'क्या जुआ अधिनियम के तहत ताश खेलना एक अपराध है'? सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा

LiveLaw News Network

18 Nov 2021 10:36 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में यह सवाल उठाया गया कि क्या जुआ अधिनियम, 1867 के तहत ताश खेलने के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को ऐसा अपराध कहा जा सकता है जो 'नैतिक अधमता' के समान है।

    जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की डिवीजन बेंच ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 2019 के फैसले के खिलाफ सतेंद्र सिंह तोमर द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया।

    आक्षेपित निर्णय के माध्यम से ग्वालियर हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एक एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया था। इसमें स्क्रीनिंग कमेटी को पुलिस में कांस्टेबल के पद के लिए याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को रद्द करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया था।

    कहा जाता है कि याचिकाकर्ता ने एक कॉलोनी में ताश खेलने के लिए 1867 अधिनियम की धारा 13 के तहत दोषी ठहराए जाने के कारण नैतिक अधमता का कार्य किया था। स्क्रीनिंग कमेटी ने कहा कि वह अनुशासित बल में नौकरी के लिए फिट नहीं है।

    यह कहते हुए कि इस तरह के पदधारी की भर्ती न करना नियोक्ता के विवेक के भीतर है, एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच के समक्ष एक अपील दायर की गई, जिसे 23 जनवरी, 2019 को अनुमति दी गई थी। उक्त आदेश सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लगाया जाता है।

    डिवीजन बेंच ने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य बनाम अभिजीत सिंह पवार में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के मद्देनजर, एकल न्यायाधीश के फैसले को बरकरार नहीं रखा जा सकता है।

    अभिजीत सिंह पवार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक उम्मीदवार द्वारा उसके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के बारे में खुलासा किए जाने के बाद भी नियोक्ता के पास पूर्ववृत्त और उम्मीदवार की उपयुक्तता पर विचार करने का अधिकार होगा।

    तोमर की विशेष अनुमति याचिका में उनके वकील ने तर्क दिया कि अधिनियम, 1867 की अनुसूची में अपराधों की सूची में धारा 13 के तहत अपराध का उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन इसे केवल अपराधों की उदाहरणात्मक सूची के रूप में देखा गया है और यह संपूर्ण नहीं है।

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सिद्धार्थ शर्मा, प्रशांत शर्मा, शशांक सिंह और एओआर मधुरम अपराजिता ने किया।

    केस शीर्षक: सतेंद्र सिंह तोमर बनाम एमपी और अन्य राज्य।

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