2000 महिला वकीलों ने केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखा, 'आर्थिक रूप से परेशान अधिवक्ताओं' के लिए मांगी सहायता, पांच लाख रुपये तक के लोन की योजना का अनुरोध

LiveLaw News Network

25 July 2020 4:21 PM GMT

  • 2000 महिला वकीलों ने केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखा, आर्थिक रूप से परेशान अधिवक्ताओं के लिए मांगी सहायता, पांच लाख रुपये तक के लोन की योजना का अनुरोध

    अदालतों में प्रतिबंधित कामकाज के कारण वकील समुदाय इस समय वित्तीय संकट से गुजर रहा है। इसी के चलते देशभर की 2000 से अधिक महिला वकीलों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा है, जिसमें ''वित्तीय रूप से परेशान अधिवक्ताओं'' के लिए सहायता की मांग की है।

    महिला वकीलों ने गृह मंत्री से आग्रह किया है कि वह आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करें और एक यूनिफाॅर्म पाॅलिसी तैयार करें ताकि प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं को पांच लाख रुपये तक का लोन दिया जा सके, जो एक वर्ष की स्थगन अवधि के साथ 36 समान मासिक किस्तों में देय हो।

    पत्र में लिखा गया है कि

    ''अदालतों में निरंतर लॉकडाउन के कारण अधिवक्ताओं के सम्मान के साथ जीने के मौलिक अधिकार, काम के अधिकार और आजीविका के अधिकार उल्लंघन हो रहा है। वास्तव में चैंकाने वाली बात यह है कि अभी तक केंद्र सरकार ने अधिवक्ताओं के कष्टों को कम करने के लिए कोई प्रावधान/ उपाय करने के बारे में सोचा भी नहीं है।''

    इस पत्र में उन खबरों को भी इंगित किया गया है कि जिनमें बताया गया है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल के इस चरण में वित्तीय संकट के कारण कई युवा अधिवक्ताओं ने आत्महत्या कर ली है।

    पत्र में कहा गया है कि विभिन्न संगठनों, अधिवक्ताओं, बार एसोसिएशन आदि ने कई बार संबंधित मंत्रालय को प्रतिनिधित्व सौंपे हैं। परंतु अभी तक ''इस कठिन समय'' में कानूनी बिरादरी की मदद करने के लिए भारत संघ ने कोई वित्तीय सहायता पैकेज जारी नहीं किया है।

    वकीलों ने कहा है कि-

    '' प्रोफेशनल होने के नाते अधिकांश अधिवक्ता औसत जीवन स्तर जीते हैं और चूंकि उनमें से नब्बे प्रतिशत गरीबी रेखा से ऊपर हैं, इसलिए 5,000 रुपये या 10,000 रुपये की सहायता बार काउंसिल को आर्थिक रूप से कमजोर कर रही है और वकीलों की वित्तीय कठिनाइयों को दूर करने में भी विफल हो रही है।''

    उन्होंने यह भी कहा कि-

    ''वह कल्याण निधि ,जो आकस्मिकताओं व्ययों को पूरा करने के लिए है, अब अधिवक्ताओं की दैनिक आय की कमी को पूरा करने में असफल हो रही है। इतना ही नहीं यदि इस फंड के एक-एक पैसे का उपयोग कर लिया जाए तो भी यह एक औसत जीवन जीने वाले अधिवक्ता की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी पर्याप्त नहीं होगा। वहीं अधिवक्ताओं के परिवार को चलाने के लिए कल्याणकारी धन का उपयोग करने से हमें एक समुदाय के रूप में कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि इससे वह वित्तीय सुरक्षा खत्म हो रही है जो अधिवक्ताओं को किसी स्वास्थ्य आपातकाल के मामले में मिलनी चाहिए।''

    वकीलों के समूह ने आग्रह किया है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया या संबंधित स्टेट बार काउंसिल से कॉर्पोरेट गारंटी लेकर अधिवक्ताओं की व्यक्तिगत गारंटी के आधार पर यह लोन या ऋण दिया जा सकता है। इसके अलावा सरकार नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी को निर्देश दे सकती है कि वह कौशल विकास,शिक्षा ऋण,फैक्टरिंग,माइक्रो यूनिट्स और स्टैंडअप इंडिया जैसी अपनी मौजूदा योजनाओं की श्रेणी में से किसी एक में अधिवक्ताओं को भी जोड़ लें ताकि उपयुक्त चैनलों के माध्यम से इस योजना के तहत इस तरह के ऋण उनको भी प्रदान किए जा सकें।

    पत्र में यह भी सुझाव दिया गया है कि इसके अलावा केंद्र सरकार इस ब्व्टप्क् -19 संकट के बीच आयुष्मान भारत योजना के तहत सभी अधिवक्ताओं को भी स्वास्थ्य बीमा कवरेज दे सकती है।

    पत्र की काॅपी डाउनलोड करें



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