एक बच्चे को दूध और संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता, यह उसका जन्म सिद्ध अधिकार : गुजरात हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

9 Nov 2020 8:21 AM GMT

  • एक बच्चे को दूध और संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता, यह उसका जन्म सिद्ध अधिकार : गुजरात हाईकोर्ट

    एक 8 माह के बच्चे की कस्टडी उसकी मां को देते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार (03 नवंबर) को कहा कि,

    ''मातृत्व की गर्मजोशी और सुरक्षा के आलिंगन में रहना एक बच्चे का जन्म सिद्ध अधिकार है। उसके स्वास्थ्य और महत्वपूर्ण पौष्टिक आहार की नींव मां का दूध है। उसे इन मूल्यवान आवश्यकताओं से वंचित नहीं किया जा सकता है।''

    न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी और न्यायमूर्ति निर्झर एस देसाई की खंडपीठ इस मामले में माँ की तरफ से दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अदालत के समक्ष प्रार्थना की थी कि उसके आठ महीने के बच्चे को पेश करने व उसकी कस्टडी उसे देेने के लिए निर्देश दिया जाए।

    क्या था मामला

    याचिकाकर्ता (कॉर्पस बच्चे की मां) की शादी प्रतिवादी नंबर 3 (पति व बच्चे के पिता) के साथ 10 दिसम्बर 2018 को हुई थी और बच्चे का जन्म 29 फरवरी 2020 को हुआ था।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, ससुराल वालों के साथ-साथ पति-पत्नी के बीच भी एक स्वस्थ और सौहार्दपूर्ण संबंध का अभाव था। उसे कहीं भी जाने की अनुमति नहीं दी जाती थी/ न ही उसके बेटे को कहीं ले जाने देते थे,जबकि वह सिर्फ पांच महीने का था। जब उसके साथ बुरा व्यवहार किया गया तो उसने 6 अगस्त 2020 को महिला पुलिस स्टेशन, लुनावाडा, जिला माहीसागर में शिकायत दर्ज करवाने की कोशिश की। परंतु पुलिस ने उस शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की।

    इसके अलावा, आवेदक/ याचिकाकर्ता /मां को इसलिए हाईकोर्ट के समक्ष आना पड़ा है क्योंकि महामारी के कारण फैमिली कोर्ट इस समय कस्टडी के मामलों पर सुनवाई नहीं कर पा रही हैं। ऐसे में याचिकाकर्ता के लिए अपने बच्चे तक पहुंचना लगभग असंभव था, जो तब केवल 7 महीने का था।

    उसने अदालत के समक्ष आग्रह किया कि बच्चा पिछले तीन महीनों से ज्यादा समय से उसके बिना ही रह रहा है। जिस कारण उसे मां का दूध नहीं मिल रहा है, जो कि इस उम्र में उसे मिलना चाहिए।

    इसलिए, यह आग्रह किया गया था कि अकेले इस आधार पर ही प्रतिवादी को निर्देश दिया जाए कि उसे बच्चे की कस्टडी उसे सौंप दी जाए क्योंकि बच्चे को उसकी मर्जी व इच्छा के खिलाफ उससे दूर किया गया था।

    कोर्ट का आदेश

    प्रतिवादी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत के समक्ष पेश हुए। जहां याचिकाकर्ता के ससुराल वालों ने यानि कॉर्पस के दादा-दादी ने महिला पीआई और प्रतिवादी नंबर 3-याचिकाकर्ता के पति की की उपस्थिति में घर से अव्यांश को पेश किया।

    याचिकाकर्ता मां अपने दादा के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लुनावाड़ा कोर्ट से जुड़ीं। न्यायालय ने देखा कि काॅपर्स-बच्चा (अव्यांश) एक स्वस्थ अवस्था में दादा-दादी के साथ था।

    बच्चे की बेहद कम उम्र को देखते हुए,'' जिसे आमतौर पर उसकी माँ से दूर नहीं रखा जा सकता है'', कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता के अनुरोध को स्वीकार करने के लिए रिट अधिकार क्षेत्र का उपयोग करना आवश्यक है।

    इसलिए, न्यायालय ने कहा कि,

    ''बच्चे के बेहतर और पूर्ण स्वास्थ्य व विकास के लिए, आमतौर पर माँ की कस्टडी जरूरी है। बच्चे के पास अपने कल्याण के अधिकार को स्थापित करने के लिए न तो उसकी आवाज है और न ही न्याय के द्वार खटखटाने की क्षमता है।''

    कोर्ट ने यह भी कहा कि,

    ''यह एक स्वयंसिद्ध सत्य है कि माता-पिता, पिता और माता को नाबालिग के कल्याण की देखभाल करने की आवश्यकता होती है और उन्हें प्राकृतिक संरक्षक के रूप में माना जाता है और फिर भी, ऐसे छोटे बच्चे के कल्याण के लिए वैधानिक व्याख्या के कठोर आग्रह या दबाव का स्वागत नहीं किया जाएगा। यह ट्राइट लॉ है कि पांच साल की उम्र तक बच्चे की कस्टडी मां के पास ही होनी चाहिए।''

    कोर्ट ने re Mc Grath(1893, 1 Ch.143) मामले में दिए फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें लिंडसे, एल.जे ने अवलोकन किया था कि,

    ''अदालत के विचार के लिए प्रमुख मामला बच्चे का कल्याण है। लेकिन बच्चे के कल्याण को केवल पैसे से नहीं मापा जाना चाहिए, न ही केवल शारीरिक आराम से। 'कल्याण' शब्द को अपने व्यापक अर्थों में लिया जाना चाहिए। बच्चे के नैतिक और धार्मिक कल्याण के साथ-साथ उसकी शारीरिक भलाई पर भी विचार किया जाना चाहिए। न ही स्नेह के संबंधों की अवहेलना की जा सकती है।''

    अंत में, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि याचिकाकर्ता - माँ दादा दादी के साथ रह रही है और बच्चे के लिए प्रतिवादी नंबर 3 की चिंता को देखते हुए, न्यायालय ने आदेश दिया है कि,

    ''उसे बच्चे को याचिकाकर्ता मां के पास ले जाने दें और वह अन्य सभी विवादास्पद मुद्दों को;जिससे उनके रिश्ते में खटास आई हैद्ध एक तरफ रखते हुए बच्चे के लिए एक अनुकूल माहौल बनाने में मदद कर सकता है।''

    पति-पत्नी के बीच विवादों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय का मानना था कि इस मामले में कुछ अधिकारियों की उपस्थिति आवश्यक है, जो सुचारू रूप से बच्चे को सौंपने की प्रक्रिया की निगरानी कर सकें। इसलिए, यह निर्देशित किया गया था कि जल्दी से जल्दी बच्चे को जिला न्यायालय, लुनावाडा में प्रधान जिला न्यायाधीश की उपस्थिति में याचिकाकर्ता- माँ को सौंप दिया जाए।

    कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि बच्चे को सौंपने की प्रक्रिया 06 नवम्बर 2020 या उससे पहले पूरी कर ली जाए।

    केस का शीर्षक - दिव्यकुमारी केवलकुमार भट्ट बनाम गुजरात राज्य [R/Special Criminal Application No. 6345 of 2020]

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