'बंगाल के जज को क्यों टाला जा रहा है?': जस्टिस दीपांकर दत्ता ने पश्चिम बंगाल मदरसा मामले को दूसरी बेंच के समक्ष सूचीबद्ध करने पर उठाए सवाल

Shahadat

18 Aug 2025 6:32 PM IST

  • बंगाल के जज को क्यों टाला जा रहा है?: जस्टिस दीपांकर दत्ता ने पश्चिम बंगाल मदरसा मामले को दूसरी बेंच के समक्ष सूचीबद्ध करने पर उठाए सवाल

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने सवाल उठाया कि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने अचानक एक मामले को दूसरी समन्वय बेंच के समक्ष क्यों रखा, जबकि वह उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने इसी तरह के तीन संबंधित मामलों में आदेश पारित किए।

    जस्टिस दत्ता ने टिप्पणी की,

    "हम रजिस्ट्री द्वारा अपनाई गई व्यवस्था पर गंभीरता से सवाल उठा रहे हैं। ये मामले दूसरी बेंच के समक्ष कैसे जा सकते हैं? अगर कोरम नियम का पालन करना है तो यह मेरे समक्ष आना चाहिए। बंगाल के एक जज को क्यों टाला जा रहा है? हम जानते हैं कि वहां क्या हुआ है।"

    यह मामला पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 से संबंधित है, जिसके तहत मदरसों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आयोग का गठन किया गया। 2015 में कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 2008 के अधिनियम की धारा 8, 10, 11 और 12 को इस आधार पर अधिकारहीन घोषित कर दिया कि एक सहायता प्राप्त मदरसे, जिसे अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त थी। इसमें शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया को आयोग अधिनियम की धारा 4 के तहत नियुक्त आयोग को सौंप दिया गया।

    2020 में सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम, 2008 की संवैधानिकता को बरकरार रखा और कहा कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए नियुक्ति का कोई पूर्ण और बिना शर्त अधिकार नहीं है। इसने कहा कि आयोग द्वारा किए गए नामांकन वैध हैं। हाईकोर्ट द्वारा मामले के निपटारे के बाद की गई नियुक्तियां सभी उद्देश्यों के लिए वैध मानी जाती हैं। इस आदेश के संबंध में अवमानना याचिका (स्नेहासिस गिरि बनाम सुभाषिस मित्रा) दायर की गई, जिसकी सुनवाई जस्टिस रवींद्र भट (रिटायर) और जस्टिस दत्ता की खंडपीठ ने की थी।

    अवमानना याचिका में कहा गया कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति हाईकोर्ट द्वारा अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद, लेकिन 2020 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले हुई थी, उनके वेतन की मांग उनके शिक्षण/गैर-शिक्षण कर्मचारी होने या कानून द्वारा अपेक्षित योग्यता रखने के दावों की सत्यता की पुष्टि किए बिना की जा रही है।

    2 फरवरी, 2023 के आदेश द्वारा जस्टिस भट और जस्टिस दत्ता की खंडपीठ ने माना कि न्यायालय ने नियुक्तियों को इस सीमा तक वैध घोषित किया कि वे संबंधित नियमों और बाध्यकारी मानदंडों के अनुरूप हैं। इसने कलकत्ता हाईकोर्ट के रिटायर जज जस्टिस देबी प्रसाद डे की अध्यक्षता में समिति गठित की, जो सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करेगी और याचिकाकर्ताओं के दावों का सत्यापन करेगी।

    हालांकि, अब इसी तरह की याचिकाओं पर जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ सुनवाई कर रही है, जिसने 15 जुलाई को स्वीकार किया कि इस न्यायालय द्वारा समिति गठित की गई और जिसने ऐसी नियुक्तियों को अमान्य माना था। नोटिस जारी करते हुए उक्त खंडपीठ ने अपने पूर्व अंतरिम आदेश को जारी रखा, जिसमें राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि शिक्षक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे याचिकाकर्ताओं को उनका वेतन दिया जाए।

    जस्टिस दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।

    जस्टिस दत्ता ने वकील श्रीजा चौधरी सरकार से पूछा:

    "आप महोदया, एक प्रश्न का उत्तर दीजिए। यह आपका कथन है। 2016 के डीबी निर्णय पर रोक लगा दी गई। यदि डीबी निर्णय पर रोक लगा दी जाती है तो या तो आप नियुक्ति नहीं करेंगी या नियुक्ति करने के लिए, आप डीबी आदेश से पहले प्रचलित नीति के अनुसार नियुक्ति करेंगी। इसलिए यह सेवा आयोग अधिनियम के अनुसार ही होना चाहिए।"

    सरकार ने बताया कि एक समय ऐसा था, जब 2015 के नियम नहीं थे और 2016 के नियम अभी तक नहीं बने थे।

    जस्टिस दत्ता ने उत्तर दिया कि अधिनियम, 2008 के तहत नियम थे। हालांकि, अधिनियम रद्द कर दिया गया, सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम की वैधता बरकरार रखी, जिसका अर्थ था कि नियमों की वैधता भी स्वतः ही बरकरार रहती।

    उन्होंने कहा,

    "शून्यता का सवाल ही कहां है?"

    सरकार ने जवाब दिया कि 2010 के नियम भी हैं, जिन पर विचार करने की ज़रूरत है। हालांकि, जस्टिस दत्ता ने जवाब दिया कि हाईकोर्ट द्वारा पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 रद्द करने के बाद 2010 के नियमों का कोई अस्तित्व नहीं रह गया।

    जस्टिस दत्ता ने टिप्पणी की,

    "अब, डीबी आदेश के अनुसार कुछ नियम बनाने के लिए एक छोटी-सी अवधि उपलब्ध है, लेकिन 2016 में इस पर रोक लगा दी गई। अगर डीबी आदेश 2016 में ही स्थगित हो जाता है तो 2018 में किसी को सिर्फ़ इसलिए कैसे भर्ती किया जा सकता है, क्योंकि वह स्कूल के सचिव को जानता है, बिना किसी प्रतिस्पर्धा के। महोदया, यही तो दिख रहा है... आपका बयान समिति द्वारा दर्ज किया गया। जस्टिस रवींद्र भट और मैंने ही हाईकोर्ट के रिटायर जज की अध्यक्षता में समिति गठित की थी। फिर इन निष्कर्षों के बाद आज यह मामला हमारे सामने रखा गया, हमें नहीं पता। आप बदकिस्मत हैं। अगर यह किसी और पीठ के सामने होता तो आपको नोटिस मिल जाता। हम नोटिस जारी नहीं करने वाले... इसी तरह से मामले कोरम नियमों को दरकिनार करते हुए दूसरी अदालतों में सूचीबद्ध हो रहे हैं। हम यह नहीं कह रहे कि आपकी गलती है, गलती हमारी रजिस्ट्री की है। हमें अपना घर व्यवस्थित करना होगा। कभी-कभी यह रोस्टर नियमों के अनुसार होता है और कभी-कभी यह कोरम नियमों के अनुसार होता है। एक समान नीति का पालन किया जाना चाहिए, या तो आप रोस्टर का पालन करें या कोरम का।"

    खंडपीठ ने आदेश में कहा:

    "हम इस बात से अचंभित हैं कि यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका में कम-से-कम तीन आदेश शामिल हैं, जिनमें से एक (जस्टिस दीपांकर दत्ता) सदस्य रहे हैं, फिर भी शिक्षकों/कर्मचारियों द्वारा इस याचिका में दावा की गई राहत के समान राहत का दावा करने वाली रिट याचिकाएं अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की गईं, जहां हमने देखा कि नोटिस जारी किया जा चुका है। एक अंतरिम राहत प्रदान की गई कि यदि मामले की सुनवाई होती है तो रिट याचिकाकर्ताओं की सेवाओं में कोई बाधा नहीं आएगी।

    जहां तक वर्तमान याचिका का संबंध है, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई खंडपीठ के आदेश को देखते हुए... इस न्यायालय ने अपने निर्णय और आदेश द्वारा मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 की वैधता बरकरार रखी। 14 मार्च 2016 के आदेश द्वारा खंडपीठ के आदेश पर रोक लगा दिए जाने के पूर्व तथ्य में यह तर्क और कारण की अवहेलना करता है कि इन दोनों याचिकाकर्ताओं को संबंधित मदरसे में 2018 की अलग-अलग तारीखों पर बिना किसी प्रतिस्पर्धा का सामना किए कैसे नियुक्त किया जा सकता था। रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह इस आदेश को समन्वय खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत करे। जहां हमें आगे बताया गया कि रिट याचिका सिविल 566/2024 और अन्य बैच के मामले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने वाले हैं।"

    Case Details: MASTARA KHATUN Vs DIRECTORATE OF MADRASAH EDUCATION|D No. 36427/2024

    Next Story