हमें एक समाज के रूप में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे को मिलकर सुलझाना होगा: जस्टिस रवींद्र भट

Shahadat

16 May 2022 5:08 AM GMT

  • हमें एक समाज के रूप में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे को मिलकर सुलझाना होगा: जस्टिस रवींद्र भट

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. रवींद्र भट ने राजद्रोह के मामलों को स्थगित रखने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर कोई टिप्पणी करने से परहेज करते हुए कहा कि बड़े अर्थ में फ्रीडम ऑफ स्पीच के मुद्दों को एक समाज के रूप में सामूहिक तौर से सुलझाया जाना चाहिए।

    जस्टिस भट ने यह देखते हुए कि मामला विचाराधीन है और इस विषय पर टिप्पणी के राजनीतिक प्रभाव हैं, कहा,

    "कानून की कई ब्रांच हैं जिनका दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति है। मानहानि का तटस्थ उदाहरण लेते हैं। हालांकि, इन्हें एक समाज के रूप में साथ मिलकर निपटाया जाना चाहिए। स्वतंत्रता मुफ्त में नहीं आती। इसके लिए काम करना पड़ता है। हम इसके लिए कैसे काम कर रहे हैं?"

    सीनियर एडवोकेट संजय घोष की किताब के विमोचन के अवसर पर कई समसामयिक मुद्दों पर व्यंग्यकार आकाश बनर्जी द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते हुए जस्टिस भट ने अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग, कमजोर जनहित याचिकाओं, न्यायपालिका की धारणा और इसके भविष्य के मुद्दों पर चर्चा की।

    उन्होंने सीनियर एडवोकेट संजय घोष की उनकी पुस्तक 'हाउ गौरंगो लॉस्ट हिज ओ' के लिए भी सराहना की।

    पुस्तक पर अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने टिप्पणी की,

    "लेखक ने कानूनी क्षेत्र में प्रचलित पुरातन कहावतों (Lingo) के उपयोग को रेखांकित किया है। वह तनाव और काम के दबाव के बारे में बात करता है जो नए वकील पेशे में हर दिन महसूस करते हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक के माध्यम से एक वकील होने के नाते कानूनी क्षेत्र की साइट, स्मेल और यहां तक ​​​​कि टेस्ट को भी बखूबी जाहिर किया है।"

    बनर्जी ने जब यह पूछा कि क्या न्यायपालिका जागरूक है और जनता में अपनी व्यापक धारणा पर सक्रियता से चर्चा कर रही है तो जस्टिस भट ने टिप्पणी की कि न्यायपालिका लोगों की धारणा से अच्छी तरह वाकिफ है। हालांकि, उन्होंने कहा कि किसी भी अन्य संस्थान की तरह न्यायाधीश बाहर नहीं आ सके और स्पष्टीकरण जारी नहीं कर सके।

    उन्होंने कहा,

    'उन्हें अपने निर्णयों के माध्यम से बोलना होगा।'

    इस चेतावनी को जोड़ते हुए कि वह संस्था के रूप में न्यायपालिका के लिए नहीं बोल सकते, उन्होंने आगे कहा कि धारणा कोई मायने नहीं रखती; इसके कामकाज के पीछे काम की प्रणाली मायने रखती है।

    बनर्जी ने तब अदालत की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग पर सवाल पूछा ताकि एक ऐसे आदमी को अदालत के अंदर के कामकाज का अंदाजा हो सके, जो वकील नहीं है।

    जस्टिस भट ने इस सवाल पर यह कहते हुए जवाब दिया कि कई हाईकोर्ट ने कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग शुरू कर दी है, जबकि सुप्रीम कोर्ट संभावनाओं को देख रहा है। उन्होंने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग का शक्तिशाली प्रभाव हो सकता है, जिससे ऐसे व्यक्ति को अदालती कार्यवाही के बारे में पता चल सके, जो हाईकोर्ट्स से संबंधित नहीं है। हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि अदालती कार्यवाही की आधी-अधूरी रिपोर्टिंग का विपरीत प्रभाव हो सकता है।

    हाल ही में ताजमहल प्रकरण की तरह अदालत में पहुंचने वाली तुच्छ और कमजोर जनहित याचिकाओं पर उनके विचार के बारे में पूछे जाने पर जस्टिस भट ने टिप्पणी की कि जनहित याचिका सबसे उत्पीड़ित लोगों के लिए सार्वजनिक लोगों द्वारा प्रतिनिधित्व करने के लिए है।

    उन्होंने उल्लेख किया,

    "जनहित याचिका के मामलों में अदालत का अधिकार क्षेत्र व्यापक दिशानिर्देशों पर आधारित है। कुछ विवेक अदालतों के पास यह तय करने के लिए छोड़ दिया जाता है कि मामले को उठाया जाए या नहीं। हालांकि, इसे अत्यधिक सावधानी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए। आप इसे नियमों के तहत बाध्य नहीं कर सकते हैं।"

    जस्टिस भट ने एक न्यायाधीश के जीवन में आने वाली बाधाओं पर भी कुछ टिप्पणियां कीं। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों का वास्तविक कार्य शाम को शुरू होता है और अधिक जटिल निर्णय छुट्टियों के दौरान लिखे जाते हैं।

    उन्होंने कहा,

    "यह धारणा है कि न्यायाधीशों का जीवन बहुत आरामदायक होता है, यह सही नहीं है। हम भी बाधाओं से बंधे होते हैं।"

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