महिला को उत्पीड़न के खिलाफ अवाज उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकताः प्र‌िया रमानी का बरी किया जाना 'मी टू' आंदोलन की जीत

LiveLaw News Network

18 Feb 2021 5:40 AM GMT

  • महिला को उत्पीड़न के खिलाफ अवाज उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकताः प्र‌िया रमानी का बरी किया जाना मी टू आंदोलन की जीत

    पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर के खिलाफ मानहानि के मुकदमे में पत्रकार प्रिया रमानी का बरी किया जाना देश में यौन उत्पीड़न के मामले में दिया गया महत्वपूर्ण फैसला हो सकता है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट के एसीएमएम रवींद्र पांडे ने बुधवार को यह फैसला दिया था।

    यौन उत्पीड़न के मामले में रमानी का बोलना, पेशकश के बावजूद 'समझौते' से इनकार करना और उनका बचाव - इन सभी बातों ने उस मुद्दे में काफी मदद की, जिसके लिए उन्होंने अपनी आवाज उठाई थी, यानी-सार्वजनिक कल्याण और सार्वजनिक हित। आज भी, केवल आवाज उठाने के लिए लड़ी गई लंबी लड़ाई के अंत में, रमानी अपने फैसले पर ‌अडिग हैं। कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने कहा, "मुझे आशा है कि फैसला अधिक महिलाओं को आवाज उठाने के लिए प्रेर‌ित करेगा, और मुझे यह भी उम्मीद है कि यह शक्तिशाली पुरुषों को, उन महिलाओं के खिलाफ, जिन्होंने अपनी सच्चाई को साझा किया है, झूठे मुकदमे दर्ज करने से रोकेगा।"

    एमजे अकबर के खिलाफ दिए गए फैसले के बाद पत्रकार रमानी और उनकी वकील, सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन, दोनों की तारीफ की जा रही है। इस फैसले ने यौन उत्पीड़न का सामना कर चुकीं महिलाओं को पेश आने वाली कई बाधाओं को दूर किया है।

    मुकदमे की प्रारंभिक अनिश्चितता रही हो, कठिनाइयां रही हों, या लड़ाई को जारी रखने के लिए आवश्यक साहस रहा हो, फैसले ने सभी प्रश्नों को संबोधित किया है, फैसले में कहा गया है, "यह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि अधिकांश मामलों में, यौन उत्पीड़न और यौन शोषण बंद दरवाजों में या छुपकर किया जाता है, "और" कभी-कभी पीड़ित खुद नहीं समझ पाता है कि उनके साथ क्या हो रहा है या उनके साथ जो हो रहा है वह गलत है। "

    कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि इस बात की छूट नहीं दी जा सकती है कि कभी-कभी समाज के सबसे सम्मानित व्यक्ति भी यौन शोषण या उत्पीड़न में शामिल हो सकते हैं और पीड़ित व्यक्ति के लिए ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ बोलना हमेशा आसान नहीं हो सकता है, हालांकि, इस तथ्य को उसके खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा, "महिला को मानहानि की आपराधिक शिकायत के आड़ में यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है क्योंकि प्रतिष्ठा के अधिकार को भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत महिला के जीवन और सम्मान के अधिकार, और अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीकृत कानून के समक्ष समानता समान संरक्षण के अधिकार की की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता है। महिला को अपनी पसंद के किसी भी मंच पर और दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है।"

    विशाखा दिशानिर्देशों और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 को लागू करने से पहले कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत के निवारण के लिए व्यवस्थित तंत्र की कमी की ओर इशारा करते हुए, कोर्ट ने कहा कि जैसा कि रमानी के मामले में हुआ है, कभी-कभी यौन उत्पीड़न के पीड़‌ित भी व्यवस्था में कमी के कारण, उचित कानूनी मंच से संपर्क करने में सक्षम नहीं होते हैं...।

    कोर्ट ने फैसले में आगे बढ़ते हुए इस तथ्य को मान्यता दी की कि कभी-कभी, और आज भी, यौन उत्पीड़न से जुड़ा सामाजिक कलंक एक महिला कोप प्राधिकरण को शिकायत करने से रोक सकता है, या इससे भी बदतर हो यह सकता है कि पीड़‌ित को कई वर्षों तक समझ नहीं आ सकत है कि वास्तव में उसके साथ क्या हुआ ‌था।

    कोर्ट ने कहा कि कई बार पीड़ित खुद को गलत मान सकती है और शायद शर्म के कारण वर्षों तक बोले ही नहीं। प‌ीड़ित जब बोलने का फैसला करती है, तो उसके इरादे की आंकलन करने के लिए इन कारणों को उसके खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    "यौन शोषण की शिकार महिलाएं कई सालों तक दुर्व्यवहार के बारे में एक शब्द भी नहीं बोलती हैं क्योंकि कभी-कभी उन्हें खुद भी नहीं पता होता है कि वह दुर्व्यवहार की शिकार हुई हैं। पीड़िता यह मान सकती है कि उसने गलती की है और वर्षों तक या दशकों तक उस शर्म के साथ जीती रह सकती है। दुर्व्यवहार की शिकार अधिकांश महिलाएं इसके बारे में या इसके खिलाफ नहीं बोलती हैं, जिसका कारण "शर्म" या यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार से जुड़ा सामाजिक कलंक है। महिला का यौन शोषण उसकी गरिमा और उसके आत्मविश्वास को छीन लेता है..."

    कोर्ट ने आगे कहा कि पीड़ित को अपनी पसंद के किसी भी मंच पर और दशकों के बाद भी बोलने का अधिकार है और मानहानि की आपराधिक शिकायत के बहाने यौन शोषण के खिलाफ उसे आवाज उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है।

    जब रमानी जैसी एक शिक्षित, स्थापित महिला को अपनी बात सोशल मीडिया पर कहने के कारण अदालत में घसीटा जा सकती है तो यह निष्कर्ष निकालना अतिश्योक्ति नहीं है कि फैसले के जर‌िए मान्यता प्राप्त अधिकार, सीधे या अन्यथा, यौन उत्पीड़न से बचे लोगों के अधिकारों की रक्षा करने में एक लंबा रास्ता तय करेंगे।।

    फैसला पढ़ने/ डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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