जमानत याचिकाओं पर 2 जजों की बेंच क्यों सुनवाई करती है? सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, रिपोर्ट मांगी
Shahadat
30 Jan 2025 4:02 AM

सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा एकल जजों के बजाय डिवीजन बेंचों के समक्ष नियमित और अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करने की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया, जैसा कि अन्य हाईकोर्ट में होता है।
कोर्ट ने कहा,
“जब जमानत याचिकाओं की फाइलिंग और पेंडेंसी बहुत अधिक है तो हमें आश्चर्य होता है कि इस हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा नियमित जमानत याचिकाओं और अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई क्यों की जा रही है, खासकर तब जब अन्य सभी हाईकोर्ट के मामले में जमानत मामलों की सुनवाई सिंगल जजों द्वारा की जा रही है। सवाल यह है कि क्या हाईकोर्ट के दो माननीय जजों को नियमित जमानत याचिकाओं पर विचार करने के लिए समय देना चाहिए।”
जस्टिस अभय ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) से इस कार्यप्रणाली की व्याख्या करते हुए रिपोर्ट मांगी और 2024 में दायर जमानत याचिकाओं और उनके पेंडेंसी पर डेटा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने निर्देश दिया,
“इसलिए हम कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश देते हैं कि वे रिपोर्ट रिकॉर्ड में रखें कि नियमित जमानत आवेदन/अग्रिम जमानत आवेदनों पर खंडपीठ द्वारा सुनवाई क्यों की जा रही है। उन्हें 2024 में दायर जमानत आवेदनों और अग्रिम जमानत आवेदनों का डेटा और आज तक ऐसे आवेदनों की लंबितता प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है।”
न्यायालय ने एक हत्या के मामले में जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में नोटिस जारी करते हुए ये निर्देश दिए।
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष 1039 जमानत याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें 2019 की 1 जमानत याचिका, 2022 की 102, 2023 की 127, 2024 की 711 और इस वर्ष की 98 याचिकाएं हैं।
हाईकोर्ट के समक्ष मामला याचिकाकर्ता सफ़ियार हुसैन से जुड़ा था, जो एक वर्ष और ग्यारह महीने से अधिक समय से हिरासत में था। हाईकोर्ट ने पाया कि आरोप-पत्र में शामिल 43 गवाहों में से केवल आठ की ही जांच की गई और मुकदमे के जल्द समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है।
राज्य ने याचिकाकर्ता से एक बंदूक और छह राउंड गोला-बारूद बरामद होने का हवाला देते हुए जमानत आवेदन का विरोध किया। साथ ही मृतक के शरीर में मिली गोली से गोला-बारूद को जोड़ने वाले फोरेंसिक साक्ष्य का भी हवाला दिया। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की जमानत पहले दो बार खारिज की जा चुकी है। हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि बिना मुकदमे के लंबे समय तक कैद में रखने से अभियुक्त के त्वरित सुनवाई और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है।
मुकदमे में देरी के आधार पर जमानत देते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को दो जमानतदारों के साथ 10,000 रुपये का बांड भरने का निर्देश दिया। इस प्रकार हाईकोर्ट ने जमानत आवेदन को स्वीकार कर लिया।
केस टाइटल- महताब अली बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।