राज्यों द्वारा धर्मांतरण विरोधी कानूनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने के विभिन्न उदाहरण: सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर
Shahadat
17 April 2025 3:05 AM

मानवाधिकार संगठन 'सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस' ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आवेदन दायर कर देश के विभिन्न राज्यों में लागू धर्मांतरण विरोधी कानूनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने के संबंध में अंतरिम राहत की मांग की।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक में धर्मांतरण से संबंधित कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह ने कहा कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लगातार हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने के संबंध में अंतरिम राहत की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया गया और इस पर नोटिस जारी करने की मांग की गई।
उन्होंने कहा:
"अंतरिम राहत की मांग करते हुए आईए दायर किया गया। अब यह इस तथ्य के मद्देनजर है कि कई घटनाएं हुई हैं, इन कानूनों का बार-बार इस्तेमाल किया जा रहा है और उन्हें हथियार बनाया जा रहा है - हम चाहते हैं कि उस आईए पर नोटिस जारी किया जाए, माई लॉर्ड्स।"
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दलील का खंडन किया,
"माई लॉर्ड्स, ऐसा कोई उदाहरण नहीं है।"
इसके बाद सीजेआई ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर किए गए विभिन्न आवेदनों पर विचार करें और खंडपीठ को उन आवेदनों के बारे में सूचित करें, जिन पर केंद्र को आपत्ति नहीं हो सकती है और जहां आपत्तियां हैं, वहां अपना जवाब दाखिल करें।
इसके बाद खंडपीठ ने निम्नलिखित आदेश पारित किया:
"कई आवेदन दायर किए गए। गैर-आवेदकों के लिए इन आवेदनों पर अपना जवाब दाखिल करना खुला रहेगा, इस तथ्य के बावजूद कि नोटिस जारी नहीं किया जाएगा। हमने दलीलों को पूरा करने में तेजी लाने के लिए ये निर्देश जारी किए।"
सीजेआई ने यह भी स्पष्ट किया कि मामले को जल्द ही गैर-विविध दिन पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। वर्तमान चुनौती विभिन्न राज्य कानूनों की वैधता को लेकर है, जो अन्य धर्मों में अवैध धर्मांतरण को दंडित करते हैं। सीजेपी ने जोर देकर कहा है कि ऐसे कानून अंतरधार्मिक जोड़ों और अंतरधार्मिक विवाह करने की इच्छा रखने वालों के खिलाफ हैं। यह भी तर्क दिया है कि ऐसे कानून किसी व्यक्ति की पसंद की स्वतंत्रता और धर्म चुनने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं।
तत्कालीन सीजेआई, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने जनवरी 2020 में मामले में नोटिस जारी किया था। बाद में जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिका दायर की थी, जिसमें विभिन्न राज्यों द्वारा बनाए गए धार्मिक धर्मांतरण से संबंधित कानूनों को चुनौती देने वाले 6 हाईकोर्ट में लंबित 21 मामलों को स्थानांतरित करने की मांग की गई।
गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे 6 हाईकोर्ट में, जहां ये याचिकाएं लंबित हैं, दो राज्यों यानी गुजरात और मध्य प्रदेश में, संबंधित राज्यों के संबंधित हाईकोर्ट्स द्वारा गुजरात धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 (2021 में संशोधित) और मध्य प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 के प्रावधानों के संबंध में आंशिक रोक लगाई गई।
गुजरात राज्य और मध्य प्रदेश राज्य ने अपने-अपने हाईकोर्ट्स के उक्त अंतरिम आदेशों को चुनौती दी।
केस टाइटल: सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य WP(Crl) संख्या 428/2020 और संबंधित मामले