वर्चुअल सुनवाई सुविधाएं विशेष आयु से ऊपर के वकीलों/वादकारियों तक सीमित नहीं की जा सकतीं: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

12 Oct 2023 10:25 AM IST

  • वर्चुअल सुनवाई सुविधाएं विशेष आयु से ऊपर के वकीलों/वादकारियों तक सीमित नहीं की जा सकतीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के सभी हाईकोर्ट में हाइब्रिड सुनवाई को अनिवार्य करते हुए हाईकोर्ट में समान मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) की अनुपस्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त की और सुनवाई के लिए इलेक्ट्रॉनिक पहुंच के लिए स्पष्ट और सुसंगत दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

    चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने वर्तमान एसओपी में आयु-आधारित प्रतिबंधों के अस्तित्व की भी आलोचना की, जो केवल 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के वकीलों और पक्षकारों के लिए हाइब्रिड मोड सुनवाई की अनुमति देते हैं।

    इलेक्ट्रॉनिक सुनवाई तक असंगत पहुंच

    अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई हाईकोर्ट में सुनवाई के इलेक्ट्रॉनिक तरीकों तक पहुंच के लिए मानकीकृत एसओपी का अभाव है, जिससे भ्रम और विसंगतियां पैदा होती हैं। यह देखा गया कि कुछ मामलों में वादियों और वकीलों को इलेक्ट्रॉनिक पहुंच के लिए पहले से ही आवेदन जमा करना पड़ता था, कभी-कभी निर्धारित सुनवाई से तीन दिन पहले तक। अदालत की राय के अनुसार, इस प्रथा ने अनावश्यक बाधाएं पैदा कीं और न्याय तक त्वरित पहुंच में बाधा उत्पन्न की।

    कोर्ट ने कहा,

    "ज्यादातर हाईकोर्ट में समस्या समान एसओपी की अनुपस्थिति से जटिल हो गई है, जो सुनवाई के इलेक्ट्रॉनिक मोड तक पहुंच प्राप्त करने के तरीके में स्पष्टता लाती है। इलेक्ट्रॉनिक पहुंच के लिए एक आवेदन पहले से ही जमा करना पड़ता है। कुछ मामलों में सुनवाई शुरू होने की तारीख से तीन दिन पहले उक्त आवेदन जमा करना पड़ता है।"

    आयु-आधारित प्रतिबंधों की आलोचना की गई

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में मौजूदा एसओपी में उम्र आधारित प्रतिबंधों के अस्तित्व की भी आलोचना की। कुछ हाईकोर्ट के एसओपी के अनुसार, हाइब्रिड मोड की सुनवाई केवल 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के वकीलों और पक्षकारों के लिए ही अनुमति है। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि इस मनमानी आयु-सीमा से युवा वकीलों को अनुचित रूप से नुकसान होने की संभावना है और मुख्य रूप से कानूनी पेशे के सीनियर्स सदस्यों के लिए तकनीक तक पहुंच सीमित हो सकती है।

    सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि इन आयु-आधारित मानदंडों का कोर्ट रूम में तकनीक के उपयोग के प्राथमिक लक्ष्य: पहुंच में वृद्धि से कोई स्पष्ट संबंध नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    "मौजूदा एसओपी की मनमानी नियमों से भी सामने आती है जैसे कि 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के वकीलों/पक्षकारों के लिए हाइब्रिड मोड में सुनवाई की अनुमति दी जा रही है। आयु प्रतिबंध अनुचित रूप से युवा वकीलों को नुकसान पहुंचाएगा और पहुंच को प्रतिबंधित करेगा। तकनीक केवल बार में सीनियर्स के हाथों में है। ऐसे मानदंड कोर्ट रूम तक पहुंच बढ़ाने के लिए तकनीक का उपयोग करने के उद्देश्य से कोई संबंध नहीं रखते हैं।"

    हाइब्रिड सुनवाई को अपनाना

    न्यायालय ने हाईकोर्ट को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि हाईकोर्ट में उपस्थित होने वाले सभी वकीलों और वादकारियों को वाई-फाई सहित पर्याप्त इंटरनेट सुविधाएं फ्री उपलब्ध कराई जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से उपलब्ध लिंक संबंधित अदालत की वाद सूची में उपलब्ध कराए जाने चाहिए और वर्चुअल मोड के माध्यम से पेश होने के लिए अलग से आवेदन करने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। न्यायालय ने सभी हाईकोर्ट को चार सप्ताह के भीतर हाइब्रिड/वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुनवाई तक पहुंच प्राप्त करने के लिए वादियों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) लागू करने का भी निर्देश दिया।

    केस टाइटल: सर्वेश माथुर बनाम पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल| डब्ल्यू.पी.(सीआरएल.) नंबर 351/2023

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