हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि COVID 19 वैक्सीन का समान वितरण हो: जस्टिस इंदिरा बनर्जी
LiveLaw News Network
14 Dec 2020 3:34 PM IST
जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने शुक्रवार को कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि COVID वैक्सीन का समान वितरण हो। वैक्सीन का लाभ संपन्न देशों तक ही सीमित ना रहे, बल्कि अविकसित देशों और कम विकसित देशों को भी लाभ मिले।
सुप्रीम कोर्ट की जज, विश्व मानवाधिकार दिवस पर सेंट थॉमस कॉलेज ऑफ लॉ और इंडिया लीगल की ओर से आयोजित एक वेबिनार में बोल रही थी, जिसका विषय "STAND UP FOR HUMAN RIGHTS, THE NEED OF GLOBAL SOLIDARITY" था।
उन्होंने कहा, "COVID 19 की समस्या को नियंत्रित करने के लिए, इसे अकेले किसी एक देश द्वारा नहीं, बल्कि एकजुट होकर निपटना होगा। जहां तक वैक्सीन के विकास का संबंध है, ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन है, एक रूसी वैक्सीन है, फिर फाइजर एक वैक्सीन पर काम कर रहा है। विभिन्न देश इस दिशा में काम कर रहे हैं। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि COVID वैक्सीन का समान वितरण हो, ताकि वैक्सीन के लाभ केवल संपन्न देशों तक ही सीमित न रहें, बल्कि अविकसित देशों और कम-विकसित देशों ओर कम विकसित देशों को भी इसका लाभ मिले।"
जस्टिस बनर्जी ने मानवाधिकारों के मुद्दे पर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों का उल्लेख किया, जैसे, मानवाधिकारों की संयुक्त राष्ट्र घोषणा, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय समझौता, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय समझौता, नरसंहार सम्मेलन, तस्करी के संबंध में समझौते, शोषण और वेश्यावृत्ति, संगठित और सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का सम्मेलन, शरणार्थियों, दासता, नस्लीय भेदभाव, महिलाओं के खिलाफ भेदभाव, धार्मिक भेदभाव, यातना, विकास का अधिकार, बाल अधिकार, प्रवासी श्रमिकों और अल्पसंख्यकों के संबंध में सम्मेलन आदि।
जस्टिस बनर्जी ने कहा, "मानवाधिकार दस्तावेजों से उत्पन्न दायित्वों का प्रवर्तन इन अधिकारों को लागू करने की इच्छा पर निर्भर करता है। ..राज्य निश्चित रूप से एक जिम्मेदारी का निर्वहन करता है, हालांकि, एक व्यक्ति के रूप में, हम भी मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेह हैं...।"
उन्होंने मैनुअल स्कैवेंजिंग के एक मामले का उल्लेख किया, जिसमें, "एक व्यक्ति ही मैनुअल स्कैवेंजिंग करवा रहा था। इसलिए नागरिकों की एक व्यक्ति के रूप में भी और सामूहिक रूप से भी यह जिम्मेदारी है कि एक दूसरे के मानवाधिकारों की सुरक्षा हो।"
उन्होंने कहा कि COVID 19 की महामारी के कारण एक से अधिक तरीकों से मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है। कई लोग मारे गए हैं, कई बीमार पड़े हैं, बहुतों ने अपनी नौकरी गंवा दी है। प्रवासी श्रमिकों की समस्या है, जिन्हें बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ी, और अपने घरों तक सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। जस्टिस बनर्जी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग जरूरी है क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय एकजुटता का मूल है। एकजुटता केवल सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें विकास, अंतरराष्ट्रीय संबंध और सुधार की स्थिरता शामिल है।
उन्होंने कहा, "संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने 2005 में एक कदम उठाया था और अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के लिए लोगों के अधिकारों पर एक मसौदा घोषणा तैयार करने के लिए मानव अधिकारों पर एक स्वतंत्र विशेषज्ञ नियुक्त किया था।"
जस्टिस बनर्जी ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में सहयोग करने के लिए लोगों को अधिक श्रेणियों में शामिल करने के अधिकार का विस्तार करने के लिए कर्तव्य के उत्थान के माध्यम से प्रभावित किया गया था, जो कि उन कर्तव्यों के लिए है, जो एक दायित्व में तब्दील होने के लिए मानवाधिकारों में अंतर्निहित है। इसका पहला उदाहरण मानव और जन अधिकारों पर अफ्रीकी चार्टर था, जिसमें कानूनी बाध्यताएं शामिल थीं।"
जस्टिस बनर्जी ने आगे कहा, "विकास का अधिकार, शांति, स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण का अधिकार, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों का अधिकार... घरेलू हिंसा, महिलाओं के मानवाधिकारों पर हमला ... यौन उत्पीड़न और यौन शोषण ... मानव तस्करी और देह व्यापार से बदतर कुछ भी नहीं, गुलामी, वेश्यावृत्ति, बंधुआ मजदूरी के लिए महिलाओं को उन्हें चल संपत्ति के जैसे खरीदना और बेचना...इन सभी को सामूहिक प्रयास से रोकना होगा, यह व्यक्तिगत स्तर पर नहीं होगा, न राष्ट्र-राज्य द्वारा होगा।"
जस्टिस बनर्जी ने कहा, "इसीलिए 20 दिसंबर को मानवाधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय एकजुटता दिवस घोषित किया गया है। अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के लिए लोगों के अधिकारों पर एक मसौदे की घोषणा भी की गई है।"
स्वतंत्र विशेषज्ञ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय एकजुटता व्यक्तियों, जनता राज्यों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच एकता की भावना की अभिव्यक्ति है। यह हितों, उद्देश्यों और कार्यों के संघ और विभिन्न लक्ष्यों और सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के अधिकारों की मान्यता को शामिल करता है। अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को बनाए रखने और अंतरराष्ट्रीय समाज के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय एकजुटता समकालीन अंतरराष्ट्रीय कानून को रेखांकित करने वाला एक मूलभूत सिद्धांत है।
जस्टिस बनर्जी ने कहा, " कॉर्पोरेट इकाइयों के लिए समय आ गया है, कम से कम इस देश में, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलीटी के निर्वहन में, मानवाधिकारों की सुरक्षा का मुद्दा उठाने का समय आ गया है।"
अपने कार्यकाल से एक घटना का उल्लेख करते हुए जस्टिस बनर्जी ने कहा, "यह घटना अभी भी उन्हें सिहरन देती है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप जब में उच्च न्यायालय की कानूनी सेवा समिति की प्रमुख भी थी और तब यह पश्चिम बंगाल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी थी।,यह मेरे लिए आंख खोलने वाली घटना थी, जब मैं एक एनजीओ द्वारा आयोजित एक लिंग संवेदीकरण कार्यक्रम मे पीड़ितों से मिली। 13-14 साल की एक पीड़ित लड़की थी, जिसका माता-पिता जीवित नहीं थे। और गांव में अपनी चाची के साथ रहती थी। चाची परिवार की जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाती थी, लेकिन वह जो भी दे सकती थीं, लड़की को देती थीं। फिर भी उसे भोजन नहीं मिल पाता था।
गांव की एक दूसरी चाची ने उसे बॉम्बे में नौकरी दिलाने की पेशकश की। और क्या लालच दिया? कि उसे चार वक्त का खाना मिलेगा। लड़की ने पूछा कि क्या उसे वाकई दिन में चार बार चावल मिलेगा। जवाब था, 'केवल चावल ही क्यों? कपड़े और अन्य चीजें भी मिलेंगी। उसे बताया गया कि वह एक रेस्तरां में काम करेगी। वह लड़की अपनी चाची को बिना बनाए बॉम्बे के लिए रवाना हो गई। इस उम्मीद में कि कि वह पैसे कमा पाएगी और अपनी चाची को भी भेज देगी। वहां, बॉम्बे में, उसे एक वेश्यालय में बेच दिया गया। सिर्फ एक रात में कई ग्राहकों ने उसका शोषण किया। उनमें से कई असुरक्षित यौन संबंधो पर जोर देते थे। 14 या 15 साल की उम्र में, वह गर्भवती हो गई।
उसकी दुर्दशा सुनकर, एक ग्राहक ने उसे भागने में मदद की और उसे एनजीओ को सौंप दिया गया। उसने कभी अपनी कमाई नहीं देखी। यह सोचकर कि वह भाग जाएगी, कभी भी उसके हाथ में पैसा नहीं दिया जाता था।... उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझसे बात की और मेरे पास उसे देने के लिए कोई जवाब नहीं था। उसने पूछा, 'मेरी क्या गलती है? मैं ऐसा जीवन नहीं चाहती थी। मुझसे कहा गया था कि मुझे बर्तन आदि साफ करना होगा।'' ... 16 साल की उम्र में वह एचआईवी पीड़ित हो गई। हमने उसकी रेट्रोवायरल थेरेपी करवाई।"
जस्टिस बनर्जी ने कहा, "मेरी मां निधन से पहले, लगभग 3 वर्षों तक वह डिमेंशिया से पीड़ित थीं। इसलिए मैंने एक सेंटर से सहायता ली। एक महिला सुबह 8 बजे से शाम 8 बजे तक मेरी मां की सहायता करती थी। वह अपने बच्चे की मां और पिता दोनों थी। उसके पति ने उसे छोड़ दिया था। उसका 8 से 10 साल का एक बच्चा था। कलकत्ता जैसे शहर में एक कमरे के घर में वह अकेली रहती थी।....इसलिए यह राज्य और लोगों की सामूहिक जिम्मेदारी है, और प्रत्येक देश की। जब धोखाधड़ी से एक शादी होती है और महिला को भारत से विदेश ले जाया जाता है, तो उस देश का सहयोग भी महत्वपूर्ण होता है। ऐसी ही मददन की आवश्यकता बच्चे की तस्करी में भी होती है।"