पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने झूठी एफआईआर के कारण सेवा से बर्खास्त किए गए पुलिस कांस्टेबल की मृत्यु के सात साल बाद 'मानित बहाली' का आदेश दिया
Avanish Pathak
4 Sept 2023 9:26 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक पुलिस कांस्टेबल को उसकी मृत्यु के सात साल बाद पूरा बकाया वेतन और अन्य परिणामी लाभों के साथ 'मानित बहाली' का आदेश दिया है। कोर्ट ने माना है कि उन्हें 'झूठा फंसाया गया' था।
जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल की पीठ ने कहा,
याचिकाकर्ता के पिता को संदिग्ध और प्रेरित कारणों से झूठा फंसाया गया था। उत्तरदाताओं को याचिकाकर्ता के पिता को पूरे बकाया वेतन के साथ बहाल करने और अन्य परिणामी लाभ देने का निर्देश दिया जाता है। आज से 4 महीने की अवधि के भीतर ऐसी बहाली से परिवार को दी जाए।”
कांस्टेबल को आईपीसी की धारा 376-ए, जी, 342, 323, 506, 120-बी के तहत दर्ज एक एफआईआर के कारण 2005 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उन पर आरोप था कि उन्हें दो तस्करों को अस्पताल ले जाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। हालांकि, उन्होंने उन दोनों को सामूहिक बलात्कार करने के लिए अस्पताल से बाहर जाने में जानबूझकर मदद की।
2016 में अपनी बर्खास्तगी से जूझते हुए कांस्टेबल की मृत्यु हो गई। कोर्ट उनके बेटे की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
2009 में सत्र न्यायालय ने उन्हें दोषी ठहराया और 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने उनकी अपील स्वीकार कर ली और बरी कर दिया। उनके निधन के बाद सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उनके बरी होने के खिलाफ राज्य की अपील "अस्थायी रूप से" खारिज कर दी गई थी।
इसके बाद, मृतक कांस्टेबल की विधवा ने उसकी बहाली के लिए राज्य अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब उनके बेटे ने बहाली की याचिका खारिज होने के खिलाफ अर्जी दाखिल की है।
याचिकाकर्ता के वकील धीरज चावला ने कहा कि दिवंगत कांस्टेबल को झूठा फंसाया गया था और हाईकोर्ट ने उन्हें बरी करते हुए कहा कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने उन्हें झूठा फंसाया था, जो मोहाली में एक संपत्ति हड़पना चाहता था।
कांस्टेबल को बरी करने वाले हाईकोर्ट के फैसले पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को झूठा फंसाया गया था। कोर्ट ने कहा, "यह कहने की जरूरत नहीं है कि याचिकाकर्ता के पिता को बिना किसी गलती के सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था और उस समय जो भी कारण बताए गए थे, वे उचित नहीं थे और झूठे पाए गए थे।
नतीजतन, याचिका को स्वीकार कर लिया गया और उसकी पत्नी की बहाली की याचिका को खारिज करने के आदेश को रद्द कर दिया गया।
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