"हम केवल टीकाकरण पर संदेह नहीं कर सकते": टीकाकरण से जुड़ी कथित मौतों पर जांच की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

LiveLaw News Network

26 Nov 2021 10:18 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की प्रति सॉलिसिटर जनरल के दफ्तर को देने का निर्देश दिया है। याचिका में मांग की गई है कि COVID-19 टीकाकरण के 30 दिनों के भीतर होने वाली मौतों के मामलों के फॉलोअप, रिकॉर्ड और प्रचार के लिए केंद्र को निर्देश दिए जाएं। याचिका को "COVID-19 टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव और बढ़ती मौतों" को देखते हुए दायर किया गया है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया, "इस याचिका दायर किए जाने के समय, देश भर में वैक्सीन से जुड़ी 900 मौतों की सूचना थी। टीकाकरण के बाद स्वस्‍थ लोगों की मौत हो रही थी।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "टीका के कारण नहीं हो सकता है। सहसंबंध क्या है? टीकाकरण अन्य कारणों से मौतों को नियंत्रित नहीं करता है।"

    जिस पर गोंजाल्विस ने कहा, "हो सकता है। लेकिन हमारे पास एक निगरानी प्रणाली होनी चाहिए जो इसे रिकॉर्ड करेगी। साथ ही, इन मौतों की जांच होनी चाहिए- वह क्यों मरा? क्या दिल में थक्का था? मस्तिष्क में एक थक्का था, उसकी जांच होनी चाहिए।"

    उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से 2015 में जारी 'प्रतिरक्षा के बाद प्रतिकूल प्रभाव' दिशा-निर्देशों- 'निगरानी और प्रतिक्रिया' परिचालन दिशानिर्देशों की ओर संकेत किया। उन्होंने बताया कि उक्त निर्देशों के तहत स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, जैसे कि आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को उस गाँव की जांच करने और उसका पालन करने का आदेश दिया गया है, जहां एक विशिष्ट अवधि के लिए टीकाकरण किया गया है, जिसके बाद मंजूरी दा जाती थी। उन्होंने बताया कि जहां टीकाकरण के बाद थक्का आदि के कारण मृत्यु हुई थी, वहां पोस्टमार्टम के लिए एक विशेष प्रोटोकॉल निर्धारित किया गया था।

    उन्होंने बताया कि इन दिशानिर्देशों में 2020 में संशोधित किया गया है जिसके तहत "निष्क्रिय निगरानी" का प्रावधान किया गया है यानि केवल संबंधित व्यक्ति या प्रभावित परिवार की शिकायत पर यह निर्भर करता है।

    उन्होंने कहा, "यही कारण है कि भारत में आधिकारिक मौतों की संख्या अविश्वनीय है, केवल 2 या 3!"

    इस पर, जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, "आप 'अविश्वसनीय' नहीं कह सकते। हमें टीकाकरण के प्रतिकारी लाभों को देखना होगा! हम यह संदेश नहीं भेज सकते हैं कि टीकाकरण में कुछ समस्या है। डब्ल्यूएचओ ने टीकों के पक्ष में बात की है। दुनिया भर में देश इसे कर रहे हैं! हम इस पर संदेह नहीं कर सकते।"

    जज ने कहा, "इसके अलावा, संशोधित दिशानिर्देश 'गंभीर और मामूली एईएफआई' पर नज़र रखने के लिए एक और चैनल प्रदान करते हैं। 'परिधीय स्वास्थ्य कर्मचारियों' जिसमें आशा कार्यकर्ता शामिल होती है, उनके जर‌िए 'मासिक प्रगति रिपोर्ट' प्राप्त की जाती है।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,

    "डब्ल्यूएचओ सभी देशों से कह रहा है कि सक्रिय निगरानी होनी चाहिए- क्षेत्र का दौरा करने वाले नामित कर्मचारियों के माध्यम से डेटा संग्रह प्रणाली होनी चाहिए, किसी भी 'वैक्सीन से जुड़ी बीमारी' की निगरानी के लिए एक वर्ष के लिए फॉलो अप होना चाहिए ... लेकिन ऐसा देश में नहीं किया जा रहा है। यहां दृष्टिकोण निष्क्रिय निगरानी का है- व्यक्ति या परिवार की शिकायत की प्रतीक्षा है! देश में 9000 मौतें हैं जिनकी जांच होनी चाहिए! देश भर के डॉक्टरों ने सरकार से डेटा मांगा है! "

    "हम यह नहीं कह सकते कि हमने भारत में एईएफआई के लिए दिशानिर्देश तैयार नहीं किए हैं; हमारे पास एक प्रणाली है। हमेशा असहमत लोग होते हैं, लेकिन हम उनके अनुसार अपनी नीति नहीं बना सकते। हमें राष्ट्र की भलाई को देखना होगा। पूरी दुनिया एक अभूतपूर्व महामारी की चपेट में थी, जैसा हमने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। यह सर्वोच्च राष्ट्रीय महत्व का है कि हम टीकाकरण करें...हम टीकाकरण नहीं करने जैसी शिथिलता की कीमत अदा नहीं कर सकते! हमें लोगों को सुरक्षित रखना है और मृत्यु दर को कम करना है!"

    गोंजाल्विस से आग्रह किया, "मैंने सुना है कि अदालतों में कहा जा रहा है कि हम वैक्सीन हेजिटेंसी की अनुमति नहीं दे सकते हैं। लेकिन अन्य सभी देश सक्रिय निगरानी कर रहे हैं! अकेले भारत ने इसे बंद कर दिया है!"

    पीठ ने एक-दूसरे से बात करने के बाद कहा कि ''हमारे मन में कुछ बातें हैं।'' पीठ ने तब श्री गोंजाल्विस को एसजी ऑफिस को याचिका की एक प्रति देने की अनुमति दी। इस मामले को 2 सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया गया है।

    केस शीर्षक: अजय कुमार गुप्ता और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया | डब्ल्यूपी (सी) संख्या 588/2021

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