यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा: याचिका में दलील- सिविल सेवा परीक्षा 2020 की चयन सूची में 50% आरक्षण सीमा का उल्लंघन किया गया; सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इनकार किया

LiveLaw News Network

21 Jan 2022 7:07 AM GMT

  • यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा: याचिका में दलील- सिविल सेवा परीक्षा 2020 की चयन सूची में 50% आरक्षण सीमा का उल्लंघन किया गया; सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इनकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सिविल सेवा परीक्षा के एक उम्मीदवार की एक रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। याच‌िकाकर्ता ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) सिविल सेवा परीक्षा 2020 की अंतिम चयन सूची को 50% आरक्षण सीमा का उल्लंघन करने की सीमा तक रद्द करने की मांग की थी।

    याचिकाकर्ता नीतीश शंकर 2020 की सिविल सेवा परीक्षा में उम्मीदवार थे। उन्होंने दलील दी कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटा लागू करने से, आरक्षण 60% हो गया है और सामान्य वर्ग के लिए केवल 40% पद ही बचे हैं। याचिका में तर्क दिया गया था कि यूपीएससी ने सामान्य वर्ग के तहत 34.55 फीसदी उम्‍मीदवारों की नियुक्त‌ि की सिफारिश की है, जबकि आरक्षित वर्ग के तहत 65.44 फीसदी उम्मीदवारों के चयन की सिफारिश की गई है, जिससे चयन में गड़बड़ी हुई है।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने शुक्रवार को याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

    सुनवाई के दरमियान पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील को यह चेतावनी भी दी कि याचिका को एक लाख रुपये जुर्माने के साथ खारिज किया जाएगाञ पीठ ने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण को 103वें संविधान संशोधन के तहत पेश किया गया है, जिसकी वैधता का प्रश्न एक बड़ी पीठ को सौंपा जा चुका है।

    याचिकाकर्ता के वकील ने अनुरोध किया कि रिट याचिका को 5 जजों की पीठ के समक्ष ईडब्ल्यूएस कोटा से संबंधित याचिकाओं के साथ टैग किया जाए और इस बीच खाली सीटों को नहीं भरा जा सकता है। पीठ ने कहा कि जब मामला बड़ी पीठ के समक्ष लंबित है, तब याचिकाकर्ता नियुक्तियों को रोकने की मांग नहीं कर सकता।

    पीठ ने कहा कि वह मामले को खारिज कर रही है, हालांकि वकील ने बहस करना जारी रखा और कहा कि यदि संसद का इरादा 50% से अधिक आरक्षण का रहा होगा तो इसे निर्दिष्ट किया गया होता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। पीठ ने तब चेतावनी दी, "हम एक लाख के जुर्माने के साथ याचिका खारिज कर देंगे।"

    जस्टिस राव ने कहा, "आपको अपनी सीमाएं समझनी चाहिए। आपने तीन बार एक ही बात का उल्लेख किया है। हमने आपको सुना है, हमें कोई कारण नहीं दिखता है। अगर हम जारी रखकर क्या करेंगे? सुनवाई का अधिकार भी कुछ प्रतिबंधों के साथ आता है",

    उन्होंने कहा, "आप चाहते हैं कि हम सिविल सेवाओं के किसी भी पद को न भरने का निर्देश दें? लोगों को इन रिट याचिकाओं को दायर करने और इस अदालत में आने की सलाह न दें। यदि आपको कोई शिकायत है तो आप हाईकोर्ट जाएं।",

    पीठ ने पूछा कि याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट जाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटाया है। वकील ने जवाब दिया कि चूंकि यह एक राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। बेंच उनके जवाब से सहमत नहीं थी।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस लेने की मांग की। ‌जिसके बाद याचिका को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता के साथ खारिज कर दिया गया। याचिका में कहा गया था कि यूपीएससी ने आरक्षण के लिए 50% जनादेश का उल्लंघन किया है, जैसा कि इंद्रा साहनी बनाम यूओआई (1992) Supp (3) SCC 217 में निर्धारित किया गया है।

    याचिका में कहा गया है, "प्रतिवादियों द्वारा दिया गया 60% आरक्षण एससी, एसटी और ओबीसी को 50% आरक्षण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% आरक्षण का परिणाम है। 10% आरक्षण 103 वें संवैधानिक संशोधन का परिणाम है।"

    याचिकाकर्ता ने सामान्य कोटे में मुख्य परीक्षा में सफल उम्मीदवारों की नई सूची प्रकाशित करने के निर्देश जारी करने की भी मांग की थी।

    केस शीर्षक : नीतीश शंकर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य |डब्ल्यूपी (सी) संख्या 1134/202

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