किसी व्यक्ति ने भाई के साथ मिलकर चाची के साथ दुष्कर्म किया हो, यह उम्मीद नहीं की जा सकती, उड़ीसा हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषसिद्धि रद्द की
Avanish Pathak
29 Sept 2023 4:16 PM IST
उड़ीसा हाईकोर्ट ने 31 साल पुराने एक मामले में एक व्यक्ति को अपने भाई और अन्य आरोपियों के साथ मिलकर अपनी चाची के साथ दुष्कर्म करने के आरोप से बरी कर दिया।
जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने अपीलकर्ता को राहत देते हुए कहा,
“विद्वान सत्र न्यायाधीश खुद को यह भरोसा नहीं दिला पाए कि कि एक बड़ा भाई और छोटा भाई मिलकर अपनी चाची के साथ बलात्कार करेंगे… एक व्यक्ति से शायद ही यह उम्मीद की जा सकती है कि वह अपने छोटे भाई के मिलकर अपनी चाची की गरिमा को ठेस पहुंचाएगा। ”
28.02.1992 को पीड़िता ने वर्तमान अपीलकर्ता और चार अन्य आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि जब वह अकेली थी तो आरोपी उसके घर में घुस गए और उसका मुंह बंद कर दिया, उसे जमीन पर लिटा दिया और दो सह-अभियुक्तों ने एक के बाद एक उसके साथ संभोग किया।
जब घटना हो रही थी, उसी समय फूला माझी नामक महिला मौके पर पहुंची और उसने अपराध होते देखा। हालांकि, कथित तौर पर आरोपियों ने उसका पीछा किया गया था। फूला ने घटना के बारे में पीड़िता के पति को सूचित किया, जिसके बाद वे घटनास्थल पर पहुंचे और देखा कि आरोपी पहले ही भाग चुके थे।
एफआईआर दर्ज होने पर जांच की गई और आरोपियो के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 448/376(2)(जी)/34 के तहत आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।
सुनवाई के बाद, सत्र न्यायाधीश, मयूरभंज ने माना कि पीड़िता के साथ-साथ उसके पति और चश्मदीद गवाह के साक्ष्य बलात्कार के आरोप को साबित नहीं करते हैं। हालांकि, उन्होंने माना कि पीड़िता के घर में आरोपियों की मौजूदगी और शारीरिक बल का प्रयोग बखूबी साबित हुआ है।
इसलिए, ट्रायल कोर्ट ने उन्हें आईपीसी की धारा 451/354/34 के तहत दोषी पाया और तदनुसार सजा सुनाई। दोषसिद्धि के आदेश से व्यथित होकर, वर्तमान अपीलकर्ता सहित तीन आरोपियों ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की। चूंकि अपील लंबित रहने के दरमियान उनमें से दो की मृत्यु हो गई, इसलिए उनके खिलाफ मामला समाप्त हो गया।
निष्कर्ष
अदालत ने कहा कि अभियोजक ने एफआईआर में सामूहिक बलात्कार की घटना का सजीव विवरण दिया है। उसने अदालत के समक्ष अपनी शपथपूर्ण गवाही में भी यही बात दोहराई है। हालांकि, मेडिकल सबूतों के साथ तुलना करने के बाद ट्रायल कोर्ट उसके कथन पर विश्वास नहीं कर पा रहा है। राज्य ने निष्कर्ष को चुनौती नहीं दी है। न्यायालय इस संबंध में ट्रायल कोर्ट द्वारा निकाले गए निष्कर्ष पर सहमत हुआ।
धारा 451 और 354 के तहत अपराधों के लिए अपीलकर्ता के दोष के सवाल पर अदालत ने पीड़ित से प्राप्त सबूतों पर विचार किया। उसकी राय थी कि पीड़िता के साक्ष्य एफआईआर से काफी मेल खाते हैं और आमतौर पर, न्यायालय ने ऐसे वर्जन को स्वीकार कर लिया होगा।
हालांकि, इस मामले में, बचाव साक्ष्य को उचित महत्व दिया गया, जिससे यह पता चला कि उसी दिन पीड़िता के पति और एक आरोपी व्यक्ति के बीच झगड़ा हुआ था। इस समय अभियोक्त्री और चश्मदीद गवाह फूला दोनों ने उस अभियुक्त के साथ मारपीट की थी।
कोर्ट ने कहा,
"इस पृष्ठभूमि में देखने पर बचाव साक्ष्य, जिसे संभाव्यता की प्रधानता के सिद्धांत पर परीक्षण किया जाना है, महत्वपूर्ण हो जाता है और बल्कि, इस सिद्धांत को समर्थन देता है कि पीड़िता के पति और आरोपी रमई के बीच लड़ाई हुई थी जिसमें पीड़िता साथ ही फूला (पी.डब्लू.-5) ने भी भाग लिया था। एक और महत्वपूर्ण पहलू जिसका उल्लेख आवश्यक है वह यह है कि पी.डब्ल्यू.-6 के अनुसार, हंडिया पीने के समारोह के अंत में आरोपी व्यक्तियों द्वारा उस पर किए गए हमले के कारण उसकी पत्नी (अभियोक्ता) को भी चोटें आई थीं। यह वास्तव में अभियोक्ता के शरीर पर पाई गई चोटों की व्याख्या करता है।''
अदालत ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने इस तथ्य पर विचार करते हुए सामूहिक बलात्कार के आरोप को खारिज कर दिया कि आरोपी पीड़िता के भाई और भतीजे थे। ट्रायल कोर्ट खुद को इस बात पर विश्वास करने के लिए राजी नहीं कर सका कि एक बड़ा भाई और एक छोटा भाई मिलकर अपनी चाची के साथ बलात्कार करेंगे।
नतीजतन, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि पीड़िता, उसके पति और चश्मदीद गवाह के साक्ष्य सामूहिक बलात्कार के लिए आरोपी व्यक्तियों को दोषी ठहराने के लिए विश्वास पैदा नहीं करते हैं। उसी कारण के आधार पर, यह माना गया कि बलात्कार का आरोप भी टिक नहीं सकता।
परिणामस्वरूप, ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई दोषसिद्धि और सजा के आदेश को रद्द करते हुए अपील की अनुमति दी गई।
साइटेशनः 2023 लाइव लॉ (ओआरआई) 102