारने का कृत्य आईपीसी की धारा 511 के तहत दंडनीय बलात्कार का प्रयास माना जाएगा?, अदालत ने माना कि प्रथम दृष्टया यह कृत्य बलात्कार करने के लिए ''तैयारी करने'' के समान हो सकता है,परंतु इसे बलात्कार करने का प्रयास नहीं कहा जा सकता है।

    पीठ ने कहा कि,

    ''इस प्रकार, अपराध करने की तैयारी और प्रयास के बीच बारीक अंतर है और दोनों के बीच का अंतर अधिक से अधिक दृढ़ संकल्प पर निर्भर है और इसलिए, बलात्कार का प्रयास करने के अपराध के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि आरोपी तैयारी के चरण से आगे निकल गया था।''

    न्यायालय तब एक अन्य मुद्दे पर विचार करने के लिए आगे बढ़ा कि,''क्या प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के खिलाफ POCSO एक्ट की धारा 8 के तहत अपराध बनता है?''

    उक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए, न्यायालय ने कहा कि,

    ''पीड़िता के बयान के अनुसार, जो मामले में एकमात्र प्राथमिक सबूत है, यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता द्वारा लड़की की पतलून और अपनी पतलून उतारना यौन इरादे से किया गया कृत्य था, जिसमें पेनिट्रेशन के बिना शारीरिक संपर्क शामिल था और इसलिए वह धारा 8 के तहत दंडनीय यौन हमले के समान होगा, जिसमें कम से कम तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है और उसे पांच साल तक बढाया जा सकता है और जुर्माना भी हो सकता है।''

    इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा किः

    ''इसलिए, मेरा प्रथम दृष्टया विचार है कि याचिकाकर्ता पर न केवल अभद्र हमला करने का आरोप है, बल्कि ऐसा लगता है कि उसने POCSO एक्ट की धारा 7 के तहत परिभाषित यौन हमला भी किया है।''

    हालांकि, इस तथ्य की समग्रता को देखते हुए कि मामले में जांच पूरी हो चुकी है और चालान को ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया गया है, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमानत दे दी।

    कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि,

    ''हम यह भी नहीं भूल सकते कि जमानत एक नियम है और इसका इनकार एक अपवाद है। गिरफ्तारी के उद्देश्य को अच्छी तरह से पूरा कर लिया गया है। इस प्रकार, याचिकाकर्ता को जमानत पाने का हकदार माना जाता है और उसे ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 50000 रुपये की राशि का व्यक्तिगत बांड और दो जमानतदार पेश करने की शर्त के अधीन जमानत दी जाती है।''

    केस का शीर्षकः फयाज अहमद डार बनाम जम्मू एंड कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश

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