न्यायपालिका में आम आदमी का विश्वास बनाए रखने के लिए हमें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए: जस्टिस सुधांशु धूलिया

Shahadat

9 Aug 2025 10:38 AM IST

  • न्यायपालिका में आम आदमी का विश्वास बनाए रखने के लिए हमें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए: जस्टिस सुधांशु धूलिया

    सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) द्वारा आयोजित अपने विदाई समारोह में जस्टिस सुधांशु धूलिया ने आज कहा कि आम आदमी के विश्वास ने ही न्यायपालिका को जीवित रखा है और जजों के साथ-साथ वकीलों को भी उस विश्वास को बनाए रखने के लिए अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।

    उन्होंने कहा,

    "आम आदमी के विश्वास ने न्यायपालिका को जीवित रखा। वकील स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे थे। वकीलों को साहस के साथ बोलना चाहिए, निडर होना चाहिए। इस देश के लोग हमारी ओर आशा भरी नज़रों से देखते हैं। हमें अपना विश्वास बनाए रखने के लिए अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।"

    इस टिप्पणी के साथ जस्टिस धूलिया ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे आज देश के किसी दूरदराज के इलाके में अगर किसी ग्रामीण को तहसील अधिकारियों (या किसी और) द्वारा परेशान किया जाता है तो वह जानता है कि जब उसका मन भर जाएगा तो वह हाईकोर्ट से 'स्थगन' नामक कोई चीज़ प्राप्त कर सकता है: "वह कहता है कि मैं हाईकोर्ट जाऊंगा और मुझे स्थगन मिल जाएगा... वह ग्रामीण जानता है कि अदालतें स्थगन नामक कोई चीज़ देती हैं!"

    सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में अपने तीन वर्षों से अधिक के कार्यकाल पर विचार करते हुए जज ने श्रोताओं को यह समझाया कि यदि 'न्याय कैसे करें' सीखने की कोई कला या विधि है तो वह 'कानून के जज' की बजाय 'तथ्यों के जज' बनने की है।

    उन्होंने आगे कहा,

    "एक कानून का जज कभी-कभी अपने गहन ज्ञान और अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धि के बावजूद किसी मामले में न्याय करने में सक्षम नहीं हो पाता। चूंकि वह कानून का जज है, इसलिए वह केस-लॉ और कानून से बंधा हो सकता है... किसी भी परिस्थिति में न्याय करने के लिए उसे तथ्यों का जज बनना होगा। यदि वास्तव में कोई कला, न्याय करने की कोई विधि है, जिसे सीखना आवश्यक है, तो वह यह है कि परिस्थिति की मांग के अनुसार कानून के जज से तथ्यों का जज कैसे बनें। एक तथ्य का जज ही यह जानता है कि किसी व्यक्ति को ईमानदारी से जीने से पहले, उसे जीना होगा।"

    जस्टिस धूलिया ने जज के आचरण के महत्व पर भी ज़ोर दिया और बताया कि कैसे जज का व्यक्तित्व न केवल उनके निर्णयों से बल्कि वादियों और वकीलों के साथ उनके व्यवहार से भी आकार लेता है।

    जस्टिस धूलिया ने आगे कहा,

    "हर दिन एक जज अदालत में न्याय करते हुए बैठता है। कहीं कोने में एक व्यक्ति बैठा होता है, जो जज का मूल्यांकन कर रहा होता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जज वादियों और वकीलों के साथ कैसा व्यवहार करता है। जनता आपको न केवल आपके निर्णयों से, बल्कि आपके समग्र व्यक्तित्व से भी आंकेगी।"

    अपने संबोधन के दौरान जज द्वारा उद्धृत कई प्रसिद्ध हस्तियों/लेखकों में जस्टिस कृष्ण अय्यर भी शामिल थे, जिन्होंने एक बार कहा था, "न्यायालय का भी एक निर्वाचन क्षेत्र है - राष्ट्र - और एक घोषणापत्र - संविधान"। संबोधन का समापन जस्टिस धूलिया द्वारा अपने कर्मचारियों को धन्यवाद देने और अपने परिवार के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के साथ हुआ।

    चीफ जस्टिस बीआर गवई ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उन्होंने ने भी जस्टिस धूलिया को एक अनोखे व्यक्तिगत स्पर्श वाले भाषण के साथ विदाई दी।

    चीफ जस्टिस ने कहा,

    "उनके सामने खड़े वकीलों के लिए वह निष्पक्षता के प्रतीक थे। उनके शांत व्यवहार और धैर्यपूर्वक सुनने की क्षमता ने ऐसा माहौल बनाया कि मुश्किल मामले भी सहज लगने लगे। अदालती कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार बहुत कुछ कहता है। वह हमेशा ज़मीन से जुड़े रहे। अपने लॉ क्लर्कों के लिए वह एक बॉस से बढ़कर थे। उन्होंने उनके व्यक्तिगत विकास में भी उनका मार्गदर्शन किया।"

    कला और सिनेमा के प्रति जस्टिस धूलिया के लगाव पर चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की,

    "अगर उन्होंने क़ानूनी पेशा नहीं चुना होता तो वह एक फ़िल्म निर्माता या अभिनेता के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते थे। कला के प्रति उनका जुनून हमेशा स्पष्ट दिखाई देता था। हल्के-फुल्के अंदाज़ में अगर वह अपने भाई (फ़िल्म लेखक तिग्मांशु धूलिया) के किरदार में गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में रामाधीर सिंह की भूमिका निभाते तो मेरा मानना है कि वह किरदार अविस्मरणीय होता!"

    नवंबर में रिटायर होने वाले चीफ जस्टिस ने मज़ाकिया लहजे में यह भी कहा कि उन्हें अपने कार्यकाल का अंतिम रिटायरमेंट भाषण देते हुए खुशी हो रही है। इसके बाद वह जस्टिस धूलिया के साथ गोल्फ खेलना पसंद करेंगे।

    इस अवसर पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने भी बात की और हिजाब मामले (जो कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध से संबंधित था) के दौरान जस्टिस धूलिया के शब्दों को याद किया।

    उन्होंने कहा,

    “जस्टिस धूलिया ने भावनाओं के सूक्ष्म अंतर्संबंध को उजागर किया... पहले भी, मैंने हिजाब मामले का उल्लेख किया था... जज ने कहा था, अगर कोई लड़की कक्षा में हिजाब पहनना चाहती है तो उसे रोका नहीं जा सकता। अगर यह उसकी पसंद का मामला है, क्योंकि किसी रूढ़िवादी परिवार के लिए उसे स्कूल जाने की अनुमति देने का यही एकमात्र तरीका हो सकता है तो ऐसे मामलों में उसका हिजाब शिक्षा का टिकट है।”

    सीनियर एडवोकेट विकास सिंह (SCBA अध्यक्ष) ने हिजाब मामले में जस्टिस धूलिया के 'अत्यधिक सामाजिक प्रभाव' वाले फैसले की सराहना की।

    सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने कहा,

    "हिजाब पर उनके फैसले का सामाजिक प्रभाव बहुत बड़ा है। हिजाब पर ज़ोर देकर हम आख़िर क्या कर रहे हैं? हम अंततः यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि इनमें से बहुत-सी लड़कियां नियमित स्कूल न जाएं और मदरसों में वापस जाएं। क्या हम यही हासिल करना चाहते हैं? क्या यही अंतिम उद्देश्य है? उद्देश्य एक निश्चित स्तर पर अनुशासन लागू करना है। उनके फैसले का प्रभाव यह सुनिश्चित करना है कि समाज का हर वर्ग भारत की मुख्यधारा का हिस्सा बना रहे।"

    सिंह ने जस्टिस धूलिया के रिटायरमेंट के एक दिन बाद ही अपना सरकारी आवास खाली करने के फैसले की भी सराहना की और इसे उत्कृष्ट बताया। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे चीफ जस्टिस बीआर गवई ने भी संकेत दिया कि वह समय पर अपना सरकारी आवास खाली कर देंगे, उन्होंने कहा कि इस तरह के कदमों से सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा बढ़ेगी, जहां हाल ही में एक पूर्व चीफ जस्टिस द्वारा अपना सरकारी आवास खाली न करने और कम से कम 8 महीने से ज़्यादा समय तक वहां रहने को लेकर विवाद हुआ था।

    इससे पहले दिन में एक औपचारिक पीठ के सदस्य के रूप में जस्टिस धूलिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट, जहां देश के सभी हिस्सों से वकील और वादी आते हैं, अपने वास्तविक स्वरूप में 'हिंदुस्तान' है और उन्हें इसकी सबसे ज़्यादा कमी खलेगी।

    जस्टिस धूलिया ने कर्नाटक हिजाब मामले में असहमति जताते हुए कहा था कि धार्मिक दुपट्टा पहनने के कारण लड़कियों को शिक्षा से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। उनका हालिया फैसला जिसमें उन्होंने कहा कि उर्दू को भारत के लिए विदेशी भाषा नहीं माना जा सकता। बिहार SIR प्रक्रिया में आधार, राशन और मतदाता कार्ड पर विचार करने के लिए चुनाव आयोग को दिया गया अंतरिम निर्देश भी उल्लेखनीय है।

    जनवरी, 2021 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त होने से पहले वह उत्तराखंड हाईकोर्ट जज थे। 9 मई, 2022 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया।

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