'आपको जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन करना होगा; काउंटर दाखिल करने का कोई सवाल नहीं' : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा

LiveLaw News Network

6 Sep 2021 11:46 AM GMT

  • आपको जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन करना होगा; काउंटर दाखिल करने का कोई सवाल नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के ट्रिब्यूनलों में रिक्त पदों पर नियुक्तियां करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सोमवार को केंद्र सरकार से जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन करने को कहा, जो अधिनियम के लागू होने के 4 साल बाद भी गठित नहीं हुआ है।

    जब भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजीएसटी ट्रिब्यूनल की स्थापना की मांग वाली याचिका में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा, तो भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना ने मौखिक रूप से उनसे कहा:

    "सीजीएसटी ट्रिब्यूनल का गठन नहीं किया गया है। वह भी एक मुद्दा है। काउंटर दाखिल करने का कोई सवाल ही नहीं है। आपको ट्रिब्यूनल का गठन करना है बस इतना ही"।

    सीजेआई रमाना, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति नागेश्वर राव की एक विशेष पीठ वकील अमित साहनी की एक रिट याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें न्याय के हित में जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण के गठन के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी ।

    पीठ अगले 13 सितंबर को मामले की सुनवाई करेगी, साथ ही देश भर के ट्रिब्यूनल में नियुक्तियों और ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 की वैधता को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं की भी सुनवाई करेगी।

    सुप्रीम कोर्ट ने पहले अधिनियम के लागू होने के 4 साल बाद भी सीजीएसटी अधिनियम के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन नहीं करने के लिए केंद्र की खिंचाई की थी। बेंच ने यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से पेश एसजी मेहता को जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण के गठन के मुद्दे पर अदालत में वापस आने के लिए कहा था।

    CJI ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को बताया था, "सीजीएसटी अधिनियम लगभग 4 साल पहले लागू हुआ था, आप किसी भी अपीलीय न्यायाधिकरण को बनाने में असमर्थ रहे हैं।"

    शीर्ष न्यायालय ने कहा कि कि अपीलीय या पुनरीक्षण प्राधिकारी के आदेश से पीड़ित व्यक्तियों के लिए अधिनियम के तहत एक अपीलीय न्यायाधिकरण है। हालांकि अभी तक इसका गठन नहीं किया गया है।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 109 के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण की राष्ट्रीय और अन्य पीठों का गठन समय की परम आवश्यकता बन गया है और प्रतिवादी अनिश्चित काल के लिए इसके गठन को खींच नहीं सकते हैं।

    एडवोकेट अमित साहनी द्वारा एडवोकेट प्रीति सिंह के माध्यम से दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि अपीलीय/ पुनरीक्षण प्राधिकारी द्वारा पारित आदेशों से व्यथित नागरिक, रिट याचिका के माध्यम से संबंधित उच्च न्यायालयों में 226 के तहत जाने के लिए विवश हैं। यह एक अपीलीय न्यायाधिकरण की अनुपस्थिति के कारण है और वही उच्च न्यायालयों पर भी अधिक बोझ डाल रहा है।

    इसके अलावा, यह तर्क दिया गया है कि ट्रिब्यूनल (90 दिन) के समक्ष अपील दायर करने की सीमा की अवधि को वैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन में प्रतिवादी द्वारा प्रशासनिक आदेश के माध्यम से नहीं बढ़ाया जा सकता है, और विशेष रूप से, इस तरह के विस्तार को अनिश्चित अवधि के लिए नहीं दिया जा सकता है।

    याचिका में कहा गया है कि कई मामलों में, शीर्ष अदालत ने माना है कि न्याय में देरी न्याय से वंचित करने जैसी है। हालांकि, अपीलीय न्यायाधिकरण की अनुपस्थिति में, वादियों को उचित अवधि के भीतर न्याय नहीं मिल पाता है, और इससे देश भर में वादियों को अत्यधिक कठिनाई हो रही है।

    केस शीर्षक: अमित साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया


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