पत्नी की तरह रहने वाली महिला को नहीं किया जा सकता भरण पोषण से वंचित : त्रिपुरा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

8 July 2020 3:00 PM GMT

  • पत्नी की तरह रहने वाली महिला को नहीं किया जा सकता भरण पोषण से वंचित : त्रिपुरा हाईकोर्ट

    "ऐसी महिला को सम्मान के साथ समाज में रहने का अधिकार है न कि निराश्रित के रूप में।"

    त्रिपुरा हाईकोर्ट ने कहा है कि एक महिला ,जो एक पत्नी की तरह रहती थी और जिसे पत्नी की तरह ही माना जाता था, उसे भरण-पोषण पाने से वंचित नहीं किया जा सकता ।

    न्यायमूर्ति एस तालपात्रा ने कहा कि ऐसी महिला को समाज में भी सम्मान के साथ जीने का अधिकार है और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 को विधायी परिवर्तनों के मद्देनजर व्याख्यायित किया जाना चाहिए, जिसने स्त्री-पुरुष के रिश्तों की बदलती वास्तविकता को अपने दायरे में ले लिया है।

    इस मामले में पति की तरफ से यह दलील दी गई थी कि उसके खिलाफ भरण-पोषण की मांग करने वाली महिला ने उससे शादी की थी, परंतु उस समय उसकी पहली पत्नी जिंदा थी। इसलिए वह उसकी पत्नी नहीं है क्योंकि उनके बीच हुई शादी कानूनी रूप से मान्य नहीं थी।

    फैमिली कोर्ट ने कहा कि उनके बीच हुआ विवाह साक्ष्यों से साबित हो गया है। कोर्ट ने कहा कि शादी के समय भले ही पति की पहली पत्नी जिंदा थी,परंतु उसने इस तथ्य को रखरखाव मांगने वाली महिला से शादी के समय छुपाया था। ऐसे में पति को उसकी अपनी गलती का फायदा उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    हाईकोर्ट के समक्ष यह तर्क दिया गया था कि सीआरपीसी की धारा 125 (1) के उद्देश्य के लिए कानूनी रूप से विवाहित महिलाओं को छोड़कर किसी भी महिला को ''पत्नी'' की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने प्रोटेक्शन ऑफ वूमन फ्रम डोमेस्टिक वायलंस एक्ट 2005 के तहत दी गई भरण पोषण की अवधारणा पर विचार किया और कहा कि अदालत को ऐसा अभिप्राय निकालने से बचना चाहिए जो कानून को कम करके उसे निरर्थक बना दे। अदालत को इस दृष्टिकोण के आधार पर एक बोल्डर या स्पष्ट अभिप्राय को स्वीकार करना चाहिए कि संसद ने एक प्रभावी परिणाम लाने के उद्देश्य से ही कानून बनाया है।

    पीठ ने कहा कि-

    '' जो महिला एक पत्नी की तरह रहती थी और उसे पत्नी ही माना जाता था,उसे रखरखाव से वंचित नहीं किया जा सकता है। रखरखाव देने के उद्देश्य से एक को-टर्मिनस प्रावधान पर गौर किया जा सकता है और परिभाषा में एकरूपता लाई जा सकती है। हिंदू पत्नी के लिए रख-रखाव का प्रावधान हिंदू अडाप्शन एंड मेंटनेंस एक्ट 1956 की धारा 18 में भी उपलब्ध है। लेकिन मेरे अनुसार सबसे हालिया कानून प्रोटेक्शन आॅफ वूमन फ्रम डोमेस्टिक वायलंस एक्ट 2005 है,जिसने स्त्री-पुरुष संबंधों की बदलती वास्तविकता को अपने दायरे में स्वीकार किया है.................

    जब एक कानून उस व्यक्ति के लिए रखरखाव या गुजारे भत्ते को सुनिश्चित करता है,जो शादी की प्रकृति वाले रिश्ते में रहता है तो दूसरे कानून की इस तरह से व्याख्या नहीं की जा सकती है कि वह रखरखाव देने से संबंधित प्रावधान को ही निरस्त कर दें। इस प्रकार कानून के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या अत्यंत सहायक और जरूरी होगी। इसके अलावा इस तरह की व्याख्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित संवैधानिक समानुभूति या हमदर्दी के साथ सामंजस्यपूर्ण होगी क्योंकि महिलाओं को सम्मान के साथ समाज में रहने का अधिकार है,न कि एक निराश्रित के रूप में।''

    याचिका पर ध्यान देते हुए अदालत ने कहा कि महिला को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उसका पति पहले से शादीशुदा है, लेकिन वे डोल पूर्णिमा के दिन सारे रीति-रिवाज पूरे करने के बाद दस साल से अधिक समय तक पति-पत्नी के तौर पर रहे थे। इसी के साथ पीठ ने रिविजन याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि पति उपरोक्त पहलू को गलत साबित करने में विफल रहा है।

    केस का नाम- बिभूति रंजन दास बनाम गौरी दास

    केस नंबर-सीआरएल.आरईवी.पी 81/2019

    कोरम-जस्टिस एस तालपात्रा

    प्रतिनिधित्व-अधिवक्ता आर चक्रवर्ती, ए देबबर्मा, एस भट्टाचार्जी

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