पश्चिम बंगाल में 99% मतदाताओं को मिले SIR फॉर्म; बड़े पैमाने पर मतदाता वंचित करने के दावे बेबुनियाद: चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
Praveen Mishra
1 Dec 2025 5:13 PM IST

भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि पश्चिम बंगाल में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया के कारण बड़े पैमाने पर मतदाता वंचित होने के आरोप “काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश” किए गए हैं और इन्हें “राजनीतिक हितों” के लिए हवा दी जा रही है।
सांसद डोला सेन की उस जनहित याचिका के जवाब में दायर शपथपत्र में—जिसमें 24 जून और 27 अक्टूबर 2025 को जारी SIR आदेशों की वैधता को चुनौती दी गई है—आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया संवैधानिक रूप से अनिवार्य, स्थापित और नियमित रूप से की जाने वाली प्रक्रिया है। ECI ने कहा कि मतदाता सूची की शुद्धता और अखंडता सुनिश्चित करना संविधान की मांग है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने T.N. Seshan, CEC v. Union of India (1995) के फैसले में भी स्वीकारा है।
आयोग ने जोर देकर कहा कि SIR प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 324 तथा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 15, 21 और 23 के तहत होती है, जो आवश्यक होने पर मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण करने का अधिकार देती हैं। आयोग ने कहा कि 1950 के दशक से ऐसे विशेष पुनरीक्षण किए जाते रहे हैं—जैसे 1962-66, 1983-87, 1992, 1993, 2002 और 2004 में देशभर में इसी तरह के संशोधन हुए हैं।
तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और पिछले दो दशकों में बढ़ी जन-गतिशीलता का हवाला देते हुए आयोग ने बताया कि बड़े पैमाने पर नाम जुड़ना और हटना अब “नियमित प्रवृत्ति” बन गई है, जिससे डुप्लीकेट और गलत प्रविष्टियों का जोखिम बढ़ता है। इन जोखिमों के साथ-साथ राजनीतिक दलों की लगातार शिकायतों को देखते हुए देशभर में SIR लागू करने का निर्णय लिया गया।
ECI ने SIR प्रक्रिया में खामियों के आरोप खारिज किए
डोला सेन की याचिका में दावा किया गया है कि SIR आदेश मनमाने और असंवैधानिक हैं तथा इससे वास्तविक मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हट सकते हैं। आयोग ने इन सभी आरोपों को पूरी तरह अस्वीकार करते हुए कहा कि याचिका “तथ्यात्मक रूप से गलत” है।
आयोग ने स्पष्ट किया कि किसी भी मतदाता का नाम कानून में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना नहीं हटाया जा सकता और SIR दिशा-निर्देशों में समावेशिता के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं।
99.77% मतदाताओं को फॉर्म वितरित
शपथपत्र में बताया गया कि 99.77% मौजूदा मतदाताओं को पहले से भरे हुए एन्यूमरेशन फॉर्म दिए जा चुके हैं और 70.14% फॉर्म वापस प्राप्त हो चुके हैं।
ECI का कहना है कि ये आँकड़े दिखाते हैं कि याचिकाकर्ता के आरोप—गलत कार्यान्वयन, कम शामिल किए जाने और बड़े पैमाने पर मतदाता वंचित होने—“काफी बढ़ा-चढ़ाकर” किए गए हैं।
आयोग ने कहा कि पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर नाम हटाने के आरोप तथ्यों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि उन्हें मीडिया के ज़रिए “राजनीतिक लाभ” के लिए फैलाया जा रहा है।
आयोग ने बताया कि बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर फॉर्म वितरित करते हैं और फॉर्म लेते हैं। यदि घर बंद मिले तो तीन बार प्रयास करना और नोटिस छोड़ना अनिवार्य है। साथ ही BLO को मतदाताओं से कोई दस्तावेज़ लेने की अनुमति नहीं है—यह बदलाव 27 अक्टूबर 2025 के SIR आदेश में जोड़ा गया है।
ECI ने यह भी कहा कि यदि कोई मतदाता अस्थायी रूप से घर से बाहर है तो परिवार का सदस्य फॉर्म जमा कर सकता है, या मतदाता स्वयं ऑनलाइन पोर्टल अथवा मोबाइल ऐप से फॉर्म जमा कर सकता है।
अधिकारियों को यह स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगों और अन्य कमजोर समूहों को किसी प्रकार की परेशानी न हो और उन्हें शामिल करने में पूरी सहायता दी जाए।
पश्चिम बंगाल SIR को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 9 दिसंबर को चीफ जस्टिस एस.एम. सुर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ करेगी।

