16 साल के बच्चे की सहमति महत्वहीन: दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 साल के विवाहित को जमानत देने से इनकार किया

Avanish Pathak

1 Dec 2022 2:30 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह दोहराते हुए कि नाबालिग की सहमति कानून की नजर में महत्वहीन है, हाल ही में पॉक्सो मामले में एक 23 वर्षीय व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर 16 वर्षीय नाबालिग से कथित रूप से बलात्कार करने का आरोप है, यह देखते हुए कि उसका उम्र और यह तथ्य कि वह पहले से ही शादीशुदा था, उसे जमानत देने से रोक देते हैं।

    जस्टिस जसमीत सिंह ने इस दलील का भी संज्ञान लिया कि आरोपी ने शिकायतकर्ता को बालिग दिखाने के लिए आधार कार्ड में उसकी जन्मतिथि बदलवा दी थी।

    "शिकायतकर्ता के आधार कार्ड में जन्म तिथि बदलवाने का आवेदक का आचरण एक गंभीर अपराध है। ऐसा प्रतीत होता है कि आवेदक आधार कार्ड पर जन्म तिथि बदलवाकर लाभ लेना चाहता था...."

    अदालत ने 2019 में आईपीसी की धारा 363 के तहत दर्ज मामले में आरोपी की जमानत अर्जी खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। लड़की के पिता ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी। बाद में नाबालिग का पता लगाया गया और उसे उत्तर प्रदेश के संभल जिले से छुड़ाया गया। वह आवेदक के साथ मिली थी।

    सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में उसने कहा कि आवेदक उसका प्रेमी है और वह उसके साथ करीब डेढ़ महीने तक रही. उसने आगे कहा कि उसने उसकी सहमति से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। उसने यह भी कहा कि वह उसके साथ रहना चाहती है। उसके बयान के आधार पर एफआईआर में आईपीसी की धारा 366/376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 जोड़ी गई।

    आरोपी की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि बयान के मद्देनजर आरोपी को जमानत दी जानी चाहिए। अदालत को बताया गया कि वह 2019 से हिरासत में है और चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है।

    पीड़िता की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि उसे सूचित किया गया है कि यह आवेदक था जो उसे एसडीएम के पास ले गया और उसकी जन्मतिथि को 2002 से 2000 में बदल दिया "केवल यह दिखाने के उद्देश्य से कि जब शारीरिक संबंध बने थे तब वह नाबालिग थी"।

    कोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा-

    "16 साल की उम्र में नाबालिग की सहमति, विशेष रूप से, जब आवेदक 23 साल का था और पहले से ही शादीशुदा था तो आवेदक को जमानत देने का अधिकार नहीं बनता है। नाबालिग की सहमति कानून की नजर में कोई सहमति नहीं है।"

    केस टाइटल: जावेद बनाम स्टेट एनसीटी ऑफ दिल्ली

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