OTT विनियमन के लिए याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम पर कार्यकारी और विधायी कार्यों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया है, हम यह नहीं कर सकते
Shahadat
22 April 2025 4:13 AM

नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, ऑल्ट बालाजी (और अन्य) जैसे OTT प्लेटफॉर्म के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें उनके माध्यम से "अश्लील" सामग्री के वितरण पर आरोप लगाया गया।
यह मामला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, जो इस पर विचार करने के लिए अनिच्छुक दिखाई दिए, क्योंकि उनका मानना था कि यह मुद्दा नीतिगत क्षेत्र में आता है।
जस्टिस गवई ने टिप्पणी की,
"हम यह कैसे कर सकते हैं...? यह नीतिगत क्षेत्र में आता है। विनियमन तैयार करना केंद्र का काम है। वैसे भी है, हमारी आलोचना की जाती है कि हम कार्यकारी कार्यों, विधायी कार्यों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।" जस्टिस गवई ने टिप्पणी की।
हालांकि, एडवोकेट विष्णु शंकर जैन (याचिकाकर्ताओं के लिए) ने जब तर्क दिया कि यह मुद्दा गंभीर है और वह न्यायालय को संतुष्ट करने में सक्षम हो सकते हैं तो खंडपीठ ने उनसे याचिका की एक प्रति केंद्र सरकार को देने के लिए कहा।
जस्टिस गवई ने मुस्कुराते हुए कहा,
"हम अगली सुनवाई के बाद इसे खारिज कर देंगे।"
बता दें कि यह पहली बार नहीं है, जब सुप्रीम कोर्ट OTT सामग्री विनियमन की याचिका पर विचार कर रही है।
अप्रैल, 2024 में जस्टिस गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने OTT प्लेटफार्मों पर अनुचित सामग्री के प्रकाशन को चुनौती देने वाली अन्य जनहित याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका ने "एक महत्वपूर्ण सवाल" उठाया कि "क्या इन OTT प्लेटफार्मों को बिना किसी प्रतिबंध के ऐसी सामग्री प्रकाशित करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जो सभी उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है?"
यह आरोप लगाया गया कि ओटीटी प्लेटफार्मों पर कुछ फिल्मों में शुद्ध नग्नता शामिल है। फिर भी कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र रूप से फिल्में देख सकता है। याचिकाकर्ता के वकील की सुनवाई के बाद जस्टिस गवई ने सुझाव दिया कि पहले सरकार को एक प्रतिनिधित्व दिया जाए। तदनुसार, याचिका को वापस ले लिया गया। साथ ही केंद्र सरकार को प्रतिनिधित्व करने की स्वतंत्रता दी गई, जिस पर कानून के अनुसार निर्णय लिया जाएगा।
इसके बाद अक्टूबर, 2024 में पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने OTT प्लेटफॉर्म पर फिल्मों की सामग्री/रिलीज के नियमन के लिए एक बोर्ड के गठन की मांग करने वाली अन्य याचिका को खारिज कर दिया। उक्त मामले में याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क यह था कि OTT सामग्री या उक्त प्लेटफॉर्म पर फिल्मों की रिलीज की निगरानी के लिए कोई नियम नहीं हैं।
यह देखते हुए कि मामला सार्वजनिक नीति के दायरे में आता है, खंडपीठ ने कहा,
"अब समस्या यह है कि जिस तरह की जनहित याचिकाएं हमें मिल रही हैं, हमारे पास वास्तविक जनहित याचिकाओं से निपटने का समय नहीं है। हम केवल इस तरह की जनहित याचिकाएं पढ़ रहे हैं। ये नीति के मामले हैं- इंटरनेट को कैसे विनियमित किया जाए, OTT प्लेटफॉर्म को कैसे विनियमित किया जाए - यह ऐसा कुछ नहीं है, जो हम अपनी शक्ति के अधिकार क्षेत्र के तहत कर सकते हैं।"
केस टाइटल: उदय माहुरकर और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 313/2025