उमर खालिद व अन्य को जमानत न मिलना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: कपिल सिब्बल

Praveen Mishra

6 Sept 2025 11:14 AM IST

  • उमर खालिद व अन्य को जमानत न मिलना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: कपिल सिब्बल

    दिल्ली दंगों की बड़ी साज़िश मामले में आरोपित उमर ख़ालिद (और अन्य) को दिल्ली हाईकोर्ट से ज़मानत न मिलने के बाद, वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कल प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर न्यायपालिका की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि अदालतें सुनवाई टालकर मामले में देरी कर रही हैं और इस तरह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन कर रही हैं।

    सिब्बल ने कहा, "अगर कोर्ट सालों तक फैसला नहीं करता, तो क्या इसकी ज़िम्मेदारी हमारी है? अदालत की यही हालत है। अगर जमानत नहीं देनी है, तो मामला ख़ारिज कर दें। 20–30 बार सालों तक सुनवाई करने की क्या ज़रूरत है?...यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। ऐसा अन्याय नहीं होना चाहिए। अगर कोई देश की अखंडता को खतरा पहुँचाएगा, हम देश के साथ खड़े होंगे, उनके साथ नहीं। लेकिन निर्दोषों के साथ खड़ा होना पड़ेगा।"

    उन्होंने कहा कि उमर ख़ालिद (और अन्य) अब दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे और भरोसा जताया कि वहाँ सुनवाई होगी।

    "प्रदर्शन नागरिक का संवैधानिक अधिकार है – इसका मतलब यह नहीं कि एजेंसियाँ लोगों को UAPA के तहत जेल में डाल दें।"

    जजों के Recusal पर सवाल

    सिब्बल ने यह भी पूछा कि कुछ न्यायाधीशों ने बिना कारण बताए इस मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग (recuse) क्यों कर लिया। उन्होंने कहा, "जजों को बताना चाहिए कि वे सुनवाई से क्यों हटे। कोई कारण तो होना चाहिए। जब कोई व्यक्ति राहत के लिए कोर्ट आता है, तो उसे यह जानने का अधिकार है कि न्यायाधीश उसका मामला क्यों नहीं सुन रहे।"

    UAPA मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों का हवाला

    सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पुराने फैसलों की अवहेलना की है। उन्होंने कई मामले गिनाए जहाँ लंबे समय जेल में रहने के बाद ज़मानत दी गई थी:

    • Athar Parwez v. Union of India – 2 साल 4 महीने जेल, ज़मानत मिली।

    • Shoma Kanti Sen v. State – 6 साल जेल, ज़मानत मिली।

    • Jahir Haq v. State of Rajasthan – 8 साल जेल, ज़मानत मिली।

    • Union of India v. K.A. Najeeb – 5 साल जेल, ज़मानत मिली।

    उन्होंने कहा कि इन मामलों में तो चार्ज भी फ़्रेम हो गए थे, जबकि उमर ख़ालिद के मामले में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।

    सुनवाई में देरी और हाईकोर्ट की टिप्पणी

    सिब्बल ने कहा कि पहला अपील दिल्ली हाईकोर्ट में 180 दिनों में 28 बार सुना गया, फिर भी राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट में अपील 272 दिन लंबित रही, लेकिन सुनवाई पूरी नहीं हुई और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने मामले से खुद को अलग कर लिया। अंततः उमर ख़ालिद को केस वापस लेकर ट्रायल कोर्ट जाना पड़ा।

    उन्होंने कहा कि दूसरी अपील हाईकोर्ट में 407 दिनों तक चली। 9 जुलाई 2025 को आदेश सुरक्षित रखे गए, लेकिन कभी सुनाए नहीं गए। फिर मामला दूसरी बेंच के पास गया, लेकिन उसने सुनवाई करने से इनकार कर दिया।

    हाईकोर्ट की यह टिप्पणी कि आरोपी के वकीलों की वजह से देरी हुई, सिब्बल ने नकार दी। उन्होंने कहा कि 7 स्थगन का आरोप लगाया गया है, जबकि असल में उन्होंने केवल दो बार स्थगन माँगा था – एक बार स्वास्थ्य कारण से और दूसरी बार जब वे अनुच्छेद 370 के केस में संविधान पीठ के सामने पेश हो रहे थे।

    सबूत और अभियोजन एजेंसी पर आरोप

    सिब्बल ने कहा कि जिस भाषण का आरोप है, वह ख़ालिद ने मुंबई में दिया था, दिल्ली में नहीं। कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है, फिर भी वे 5 साल से जेल में हैं और ज़मानत नहीं मिली।

    "मैं पूरे विश्वास से कहता हूँ कि अगर यह केस ट्रायल में गया तो सभी बरी होंगे। यह साज़िश उजागर होगी।"

    उन्होंने यह भी कहा कि एजेंसी ने “सुरक्षित गवाहों” (protected witnesses) के बयान रिकॉर्ड किए हैं लेकिन वे आरोपितों को उपलब्ध नहीं कराए गए।

    "चार्जशीट कोई सबूत नहीं है, यह सिर्फ एजेंसी की राय है। अगर चार्जशीट को सबूत मान लिया जाए तो किसी को भी ज़मानत नहीं मिलेगी।"

    राजनीति और समाज की चुप्पी पर सवाल

    सिब्बल ने कहा,"53 लोग मारे गए, जिनमें से दो-तिहाई एक ही समुदाय के थे। जिन नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए, क्या उनके खिलाफ कोई कार्यवाही हुई? और जिस जज ने सवाल उठाया कि उन्हें क्यों नहीं अभियोजित किया गया, उसका तबादला कर दिया गया। यही है हमारी न्यायपालिका और सरकार की हालत।

    हमारी राजनीतिक पार्टियाँ भी इन मुद्दों पर आवाज़ नहीं उठातीं। एक सार्वजनिक अन्याय हो रहा है। कौन आवाज़ उठाएगा? हमारे वकील, मिडिल क्लास, समाज – सब चुप हैं।"

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