हमें स्वीकार करना होगा कि भारत बहु-विचारों और बहु-संस्कृतियों का देशः जस्टिस चंद्रचूड़

LiveLaw News Network

5 Feb 2020 5:49 PM IST

  • हमें स्वीकार करना होगा कि भारत बहु-विचारों और बहु-संस्कृतियों का देशः जस्टिस चंद्रचूड़

    सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने विचारों और पहचानों में भारत की बहुलता को स्वीकार करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

    शनिवार को डॉ चिंतन चंद्रचूड़ की किताब 'द केसेज द इंडिया फॉरगॉट' के विमोचन समारोह में ज‌स्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- "मुझे लगता है कि आज जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, हमारे लिए राष्ट्र का वास्तव‌िक मूल्य यह है कि हम यह स्वीकार करें कि भारत बहु-पहचानों का देश है, यह बहु-संस्कृतियों का देश है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "बहु-संस्कृतियों, बहु-पहचानों और बहु-विचारों के बीच हो रहे संघर्षों में ही सच्चा भारत है, जो कि मुझे लगता है अगले दस वर्षों में उभरना चाहिए।"

    कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस जज जस्टिस एके सिकरी, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल माधवी गोराडिया दीवान, एज़ेडबी एंड पार्टनर्स की मैनेजिंग पार्टनर ज‌िया मोदी, और द प्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता भी मौजूद थे।

    कानूनी मसले पर किताब लिखने के कारणों की चर्चा करते हुए डॉ चिंतन चंद्रचूड़ ने कहा-

    "किताब के पीछे मुख्य उद्देश्य एक ऐसी किताब लिखना था, जिसमें बहुत परिष्कृत कानूनी हों, लेकिन इस प्रकार हों कि वह व्यापक स्तर पर पाठकों को सुलभ हो। बड़ा उद्देश्य वास्तव में कानून और संविधान के साथ नागरिकों का जुड़ाव बढ़ाना है। मुझे लगता है यह उस समय में विशेष महत्वपूर्ण है, जिसमें हम रह रहे हैं, जहां संविधान सामान्य रूप से है और प्रस्तावना विशेष रूप से देश भर में प्रतीकात्मक केंद्र हो चुका है।"



    डॉ चंद्रचूड़ ने इस मुद्दे पर भी जोर दिया कि ऐसे कई मामले हैं, जिनमें अदालतें सही निर्णय देने में विफल रही या अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया है, और यह नागरिकों या सरकार का यह कर्तव्य बन गया कि वे जनमत को पहचानें और कानून में बदलाव करें।

    कार्यक्रम में जस्टिस सीकरी ने न्याय तक आम आदमी की पहुंच के बारे में पूछे जाने पर कहा कि पिछले 20 वर्षों में चीजें बदली हैं। पहले, अदालतों तक आम आदमी की पहुंच कठिन थी लेकिन विभिन्न सुधारों के कारण अब यह स्थिति तेजी से बदल रही है।

    एएसजी माधवी दीवान ने कहा कि डॉ चंद्रचूड़ को तीसरी पीढ़ी का कानूनी जानकार और वकील होने के कारण एक अनोखी सहूलियत प्राप्त है। इस अनूठे परिप्रेक्ष्य के कारण वह पाठकों को किस्सों और पर्दे के पीछे की कहानियों सुनाने में सक्षम हैं और इसलिए, आम आदमी के लिए और कभी वकीलों के ल‌िए भी, अदालत के रहस्य को उजागर करने में सक्षम है।



    विविधता के मुद्दे पर बात करते हुए दीवान ने एक घटना का‌ जिक्र किया, जिसमें एक वरिष्ठ महिला वकील ने उन्हें बताया था कि वो जजशिप नहीं कर पाईं थी क्योंकि उन्हें अपने मातृत्‍व कर्तव्यों का निर्वहन करना था। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या महिलाओं और पुरूषों की उम्र एक बराबर होनी चाहिए, अगर महिलाओं का परिवार है? अगर हम इसे ध्यान में नहीं रखते हैं तो कुछ बहुत अच्छे उम्मीदवारों को छोड़ रहे हैं।"

    एनजेएसी पर डॉ चंद्रचूड़ ने कहा, "यह द्विदलीय सहमति का उत्पाद था। यह उन विधियों में से एक नहीं था, जहां विपक्ष ने वाकआउट किया, या बहुमत ने संसद के माध्यम से इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की। कोर्ट ने भी एनजेएसी को मौका नहीं दिया।"

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